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Wednesday 20 December 2023

ज़ीरो प्वाईंट

सड़क पर एक SUV आ रही थी. दोनों तरफ जंगल के बीच सिंगल लेन, साफ-सुथरी सड़क थी. कहीं – कहीं कच्ची तो कहीं खड़ंजा किंतु तेज़ चलाने योग्य थी. ऐसी सुनसान सड़क तो स्वाभाविक ही रफ़्तार तेज़ थी और SUV थी तो और भी तेज़. दूर तक न कोई वाहन आगे था, न पीछे, पिछले पंद्रह मिनट से तो ऐसा ही था. रात के दो बजने वाले थे ऐसे में वन विभाग की गश्ती गाड़ियों को छोड़ कर निजी वाहन बहुत कम ही निकलते हैं ऐसे में यह कौन था और कहाँ जा रहा था. काले रंग की गाड़ी थी और अकेला ही आदमी था, स्पीड भी एक सौ बीस से क्या कम रही होगी ! यह क्या ! तेज़ी से जा रही गाड़ी को ऐसा ब्रेक लगा जैसे अचानक कोई सामने आ गया हो. स्पीड इतनी तेज़ थी और ब्रेक अचानक लगे तो टायरों के घिसटने की आवाज़ हुई और स्पीड के कारण गाड़ी बजाय रुकने के बायें होते हुए पूरी घूम गयी, ऐसी कि बिल्कुल ही दूसरी दिशा में हो गयी, यही गनीमत कि गाड़ी पलटी नहीं. शायद इसलिए कि सड़क पर न कोई दूसरी गाड़ी थी और न ही टकराने को कुछ, या शायद ड्राईवर इतना कुशल था कि अकस्मात ब्रेक लगाने के बावजूद उस पर से सन्तुलन न खोया. मगर गाड़ी को ब्रेक क्यों लगाना पड़ा, वो भी ऐसे ! ज़रूर सामने कुछ आ गया था मगर वहाँ दूर-दूर तक कोई न था, न सामने और न ही किसी साईड में. टायरों की रगड़ के अलावा सड़क पर ऐसे कोई निशान न थे कि कोई टकराया हो और न ही किनारे के पेड़ों पर कोई रगड़ कि कोई टकराता हुआ नीचे ढलान में जा गिरा हो. फिर ब्रेक लगाने की क्या वजह थी ? कुछ तो उसने सामने टकराने को उद्यत देखा था तभी तो ऐसे खतरनाक ढंग से ब्रेक मारी. क्या कोई भूत था जो दिखा और तुरन्त ही गायब हो गया या फिर केवल उसे ही दिखा ? या फिर उसे कोई नज़र का धोखा हुआ होगा, मृग मरीचिका जैसा, जो केवल उसे ही दिखा ? जो भी हो, अब गाड़ी पूरी घूम कर दूसरी दिशा में मुह किये हुए रुकी थी. उसकी बायीं साईड पर बड़ा सा डेण्ट और कुछ स्क्रैच थे जो चीखचीख कर कह रहे थे कि ज़रूर कोई बहुत तीव्र गति से साईड से टकराता हुआ गया है, इतनी तेज़ी से कि थॉर जैसी पॉवरफुल और मज़बूत गाड़ी पर भी ऐसा डेण्ट और खरोंच आ गये.

गाड़ी से कोई आकर्षक सा रोबीला जवान लड़खड़ाता हुआ उतरा.  वह ग्रे रंग का सूट सा पहने था, कमर पर उसी कपड़े की बेल्ट थी जो गांठ मार कर बांधी हुई थी, ज़ाहिर है, पैण्ट को कसने के लिए नहीं, फैशन के तौर पर. रोबीले चेहरे पर नुकीली मूंछे उसे और रोबदार लुक दे रही थीं. कुल मिला कर फ़िल्म ऐक्टर या मॉडल जैसा युवक था. जब SUV का दरवाजा खोल कर उतरा तो उसकी सजधज  नुमाया हुई, उतनी तेज़ स्पीड में तो बस हल्की सी झलक भर मिली थी. उसकी गाड़ी पता नहीं क्यों तेज़ ब्रेक के साथ पूरी ही मुड़ गयी, बस उलटते-उलटते बची. वह कुशल ड्राईवर भी था तभी तो इतनी स्पीड और अप्रत्याशित गहरे घुमाव के बावजूद गाड़ी को संभाल लिया. गाड़ी पलटी नहीं, इंजन झटका खाकर या किसी चीज़ से टकरा कर बंद नहीं हुआ बल्कि बाकायदा न्यूट्रल में करके इंजन बंद किया. गाड़ी पर ऐसा बेहतरीन कमाण्ड उसके रोब दाब वाले चेहरे और गठे शरीर के अनुकूल ही था मगर उसकी दशा ठीक नहीं थी. वह बहुत रुकता हुआ सा, लड़खड़ाता हुआ उतरा था और उतर कर भी उसकी टांगे कांप रही थीं. हो सकता है वह नशे में हो मगर गाड़ी पर ऐसा ज़बरदस्त कमाण्ड और चेहरे पर दहशत के भाव उसके नशे में न होने या नशा हिरन हो जाने की चुगली कर रहे थे. ऐसा लगता था कि उसने कुछ बहुत डरावना, दहला देने वाला देखा हो, जैसे मौत से साक्षात करके आ रहा हो मगर सड़क पर कुछ ऐसा न था. कुछ दूरी पर मौज़ूद लोगों ने तेज़ी से आते, अचानक ब्रेक मारने से गाड़ी पूरी घूम जाते और रुकते देखा था. उनकी चीख निकल गयी थी कि अब गाड़ी पलटी और उसमें आग लगी. सड़क अब भी खाली थी, दूर तक कोई न था और न ही सड़क पर टायर घिसटने के अलावा और कोई टूट फूट के निशान थे. ऐसा लग रहा था कि अचानक कोई करिश्मा हो गया हो. कई लोगों ने उसे घेर लिया.

गाड़ी रुकते ही उस सुनसान सड़क पर दोनों तरफ से कुछ लोग ऐसे प्रकट हुए जैसे वे गाड़ी का इन्तेज़ार ही कर रहे हों. उन्होंने सड़क को घेर लिया.  यह तो कुँवर साहब हैं !” भीड़ में से कोई पहचान करे बोला. अरे, अरे ! क्या हुआ ! जैसी कई आवाज़ें आपस में गड्ड मड्ड हो गयीं कि कोई ज़ोर से चिल्लाया, “अरे, इन्हें इधर लेकर आओ.” कुछ लोगों नें उन्हें सहारा दिया और उस तरफ लेकर गये जिधर से वह पुकार रहा था. यह फाईबर शीट का बना और टीन की छत की छत वाला एक केबिननुमा कमरा था जिसमें पड़ी कुर्सियों में से एक पर उन्हें बिठा दिया गया और किसी नें उन्हें पानी पेश किया. बैठ कर और पानी पीकर उन्होंने अपनी दशा पर काबू पाया और मुह से निकला, ‘हे भगवान ! आज तो तुमने ही रक्षा की. इसका मतलब लोग जो कहते थे, सच था. मैनें मौत के रूप में साक्षात उसे झपट कर अपनी तरफ आते हुए देखा. अचानक ब्रेक न लगा देता तो वह गाड़ी को रौंद डालता. जाने कैसे वह झोंक में गाड़ी की साईड से टकराया और हम गाड़ी समेत इधर को हो गये. देखो, उधर कहीं ढलान में घायल पड़ा होगा.”

उधर तो कोई नहीं है, किसी तरफ नहीं है. हमने तो देखा था कि सड़क पर कोई भी न था फिर भी गाड़ी को ऐसा ब्रेक लगा.” इतना कहने के बावजूद कुछ लोग दोनों तरफ ऐसा कोई देखने के लिए दौड़ गये जिससे टक्कर हुई थी..

हुआ क्या था और आपने किसे देखा ? कौन तेज़ी से झपटता हुआ गाड़ी को रौंद डालने को आमादा था ?” उसी ने पूछा जिसने उन्हें केबिन में लाने को कहा था.

ओह ! हे भगवान !”  कुछ क्षण पहले का नज़ारा याद करते हुए उनके शरीर ने झुरझुरी सी ली, चेहरे पर खौफ़ झलक आया, “वह एक बड़ा सा, हष्ट-पुष्ट सांड था. सींगे नीचे झुकाये हुए हमारी तरफ दौड़ता आ रहा था. उसकी सींगे नीचे, पूंछ ऊपर उठी हुई, जैसे धरती को खूंदता हुआ दौड़ा आ रहा था. नथनों से झाग सा और खुरों से चिंगारियां निकल रही थीं. बड़ा सा कुकुद स्पीड की वजह से हिल रहा था. जैसे रामायण काल के मायावी दानव का भाई, दुंदुभि, ही हो जिसने सांड का रूप धर कर बालि को युद्ध के लिए ललकारा था. वह मौत बन कर हमारी तरफ फुंकारता हुआ दौड़ा आ रहा था कि पता नहीं कैसे या शायद ब्रेक लगाने से वह सीधे न टकरा कर साईड से रगड़ खाता हुआ निकल गया और गाड़ी इधर आ गयी.” कहते हुए उन्होंने फिर झुरझुरी ली.

उधर या किसी तरफ तो कोई भी नहीं है और न ही कोई पेड़ वगैरह टूटा है, पत्थर लुढ़कने के भी कोई निशान नहीं.” कुछ देर पहले दौड़ कर गये लोगों ने आते हुए आश्चर्य के स्वर में कहा. “

“तब तो ज़रूर आपने उस भूत को देखा होगा. कुछ साल पहले एक उपद्रवी और खूंखार सांड सड़क पर किसी गाड़ी से टकरा कर मर गया था और अब वह इसी तरह लोगों को दिखता और गाड़ी उलट कर उन्हें मार डालता है. उसका बहुत खौफ़ है. अक्सर रात के एक से चार बजे के बीच दिखता है मगर जिसे दिखता है, केवल उसे ही दिखता है. अगल-बगल के भी किसी को नहीं और उसका शिकार उसकी बलि चढ़ जाता है. आप बहुत किस्मत वाले थे जो उस भूत से सामना होने पर भी बच गये.”

कट !” ज़ोर की आवाज़ गूँजी औरगुड शॉट” , “परफेक्ट ! “वन टेक शॉट” “यह आपके ही बस का है, क्या शॉट दिया है. क्या परफेक्शन के साथ गाड़ी घुमा कर रोकी. दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जायेंगे.” जैसा शोर बरपा हो गया. अबकुँवर साहबबिल्कुल सामान्य थे. दर्प के साथ चलते हुए वह पास खड़ी वैन की तरफ बढ़ गये और जमा लोगों में कानाफूसी शुरू हो गयी,

हुंह ! क्या परफेक्शन से गाड़ी रोकी ! गाड़ी में मैं था, इतनी स्पीड में चलाते हुएब्रेक मार कर मोड़ते हुए रोकी मैंने 

और तालियां पर्दे पर सुपर स्टार जयवीर सिंह को मिलेंगी. लोग अर्से तक यह स्टंट सीन याद रखेंगे मगर इसे ! मेरा तो कोई नाम भी न जानेगा और न ही सूरत !” हिकारत से थूकते हुए उनके बॉडी डबल ने दूसरे स्टंटमैन से कहा.

हम लोगों की यही किस्मत है बॉस ! और यही इंडस्ट्री का चलन. इसे गाड़ी रुकने के बाद उसमें बैठ कर उतरने के सीन और डॉयलाग बाजी के करोड़ों रुपये और हमें कुछ हज़ार. वो तो अब हमारी यूनियन है वरना तो हमारा हक़ मारा जाता था, अपाहिज हो जाने या मर-मरा जाने पर कुछ नहीं, बस कुछ रुपये देकर छुट्टी. अपाहिज होने पर स्टंट लायक भी तो नहीं रहते. हमारा तो बीमा भी नहीं होता था, अब भी मुश्किल से होता है.” दूसरे स्टंट मैन ने भड़ास निकाली.

डॉयलाग तो देखो. सांड का दुंदुभि से मिलान करने की बड़ी तारीफ होगी, लोग इसे शास्त्रों का जानकार भी समझेंगे. यहसांडतो दुंदुभि भी बोल नहीं पा रहा था, कभी दुदुमभी कहता, कभी दुम्बी तो कभी दम्भी ! झल्ला कर कहा सीधे-सीधे सांड या बैल कहो ना ! कुकुद के बारे में भी बोला, ‘कुकुद क्या ?’ बताया कि सांड व बैल की पीठ और गर्दन के बीच जो कूबड़ सा होता है, उसे कुकुद कहते हैं, तब समझा. इस शब्द को भी डॉयलाग से निकलवा देने पर उतारू था वो तो लेखक ने साथ दिया तो यह लाईन शामिल की गयी. तब भी डबिंग में उच्चारण सही किया जायेगा.” डॉयलाग राईटर ने असिस्टेण्ट से भुनभुनाते हुए कहा.

भई ! खाने का इंतेजाम है कि नहीं, कुछ पीने को भी है या सूखे ही काम चलाना होगा? “ यूनिट मैनेजर से असिस्टेण्ट  डायरेक्टर ने पूछा.

सब ए वन इंतेज़ाम है, आप चिंता न करें. ये बताईये कि डिनर के बाद अभी निकलना है या सुबह तड़के. शूटिंग की परमीशन भी सुबह चार बजे तक की है. इसके बाद तो लोकेशन खाली करनी होगी.  

बस डिनर के आधा घण्टा बाद निकलते हैं.”

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डिनर के बाद थोड़ा रेस्ट और उसके बाद करीब साढ़े तीन बजे पूरी यूनिट रवाना हुई. अब जंगल से निकल कर वे लोग मुख्य सड़क पर और उसके बाद एक्सप्रेस वे पर आ चुके थे. वैन सबसे पीछे थी, उसके आगे तीन गाड़ियां, फिर जयवीर सिंह की लक्जरी गाड़ी, एक डाला और सबसे आगे थॉर चल रही थी जिसे उस वक़्त भी जयवीर सिंह का बॉडी डबल चला रहा था. इस बार वह अकेला नहीं था बल्कि सहायक स्टंटमैन, डॉयलाग राईटर और उसका असिस्टेण्ट भी साथ थे. बातें उसी फ़िल्म की हो रही थीं जिसके एक सीन की शूटिंग कुछ देर पहले हुई थी.

सब्जेक्ट तो वही पुराना है, भुतहा ! उसपे भी सांड का भूत ! चलेगी भी !

चले न चले, हमें तो उतना ही मिलेगा जितना सुपर-डुपर हिट होने पर मिलता. वैसे चलेगी ! जानवर के भूत वाली एक फ़िल्म पहले भी आ चुकी है. 1992 में महेश भट्ट की जुनून. उसमें शेर का भूत था. वह भी ऐसे ही राहुल रॉय की गोली से मर कर भूत बना था, वह हीरो में घुस जाता और कई लोगों को मारता है.”

हाँ, चली तो थी मगर हिट न थी.”

उसकी कास्ट भी तो देखो- राहुल रॉय, पूजा भट्ट और अविनाश वाधवन- जो भट्ट खेमे की फ़िल्मों मे ही आते थे. और इसकी कास्ट - इसमें आज का सुपर स्टार जयवीर सिंह है, हीरोईन सबरीना खान, सेक्स बम ! बोल्ड सीन और रोमांस भी ज़बरदस्त, स्पेशल इफ़ेक्ट, सिनेमेटोग्राफी और मेरे स्टंटचलेगी और ज़बरदस्त चलेगी. “

और स्टोरी, स्क्रीन प्ले और डॉयलाग भी तो देखो किसके ! और म्यूज़िक भी धमाकेदार. ऊपर से दो-दो आईटम सांग भी.”

मगर भाई, थी तो यह फ़िल्म की शूटिंग मगर मुझे सच में सड़क पर वैसा ही सांड दिखा था, वैसे ही झपट कर आता हुआ जैसा तुमने डॉयलाग में लिखा था. तभी तो ऐसे ब्रेक मारा और सीन नेचुरल हो गया. हो न हो, भूत वाली बात सच है. भूत-वूत सब होते हैं.”

यह लोग बातें करते हुए चले जा रहे थे कि अचानक सबके मुह से चीख निकल गयी और ब्रेक पर पांव पड़ गया. अचानक रुकने से पीछे आती गाड़ियों में से दो ने तो बैक में ठोकर मारी और बाक़ी चीं की आवाज़ के साथ इधर-उधर तिरछी होकर रुकीं. भय और विस्मय से सबने देखा कि सड़क पर वैसा ही सांड खड़ा था जैसा स्क्रिप्ट में था. विशाल, खूंखार, सींग झुकाए . जैसे वह ज़मीन फाड़ कर प्रकट हुआ या आकाश से टपका क्योंकि कुछ देर पहले तो दूर तक सड़क खाली थी. इस बार वह दौड़ नहीं रहा था बल्कि अविचल खड़ा गुस्से से घूर रहा था, जैसे फ़िल्म में दिखाए जाने से गुस्सा हो. सबको जैसे सांप सूंघ गया. थॉर सबसे आगे थी, स्टंटमैन कुछ सचेत होता कि वह थोड़ा पीछे हटा और जैसे एक्सिलरेटर लेकर धड़ाम से थॉर को टक्कर मारी. यह टक्कर कम्प्यूटर ग्राफिक से बनाए सांड की नहीं थी, असली थी. धड़ाम की आवाज़ के साथ थॉर ढलान में गिरी और लुढ़कनिया खाती हुई एक पेड़ से टकराई और उलट गयी. एक धमाके के साथ उसमें आग लग गयी. किसी की नज़र सड़क की तरफ नज़र गयी तो डर और ताज़्जुब से वह चीख उठा. सड़क पहले की तरह खाली थी, दूर-दूर तक कहीं कोई नहीं था. न सांड, न कोई और ! हाँ, सड़क पर रगड़ के निशान ज़रुर थे और ढलान के बाद जलती हुई थॉर ! आपस में टकरा कर तिरछी हुई कारें यह बता रहीं थीं कि अभी जो हुआ वह सच में हुआ. सांड ने टक्कर मारी, थॉर गिरी मगर वह गया कहाँ. ज़मीन निगल गयी या आसमान खा गया.

रात का अँधेरा छंट रहा था, एक्सप्रेस वे होने से नियमित पट्रोलिंग की गाड़ी वहाँ से गुजरी. एक तो एक्सीडेण्ट, दूसरे फ़िल्म यूनिट का मामला, सुपर स्टार जयवीर सिंह की मौजूदगी. आनन-फानन में एम्ब्युलेंस वहाँ पहुँची. स्टंटमैन की तो घटनास्थल पर ही मौत हो चुकी थी, बाक़ी तीनों गम्भीर घायलों को अस्पताल शिफ़्ट किया गया. लम्बे इलाज के बाद वे बच तो गये मगर हादसे के असर से बहुत दिन तक उबर न सके. जाँच हुई मगर दुर्घटना का कारण नहीं पता नहीं चला. CCTV में भी कुछ न था, खाली पड़ी सड़क पर गाड़ी रुकती, फिर गिरती नज़र आयी. थॉर के बाक़ी तीनो सवारों और पीछे के कुछ लोगों को पक्का नहीं हुआ कि जो देखा था, वह नज़र का धोखा था या हक़ीकत ! एक्स्प्रेस वे के ज़ीरो प्वाईंट के नाम से कुख्यात उस हिस्से का रहस्य भी ज़ीरो ही रहा.       

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Wednesday 8 November 2023

भाड़ मे जाओ !


अक्सर लोग गुस्से मे , झुञ्झला कर या ऐसे ही भाड़ मे जाने का सुझाव / आदेश / अनुरोध करते हैं. घरवाले भी ऐसा ही फरमान ज़ारी करते रहते हैं और बाहर वाले भी. बहुतेरे हैं जो जाने लिहाज़ में या शिष्टतावश या मारे डर के मुखर होकर नहीं कहते किंतु आपके दो-चार (कु)तर्कों के बाद या बारबार अनुरोध करने पर भी कोई नहीं मानता तो मन से यही आवाज़ आती है, “भाड़ में जाओ”.  बॉस प्रजाति के लोग भी और फेसबुक पर भी लोग यदा-कदा भाड़ मे जाने को कहा करते हैं मगर कोई जाता नही ! क्या कारण हो सकता है ? लोग आदेश मानें किन्तु सुझाव / अनुरोध तो मान ही सकते हैं. इस पर शीर्षासन करके चिन्तन किया तो सूझा कि लोग जाना तो चाहते हैं, अभी दुनिया सद्पुरुषों ( और सद्महिलाओं से भी ) खाली नही हो गयी है फिर भी लोग भाड़ मे नही जाते. शीर्षासन के बाद अपने निष्कर्ष को पुष्ट करने के लिये उन लोगों का एक सर्वे भी कराया जिनसे भाड़ मे जाने का आदेश / अनुरोध /सुझाव  दिया गया था.

नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक ने बताया कि हम चले तो जायें किन्तु यह तो बताया ही नही गया कि भाड़ के किस अंग मे जाओ ! भई. जहां अनाज भूँजा जाता है, अर्थात भाड़ के ऊपरी हिस्से मे जहाँ मिट्टी या लोहे का तवा सा लगा होता हैवहाँ जायें कि नीचे वाले हिस्से मे जहाँ          बैठ कर भड़भूजा ईंधन के रूप मे चिफड़ी, छीलन आदि झोंका करता है ? वहाँ जाकर भी अन्दर चले जायें कि वहाँ बैठ जायें जहाँ भड़भूजा बैठता है या फिर उस कमरे मे जायें जहाँ भाड़ होता है ? अब हम जाना तो चाहते हैं, सुझाव का आदर करते हैं, आदेश पालक भी हैं मगर असमंजस रहता है कि भाड़ के किस हिस्से मे जायें. यह भी नही बताया कि भाड़ गरम हो तब ही जायें कि ठण्डे भाड़ मे भी जा सकते हैं.  अब स्पष्ट आदेश हो तो उसका पालन भी करें. दुबारा पूछो तो और डांट के साथ सुनना पड़ता है कि कह तो दिया भाड़ मे जाओ, अभी तक यहीं हो !

                     भई, बात तो इनकी ठीक है. आगे से स्पष्ट बता दिया करें कि भाड़ के किस हिस्से मे जाना है.

एक ने नाम तो बताया किन्तु चेहरा अंगौछा ( भगवा या चारखानेदार नही, सफेद था ) से ढक लिया. उन्होने कहा कि भाड़ मे जाओ तो कह दिया और फुरसत हो गयी. यह तो बताया नही कि भाड़ मे जाकर करना क्या हैभाड़ झोंकना है, कुछ भुनाना है या यूँ ही देख कर लौट आना है या कितनी देर रहना है ? क्या भाड़ मे जाने की पुष्टि स्वरूप भड़भूजे से कुछ लिखा कर लाना होगा और फोटो लेकर फेसबुक / व्हाट्स ऐप पर डाऊनलोड करनी होगी. भाड़ मे कितनी देर रुकना है ?

लल्लूलाल जी का आभार व्यक्त करते हुए हम अगले व्यक्ति, जगधर जी, से मुखातिब हुए जो केवल मुह खोले थे बल्कि माईक और कैमरा मे घुसे जा रहे थे. उन्होने भी कुछ ऐसा ही कहा और यह भी कहा कि कोई भड़भूजा क्यों हमे अपने भाड़ मे जाने देगा ? क्या इतने से सुझाव / आदेश / अनुरोध के लिये हम अपना भाड़ स्थापित करें ? उसका खर्चा कौन देगा और बाद मे उस भाड़ का क्या होगा ? बात उनकी भी ठीक ही लगी.  

सर्वे की अगली पात्र एक लड़की थी ( पात्र ही थी, लड़की होने से पात्रा नहीं जैसा कि अख़बार वालों और कुछ लोगों द्वारा हर स्त्री संज्ञा का स्त्रीलिंग शब्द बनाने का चलन है )  जो मुह पर इस तरह दुपट्टा बांधे हुए थी कि हमे पुराने ज़माने के डाकुओं या ‘अलीबाबा चालीस चोर’ पाठ की मरजीना या मैला उठाने वाली जमादारिनों की याद गयी. आंखों पर काला चश्मा भी लगा रखा था किन्तु सूरत दिखने से यह भी नही कहा जा सकता था, “ तैनूं काला चश्मा जंचदा … “ अब क्या पता चश्मा जंच रहा था या बेढंगा लग रहा था. खैर, हमे क्या लेना- देना इस सब से, हम तो सर्वे कर रहे थे. उन्होने बताया कि कहने वाले ने तो कह दिया, अब हम तो लखनऊ के गोमती नगर मे रहते हैं. यहाँ कहाँ हैं भाड़ ? फिर भी स्कूटी मे पूरे सौ रुपये का तेल डला कर पूरे गोमती नगर का चक्कर लगा डाला मगर भाड़ नही मिला. फिर गूगल परभाड़ इन गोमती नगर, लखनऊलिख कर डाला तो वहाँ भी कुछ पता नही चला. ओला और ऊबर वालों से पूछा, ऑटो वालों से पूछापता नही चला. फिर एक - रिक्शे वाले भईया ने कहा कि गोमती नगर विस्तार, खरगापुर मे ट्राई कर लें, शायद मिल जाये. एक्चुअली, मुझे ( मतलब, उस लड़की को ) ही बड़ी क्यूरेसिटी थी कि देखूँ भाड़ होता कैसा है ? अब तेल भी खत्म हो रहा था और थकान हो रही थी तो अब कौन जाये खरगापुर, और वहाँ भी मिला भाड़ तो क्या बाराबंकी तक निकल जाऊँ इनके भाड़ मे जाने के सुझाव / आदेश / अनुरोध की रक्षा के लिये ?

बात तो सही थी उसकी. हमारा अगला निशाना एक साहित्यिक और सर्वहारा का पक्षधर था, निशाना तो वह था किन्तु निशाना बने हम. वह तो सुनते ही आक्रोश मे गया. बीड़ी फेंक कर बोला, “समझ क्या रखा है आपने भाड़ और भाड़ झोंकने वालों को ? भाड़ प्रतीक है सर्वहारा के भीतर और पेट मे धधकती ज्वाला का ! आप खाये-पिये-अघाये बुर्जुआ लोगों नेभाड़ झोंकनाएक मुहावरा बना दिया है जो बेकार के काम के लिये प्रयुक्त होता है. आप अभिजात्य लोग क्या जानें भाड़ और भाड़ झोंकने वाले का महत्व ! जिस काम से भड़भूजे का परिवार पलता है, उसकी रोजी-रोटी है, भाड़ दहका कर वह अपने और परिवार के पेट की आग बुझाता हैवह भाड़ झोंकना निरर्थक काम कैसे हो सकता है ? मै कल ही धरना स्थल पर धरना दूंगा और ऑन लाईन पिटिशन दायर करूँगा इस मुहावरे और मानसिकता को बदलने के लिये. “

वो तो पूरे रंग मे चुके थे मगर मै ही उनके तेवरों से डर कर भाग खड़ा हुआ. थोड़ा आगे बढ़ा तो तहमद-कुर्ता पहने, गले में अंगौछा डाले, साईकिल पर आते एक दुधहे भाई दिखे. उनसे कुछ आशा बंधी कि शायद इन्हें मालूम हो. रोका तो मसाला थूक कर बोले भाड़वाड़ अब कहाँ ! गाँव भी अब वैसे नहीं रहे. उनमें जो दुकाने हैं, वो लोग शहर से भुना चना, मूंगफली, सत्तू वगैरह लाकर बेचते हैं. भूँजता-वूँजता कोई नहीं. जैसे उदई तैसे भाड़, उनके चुटई उनके बार ! लखनऊ में सिटी स्टेशन के पास मूंगफली मण्डी में देखिए, वहाँ हो सकते हैं भाड़ !

चलिए भाड़ का पता मिला. सर्वे समेटने की सोच रहे थे कि एक टीचर सह साहित्यकार दिखे. अपने परिचित भी हैं. पूछा कि कहाँ भटक रहे हो तो बताया कि नौकरी बजा रहे हैं. टॉपिक बताया तो बोले यूँ कहो कि भाड़ झोंक रहे हो. फिर बोले भाड़ तो नहीं, भाड़ पर कहावते बता दें. कहते हैं, ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता.’ एकता को बताने वाली इस कहावत में ही त्रुटि है. भाड़ तो अकेला क्या, सेर भर चने मिल कर भी फोड़ नहीं सकते ! कभी देखा-सुना है कि चनों की वजह से कोई भाड़ फूटा हो ? हमने बताना चाहा कि गुरु जी, साइट पर इसका अर्थ बताया गया है कि ये कहावत उस चने के लिए है, जो बरतन से उछलकर भाड़ में गिर जाता है. इस दौरान वो भाड़ की तेज़ आंच में तपकर फट जाता है, लेकिन भाड़ पर इसका कोई असर नहीं होता किंतु उन्होंने डपट कर चुप करा दिया और बोले अब इसी को लो, भीड़-भाड़ शब्द युग्म है, अब भीड़ का भाड़ से क्या तादात्म्य ! भीड़ में सब मिल कर एक हो जाते हैं किंतु भाड़ में तो सब अलग-अलग भुँजता है. ये थोड़े कि चना, चावल, गेंहू, जुंधरी आदि सब एक में मिला कर भूँज दे. वो और बताते कि हम भाग लिए, और लोगों की तलाश में.  

मित्रों , सर्वे बहुत लम्बा है और परिणाम कुछ नही निकला. यह तो कुछ बानगी थी, अगर आपको पूरा सर्वे देखना है तो www.bhadsurvey.in पर जायें और हमे इन्स्टाग्राम, एक्स ( भूतपूर्व ट्विटर ) और यू-ट्यूब पर फालो करें. फेसबुक पर तो हम हैं ही. हमारा एक ब्लॉग भी है https://rajkibatkahi.blogspot.com ( ‘राज की बतकहीनाम से )

कहीं जाईयेगा नही ! हम आते हैं आधा घण्टा के विज्ञापन ब्रेक के बाद ! तब हम आपको शहर के पाँच भड़भूजों का इण्टरव्यू पूरे चास मिनट तक दिखायेंगे. ( किसी से बताईएगा नहीं, जाना हो न सका सिटी स्टेशन मूंगफली मण्डी, तो सेट लगवाया और स्टाफ के ही बंदों को स्क्रिप्ट देकर, मेक अप – वेक अप करवा के इण्टरव्यू रिकॉर्ड कर लिया. अब उसी को प्रसारित कर देंगे, स्टोरी तो चलाना ही है. )