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Saturday 27 October 2012

घर की वर्षगांठ



(विजयादशमी को 'फेसबुक' पर लिखा था) 


आज हमारे घर की वर्षगांठ है. वर्ष 2003 मे दशहरा के दिन ही यह मकान हमारे घर के रूप मे परिवर्तित हुआ था, हमने गृह पूजन करके ‘गृह प्रवेश’ किया था अतः इसी दिवस को हम घर की वर्षगांठ मानते हैं अन्यथा यह अस्तित्व मे तो इससे पहले आ चुका था, भौतिक रूप से अस्तित्व मे आने से पूर्व हमारे मानस मे… बल्कि मुझसे भी पहले गृहणी, मेरी पत्नी के मानस मे. उनकी ही प्रेरणा और सक्रिय योगदान से यह आकार ले सका अन्यथा मै तो 
ज़मीन-जायदाद का विरोध ही करता था. मेरा योगदान बस इसे क्रय करने और इसका पुर्ननिर्माण कराने हेतु आवश्यक धन ( स्पष्ट ही, ऋण से ) की व्यवस्था करने से अधिक नही रहा. डिजाईन से लेकर खड़े होकर बनवाने तक --- सब उनका ही रहा. इस हेतु मै व घर उनका ऋणी है ( मै तो बैंक का भी ऋणी हूँ ) सम्भवतः अधिकांश मध्यवर्गीय लोगों के घरों के होने मे गृहणी का ही योगदान होता है. घर का नाम भी तभी सोच लिया था, जब इसने आकार लेना प्रारम्भ किया. इसका नाम “पुनर्नवा” रखा जो एक औषधीय पौधा भी है, आचार्य हजारी प्रसाद जी के एक उपन्यास का शीर्षक भी है और इसका यह अर्थ है – जो फिर से नया हुआ हो. यह अर्थ की दृष्टि से अपने नाम को चरितार्थ भी करता है क्योंकि इसका वर्तमान रूप उससे भिन्न हो चुका है जिस रूप मे यह LDA से मिला था. इसके लिये जो नाम सोचे गये थे, उनमे मेरी पहली पसन्द था “इदन्नमम्” जिसका अर्थ है—‘यह मेरा नही है’. यह शब्द अग्निहोत्र मन्त्रों मे आता है जिनमे विभिन्न देवों के नाम आहुति देते हुए कहते हैं, “ इदन्नमम्, इदम् अमुक देवाय् … “ अर्थात यह मेरा नही, अमुक ( देव का नाम लेकर ) देव का है. जो भी अल्प सम्पदा मेरे पास है, उसे अपने नाम से होने के बावजूद मेरे मन मे यही भाव रहता है, “इदन्नमम्”. इस नाम का मेरे अलावा सबने विरोध किया क्योंकि इसकी पूरी सम्भावना थी कि इस नाम का अर्थ पूछा जाता. बताने पर लोग कहते कि आपका नही तो किसका है और यदि आपका नही तो क्यों अपने नाम से रखे हैं. व्याख्या करने पर मुह बिचका कर कहते , “… हर चीज मे दार्शनिकता / विद्वता झाड़ना ज़ुरूरी है क्या ? “ तमाम वितण्डा होता, सो यह नाम भी न हुआ. अब जो भी है, घर की वर्षगांठ पर आपके साथ साझा किया, आज ही खींचा हुआ चित्र भी चस्पा है – कृपया देखें.

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