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Friday 5 May 2023

बुद्ध पूर्णिमा पर 'भगवान बुद्ध और उनका धम्म' से एक प्रसङ्ग

दुख के निदान, उनके शमन और शांति की कामना से राजकुमार सिद्धार्थ ने गृह त्याग दिया और अध्ययन, विभिन्न विद्वानों से संसर्ग,ध्यान, कठोर उपवास आदि के माध्यम से बोधि प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे. उस काल में पाँच परिव्राजक उनके साथ थे, यद्यपि वे साधना में सहयोगी न होकर अनुयायी भर थे. बोधि प्राप्त करने की दिशा में सिद्धार्थ ने शरीर को नाना प्रकार से भयानक कष्ट देने व कठोर उपवास का मार्ग अपनाया. वे सघन वन में रहने लगे. वे सिर और दाढ़ी के बाल नोंच-नोंच कर उखाड़ते, पालथी मार कर बैठते और बिना खड़े हुए पालथी मारे ही आगे को सरकते. वर्षों तक उनके शरीर पर धूल और मैल जमती गयी जो बाद में अपने आप गिरने लगी. शीत ऋतु में वे खुले में सोते, दिन में सघन अन्धकारपूर्ण वन में रहते और ग्रीष्म में धूप में रहते. गौतम एक दिन में केवल एक फली खाकर रहते, बाद में एक ही तिल और बाद में चावल का एक दाना खाकर रहते. शरीर को भयङ्कर कष्ट देना ही उन्होंने साधना माना. वे इतने दुर्बल हो गये कि ढांचा भर रह गये, उनकी पीठ और पेट मिल से गये थे.

ऐसी अवस्था में वे एक निग्रोध (बरगद ) के वृक्ष के नीचे बैठे थे. उरुवला नामक ग्राम में सेनानी नामक एक गृहपति था जिसकी कन्या, सुजाता, ने निग्रोध वृक्ष से पुत्र होने की मनौती मांगी थी और मनौती पूर्ण होने पर प्रति वर्ष भेंट चढ़ाने का संकल्प किया. पुत्र लाभ होने पर उसने पूजा स्थल तैयार करने के लिए अपनी दासी, पुण्णा, को भेजा, उसने वृक्ष के नीचे गौतम को देखा और उन्हें वृक्ष देवता समझ कर सुजाता को इसकी सूचना दी. सुजाता ने भी उन्हें वृक्ष देवता मान कर स्वर्ण पात्र में खीर अर्पित की जिसे उन्होंने स्वीकार किया. वे स्वर्ण पात्र लेकर निरञ्जना नदी के तट पर गये, स्नान किया और विभिन्न विधियों से परीक्षण (यह खीर खाना उनके बोधि प्राप्ति में सहायक होगा या नहीं ) करके सन्तुष्ट होने पर स्नान करके खीर खायी और इस प्रकार तपश्चर्या के परीक्षण का समापन किया यद्यपि जो पाँच परिव्राजक उनके साथ थे, वे रुष्ट हो गये, उन्होंने इसे तपभ्रष्ट होना माना और वे उनका साथ छोड़ कर चले गये. इसी को मझ्झिम निकाय (मध्यम मार्ग ) कहा है कि -
जीवन की वीणा के तार इतना न कसो कि उनसे कटु स्वर निकले और न ही इतना ढीला छोड़ो कि कोई स्वर ही न निकल सके, उसे सन्तुलित रखो कि मधुर स्वर उत्पन्न हो.
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इसके उपरान्त 49 दिनों तक पीपल के एक वृक्ष (कालान्तर में इसे बोधि वृक्ष कहा गया, यह गया में स्थित है) के नीचे उन्होंने गहन चिन्तन किया, चिन्तन में बाधक मार को पराजित किया और तब उन्हें बोधि प्राप्त हुई कि -
दुःख है,
दुःख का कारण है,
दुःख का निवारण है.
- आदि, आदि.
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आज, अर्थात वैशाख पूर्णिमा पर, बुद्ध का जन्म हुआ, उन्हें बोधि प्राप्त हुई और इसी दिन उनका निर्वाण हुआ. इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा कहा गया.
आज इस अवसर पर बाबासाहेब भीम राव अम्बेडकर के ग्रन्थ 'भगवान बुद्ध और उनका धम्म' ( The Buddha and His Dhamma का अनुवाद ) से ये प्रसङ्ग पढ़े और संक्षेप में प्रस्तुत किया. हिन्दी अनुवाद किया है डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने, सम्पादन आचार्य जुगुल किशोर बौद्ध ने और प्रकाशक हैं 'सम्यक प्रकाशन'.
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