बेगम अख़्तर की ज़िंदगी के सफ़र को बयान करती हुई यह किताब आज पढ़ कर पूरी की. किताब बेगम अख़्तर के बिब्बी से अख़्तरी बाई और बेगम अख़्तर के गरिमामय स्थान तक पहुँचने का सफ़रनामा तो है ही, किताब भी विधा के रूप में विशेष है. विशेष इसलिए कि यह यह रेडियो रूपक है जो आकाशवाणी लखनऊ के 75 वर्ष पूरे होने पर 2011 में 13 एपीसोड के धारावाहिक के रूप में प्रसारित किया गया. रेडियो रूपक, वार्ता, साक्षात्कार व नाटक की स्क्रिप्ट होती तो है किंतु वह रेडियो या सम्बन्धित संस्था की सम्पत्ति होती है और बहुधा पुस्तक रूप में प्रकाशित नहीं होती. रेडियो नाटक के अलावा नाटक तो किताब के रूप में सामने आते हैं किंतु बहुधा वे नाटक जो पहले से हैं या क्लासिक श्रेणी के नाटक जो नाटक विधा के अंर्तगत लिखे गये, प्रकाशित हुए और बाद में उनका मञ्चन हुआ और अनेक निर्देशकों के निर्देशन में, अनेक संस्थाओं द्वारा, अलग-अलग टीम के साथ देश भर में कई बार उनका मञ्चन हुआ, आज तक हो रहा है किंतु ऐसा कम ही है कि मञ्चन के बाद कोई नाटक /स्क्रिप्ट किताब के रूप में प्रकाशित हुआ हो. यह किताब इस मामले में (सम्भवत ) पहली है कि रेडियो रूपक प्रसारित होने के 12 वर्षों बाद ज्यों की त्यों पूरी स्क्रिप्ट/ रूपक किताब के रूप में प्रकाशित हुई हो. इस अभिनव पहल के लिए आकाशवाणी लखनऊ, लेखक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं.
आकाशवाणी का यह लखनऊ केन्द्र है. श्रोताओं नमस्कार.
प्रस्तुत है विशेष संगीत रूपक धारावाहिक का भाग … ‘कुछ नक़्श तेरी याद के.’ लेखक हैं
अटल तिवारी.
और इसके बाद शीर्षक गीत की कुछ पंक्तियां या किसी कड़ी में पूरा गीत दिया है
–
कुछ नक़्श तेरी याद के,
दिल में लिए हुए
चलता ही चला जाता हूँ, मिलने
की आस में …
हर
कड़ी के समापन पर यह –
अभी आप सुन रहे थे यह विशेष संगीत
रूपक ‘कुछ नक़्श तेरी याद के.’ लेखक थे – अटल तिवारी. श्रोताओं अब हमें आज्ञा दीजिए.
अगले सप्ताह फिर हाज़िर होंगे. इसी समय. इसी ख़ास पेशकश के साथ. तब तक के लिए नमस्कार.
अख़्तरी बाई थियेटर
से छुट्टी लेकर हैदराबाद चली गईं. हैदराबाद में अख़्तरी को एक ख़ुशख़बरी मिली. निज़ाम साहब
ने फ़रमान ज़ारी किया कि अख़्तरी बाई को 100 रुपये महीना ता-नस्ल दिया जाए. उनकी ख़ुशी
का ठिकाना नहीं रहा कि निज़ाम सरकार से वज़ीफ़ा मिलेगा.
रीता गांगुली का किस्सा तो बहुत दिलचस्प है. शादी से पहले वे बनारस की मशहूर
गायिका, सिद्धेश्वरी देवी, से शिक्षा प्राप्त कर रही थीं किंतु शादी के बाद उनका गाना
छूट गया. 1968 में उनके पति ग़ालिब समारोह के लिए बेगम अख़्तर को आमन्त्रित करने गए तो
वे भी साथ थीं. बातों में उन्हें पता चला कि वे भी गाती थीं. पता करने का किस्सा भी
बहुत दिलचस्प है जो यह बताता है कि वे कैसे नवोदितों को बढ़ावा देती थीं. बहरहाल उन्होंने
शर्त रखी कि वे तभी इस समारोह में गायेंगी जब रीता गांगुली भी उनके साथ गायें. वे पीछे
हट गयीं क्योंकि एक तो बहुत दिनों बाद और उनके साथ गाना दूसरे उनके पति को भी झिझक
थी कि लोग कहते अपनी पत्नी को गवा दिया. वे नहीं बैठीं किंतु जब बेगम अख़्तर शर्त पर
अड़ गयी तो वे यह सोच कर तानपुरा लेकर पीछे बैठीं कि वे गाने में मगन होकर भूल जायेंगी
किंतु वे भूलीं नहीं. गाने के बीच रुक कर उन्होंने कहा, “ मैंने एक बच्ची तैयार
की है. कैसे कोयल की तरह कुहकती है, आप सुनिए. “ अब तो उन्हें गाना पड़ा और
खूब गाया.
ऐसे ही तमाम प्रसङ्ग हैं. आप किताब पढ़ें.
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किताब
– ‘बेगम अख़्तर का ज़िंदगीनामा
लेखक
– अटल तिवारी
विधा
– रेडियो रूपक
प्रकाशक
– प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
पृष्ठ
– 127. दाम -135/-, पेपरबैक एडिशन
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