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Wednesday, 8 November 2023

भाड़ मे जाओ !


अक्सर लोग गुस्से मे , झुञ्झला कर या ऐसे ही भाड़ मे जाने का सुझाव / आदेश / अनुरोध करते हैं. घरवाले भी ऐसा ही फरमान ज़ारी करते रहते हैं और बाहर वाले भी. बहुतेरे हैं जो जाने लिहाज़ में या शिष्टतावश या मारे डर के मुखर होकर नहीं कहते किंतु आपके दो-चार (कु)तर्कों के बाद या बारबार अनुरोध करने पर भी कोई नहीं मानता तो मन से यही आवाज़ आती है, “भाड़ में जाओ”.  बॉस प्रजाति के लोग भी और फेसबुक पर भी लोग यदा-कदा भाड़ मे जाने को कहा करते हैं मगर कोई जाता नही ! क्या कारण हो सकता है ? लोग आदेश मानें किन्तु सुझाव / अनुरोध तो मान ही सकते हैं. इस पर शीर्षासन करके चिन्तन किया तो सूझा कि लोग जाना तो चाहते हैं, अभी दुनिया सद्पुरुषों ( और सद्महिलाओं से भी ) खाली नही हो गयी है फिर भी लोग भाड़ मे नही जाते. शीर्षासन के बाद अपने निष्कर्ष को पुष्ट करने के लिये उन लोगों का एक सर्वे भी कराया जिनसे भाड़ मे जाने का आदेश / अनुरोध /सुझाव  दिया गया था.

नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक ने बताया कि हम चले तो जायें किन्तु यह तो बताया ही नही गया कि भाड़ के किस अंग मे जाओ ! भई. जहां अनाज भूँजा जाता है, अर्थात भाड़ के ऊपरी हिस्से मे जहाँ मिट्टी या लोहे का तवा सा लगा होता हैवहाँ जायें कि नीचे वाले हिस्से मे जहाँ          बैठ कर भड़भूजा ईंधन के रूप मे चिफड़ी, छीलन आदि झोंका करता है ? वहाँ जाकर भी अन्दर चले जायें कि वहाँ बैठ जायें जहाँ भड़भूजा बैठता है या फिर उस कमरे मे जायें जहाँ भाड़ होता है ? अब हम जाना तो चाहते हैं, सुझाव का आदर करते हैं, आदेश पालक भी हैं मगर असमंजस रहता है कि भाड़ के किस हिस्से मे जायें. यह भी नही बताया कि भाड़ गरम हो तब ही जायें कि ठण्डे भाड़ मे भी जा सकते हैं.  अब स्पष्ट आदेश हो तो उसका पालन भी करें. दुबारा पूछो तो और डांट के साथ सुनना पड़ता है कि कह तो दिया भाड़ मे जाओ, अभी तक यहीं हो !

                     भई, बात तो इनकी ठीक है. आगे से स्पष्ट बता दिया करें कि भाड़ के किस हिस्से मे जाना है.

एक ने नाम तो बताया किन्तु चेहरा अंगौछा ( भगवा या चारखानेदार नही, सफेद था ) से ढक लिया. उन्होने कहा कि भाड़ मे जाओ तो कह दिया और फुरसत हो गयी. यह तो बताया नही कि भाड़ मे जाकर करना क्या हैभाड़ झोंकना है, कुछ भुनाना है या यूँ ही देख कर लौट आना है या कितनी देर रहना है ? क्या भाड़ मे जाने की पुष्टि स्वरूप भड़भूजे से कुछ लिखा कर लाना होगा और फोटो लेकर फेसबुक / व्हाट्स ऐप पर डाऊनलोड करनी होगी. भाड़ मे कितनी देर रुकना है ?

लल्लूलाल जी का आभार व्यक्त करते हुए हम अगले व्यक्ति, जगधर जी, से मुखातिब हुए जो केवल मुह खोले थे बल्कि माईक और कैमरा मे घुसे जा रहे थे. उन्होने भी कुछ ऐसा ही कहा और यह भी कहा कि कोई भड़भूजा क्यों हमे अपने भाड़ मे जाने देगा ? क्या इतने से सुझाव / आदेश / अनुरोध के लिये हम अपना भाड़ स्थापित करें ? उसका खर्चा कौन देगा और बाद मे उस भाड़ का क्या होगा ? बात उनकी भी ठीक ही लगी.  

सर्वे की अगली पात्र एक लड़की थी ( पात्र ही थी, लड़की होने से पात्रा नहीं जैसा कि अख़बार वालों और कुछ लोगों द्वारा हर स्त्री संज्ञा का स्त्रीलिंग शब्द बनाने का चलन है )  जो मुह पर इस तरह दुपट्टा बांधे हुए थी कि हमे पुराने ज़माने के डाकुओं या ‘अलीबाबा चालीस चोर’ पाठ की मरजीना या मैला उठाने वाली जमादारिनों की याद गयी. आंखों पर काला चश्मा भी लगा रखा था किन्तु सूरत दिखने से यह भी नही कहा जा सकता था, “ तैनूं काला चश्मा जंचदा … “ अब क्या पता चश्मा जंच रहा था या बेढंगा लग रहा था. खैर, हमे क्या लेना- देना इस सब से, हम तो सर्वे कर रहे थे. उन्होने बताया कि कहने वाले ने तो कह दिया, अब हम तो लखनऊ के गोमती नगर मे रहते हैं. यहाँ कहाँ हैं भाड़ ? फिर भी स्कूटी मे पूरे सौ रुपये का तेल डला कर पूरे गोमती नगर का चक्कर लगा डाला मगर भाड़ नही मिला. फिर गूगल परभाड़ इन गोमती नगर, लखनऊलिख कर डाला तो वहाँ भी कुछ पता नही चला. ओला और ऊबर वालों से पूछा, ऑटो वालों से पूछापता नही चला. फिर एक - रिक्शे वाले भईया ने कहा कि गोमती नगर विस्तार, खरगापुर मे ट्राई कर लें, शायद मिल जाये. एक्चुअली, मुझे ( मतलब, उस लड़की को ) ही बड़ी क्यूरेसिटी थी कि देखूँ भाड़ होता कैसा है ? अब तेल भी खत्म हो रहा था और थकान हो रही थी तो अब कौन जाये खरगापुर, और वहाँ भी मिला भाड़ तो क्या बाराबंकी तक निकल जाऊँ इनके भाड़ मे जाने के सुझाव / आदेश / अनुरोध की रक्षा के लिये ?

बात तो सही थी उसकी. हमारा अगला निशाना एक साहित्यिक और सर्वहारा का पक्षधर था, निशाना तो वह था किन्तु निशाना बने हम. वह तो सुनते ही आक्रोश मे गया. बीड़ी फेंक कर बोला, “समझ क्या रखा है आपने भाड़ और भाड़ झोंकने वालों को ? भाड़ प्रतीक है सर्वहारा के भीतर और पेट मे धधकती ज्वाला का ! आप खाये-पिये-अघाये बुर्जुआ लोगों नेभाड़ झोंकनाएक मुहावरा बना दिया है जो बेकार के काम के लिये प्रयुक्त होता है. आप अभिजात्य लोग क्या जानें भाड़ और भाड़ झोंकने वाले का महत्व ! जिस काम से भड़भूजे का परिवार पलता है, उसकी रोजी-रोटी है, भाड़ दहका कर वह अपने और परिवार के पेट की आग बुझाता हैवह भाड़ झोंकना निरर्थक काम कैसे हो सकता है ? मै कल ही धरना स्थल पर धरना दूंगा और ऑन लाईन पिटिशन दायर करूँगा इस मुहावरे और मानसिकता को बदलने के लिये. “

वो तो पूरे रंग मे चुके थे मगर मै ही उनके तेवरों से डर कर भाग खड़ा हुआ. थोड़ा आगे बढ़ा तो तहमद-कुर्ता पहने, गले में अंगौछा डाले, साईकिल पर आते एक दुधहे भाई दिखे. उनसे कुछ आशा बंधी कि शायद इन्हें मालूम हो. रोका तो मसाला थूक कर बोले भाड़वाड़ अब कहाँ ! गाँव भी अब वैसे नहीं रहे. उनमें जो दुकाने हैं, वो लोग शहर से भुना चना, मूंगफली, सत्तू वगैरह लाकर बेचते हैं. भूँजता-वूँजता कोई नहीं. जैसे उदई तैसे भाड़, उनके चुटई उनके बार ! लखनऊ में सिटी स्टेशन के पास मूंगफली मण्डी में देखिए, वहाँ हो सकते हैं भाड़ !

चलिए भाड़ का पता मिला. सर्वे समेटने की सोच रहे थे कि एक टीचर सह साहित्यकार दिखे. अपने परिचित भी हैं. पूछा कि कहाँ भटक रहे हो तो बताया कि नौकरी बजा रहे हैं. टॉपिक बताया तो बोले यूँ कहो कि भाड़ झोंक रहे हो. फिर बोले भाड़ तो नहीं, भाड़ पर कहावते बता दें. कहते हैं, ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता.’ एकता को बताने वाली इस कहावत में ही त्रुटि है. भाड़ तो अकेला क्या, सेर भर चने मिल कर भी फोड़ नहीं सकते ! कभी देखा-सुना है कि चनों की वजह से कोई भाड़ फूटा हो ? हमने बताना चाहा कि गुरु जी, साइट पर इसका अर्थ बताया गया है कि ये कहावत उस चने के लिए है, जो बरतन से उछलकर भाड़ में गिर जाता है. इस दौरान वो भाड़ की तेज़ आंच में तपकर फट जाता है, लेकिन भाड़ पर इसका कोई असर नहीं होता किंतु उन्होंने डपट कर चुप करा दिया और बोले अब इसी को लो, भीड़-भाड़ शब्द युग्म है, अब भीड़ का भाड़ से क्या तादात्म्य ! भीड़ में सब मिल कर एक हो जाते हैं किंतु भाड़ में तो सब अलग-अलग भुँजता है. ये थोड़े कि चना, चावल, गेंहू, जुंधरी आदि सब एक में मिला कर भूँज दे. वो और बताते कि हम भाग लिए, और लोगों की तलाश में.  

मित्रों , सर्वे बहुत लम्बा है और परिणाम कुछ नही निकला. यह तो कुछ बानगी थी, अगर आपको पूरा सर्वे देखना है तो www.bhadsurvey.in पर जायें और हमे इन्स्टाग्राम, एक्स ( भूतपूर्व ट्विटर ) और यू-ट्यूब पर फालो करें. फेसबुक पर तो हम हैं ही. हमारा एक ब्लॉग भी है https://rajkibatkahi.blogspot.com ( ‘राज की बतकहीनाम से )

कहीं जाईयेगा नही ! हम आते हैं आधा घण्टा के विज्ञापन ब्रेक के बाद ! तब हम आपको शहर के पाँच भड़भूजों का इण्टरव्यू पूरे चास मिनट तक दिखायेंगे. ( किसी से बताईएगा नहीं, जाना हो न सका सिटी स्टेशन मूंगफली मण्डी, तो सेट लगवाया और स्टाफ के ही बंदों को स्क्रिप्ट देकर, मेक अप – वेक अप करवा के इण्टरव्यू रिकॉर्ड कर लिया. अब उसी को प्रसारित कर देंगे, स्टोरी तो चलाना ही है. )

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