स्टेट बैंक ब्लॉग पर सक्रियता
के दिनों की बात है एक साथी थे सुदीप्त मजूमदार. थे तो वे पुरुष किन्तु लोगों की अंग्रेजी
समझ की बलिहारी, उन्हे कुछ साथी बहुत समय तक महिला समझते रहे – कारण कि, अपना नाम वे
अंग्रेजी मे Sudipta लिखते थे जिसे वे लोग सुदीप्ता समझ कर उन्हे महिला मानते थे. अब
स्टेट बैंक ब्लॉग पर अन्य फोटो तो पोस्ट की जाती थीं किन्तु अपनी फोटो पेस्ट करने का
चलन नही था जो अब भी नही है. उनके महिला होने का भ्रम बहुत दिनों तक बना रहा. एक बार
उन्होने बिना किसी विवरण / शीर्षक / सन्दर्भ के एक सुन्दर युवती की हँसती हुयी आकर्षक
फोटो पेस्ट की जिस पर बहुत टिप्पणियां आयीं. लोगों ने उनकी ही तस्वीर समझा. उनमे से
बस एक टिप्पणी. जो अब तक याद है. प्रस्तुत कर रहा हूँ –
“ अच्छा. तो ये आप हैं
मैडम. लेकिन ये बताईये कि बैंक मे काम करते हुए भी आप इतनी खुश कैसे रह लेती हैं ? “
उनको जो भ्रम था, उसे व्यक्त
होता देखने और टूटने की अपेक्षा उनकी टिप्पणी के दूसरे अंश पर तरस आया, कुढ़न हुई और
अन्ततः हँसी आयी. ऐसा ही एक वाकया अभी पिछले दिनों ( 11 अप्रैल, 2013 ) को पेश आया.
स्टेट बैंक अकादमी. गुड़गांव मे ट्रेनिंग थी. उद्घाटन व परिचय सत्र मे महाप्रबन्धक
महोदय ( श्री धर्मवीर प्रसाद ) सम्बोधित कर रहे थे. अब महाप्रबन्धक थे तो पकी आयु के
थे ही किन्तु इतने उच्च पद पर होते हुए भी बड़े खुशमिज़ाज. ज़िन्दादिल औए सबसे सहज
होकर हँसी – मज़ाक करते हुए बात कर रहे थे. लग ही नही रहा था कि गरिमामय अकादमी का
गरिमामय प्रमुख उदघाटन भाषण दे रहा है बल्कि कोई अनुभवी और खुशमिज़ाज दोस्त बातें कर
रहा हो, ऐसा लग रहा था. उन्होने फिल्मों की, त्योहारों की, किताबों की – कितनी ही औपचार्रिक
बातें की – डायस से हट कर, टहलते हुए.
अधिकांश लोगों को उनका अंदाज
अटपटा लग रहा था, कुढ़ भी रहे थे और इस अंदाज को हल्कापन मान रहे थे. आखिर रहा नही
गया, एक प्रतिभागी ने ( वही यक्ष प्रश्न ) पूछ ही लिया, “ सर, आप बैंक मे इतने उच्च
पद पर और इतने तनाव के बावजूद इतना खुश कैसे रह लेते हैं ? “ उन्होने एक ठहाका लगाया
और बोले, “ क्यों ! क्या मेरा पद और काम मुझे ठीक से बोलने की मनाही करता है ? काम का बोझ व तनाव होने के बाद भी जब मै खाता हूँ,
नहाता - धोता हूँ, बीमार पड़ने या ज़रूरी कामों पर छुट्टी लेता हूँ, LFC पर या वैसे
ही घूमने जाता हूँ तो क्या शाम को फिल्म देखने, बाज़ार घूमने, गाना सुनने, किताब पढ़ने
और उस पर बात करने से क्या बैंक मना करता है ? ये तो हम ही हैं जो सोच लेते हैं कि
नही, अब ये सब नही करना और करना भी तो गिल्टी फील करना और किसी से कहना तो कतई नही.
और भी बहुत कुछ कहा.
वे बहुत कह चुके, आप वहां थे
नही इसलिये मने यह वाकया बयान किया. मै अपनी तरफ से कुछ नही कहूँगा – आपको कुछ समझना
हो तो समझें, नही तो मुह बिचका कर ‘हुंह’ कर दें.
राज नारायण