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Sunday 9 November 2014

“मसाला चाय” --- पी कर देखें ! अच्छी लगेगी !!

मसाला चाय” --- पी कर देखें ! अच्छी लगेगी !!

आज एक अच्छी किताब पढ़ी. अब अच्छी से ये कयास लगाने न लग जाईयेगा कि कोई गम्भीर/ गरिष्ठ, उत्कृष्ट मूल्यों का प्रतिपादन करने वाली, विचार प्रधान … वगैरह,, वगैरह जैसी किताब होगी. पहले ही स्पष्टीकरण इसलिये दे दिया कि मेरे साथ ये ऐसा जुड़ गया है जैसे बैंकिये के साथ 'लेट सिटिंग.' मैने किताब पकड़ी नही, उसका ज़िक्र किया नही कि होने लगता है, “ आ गये ये फिर कोई किताब की चर्चा लेकर, अब झेलो और खाली तारीफ की तो पूछ बैठेंगे कि क्या अच्छा लगा, विवेचना करें.” ऐसा इसलिये भी कह रहा हूँ कि पिछले दिनों “क” के दो अंश पोस्ट किये थे. उत्तम भाई बोले, “ बहुत गरिष्ठ है.” लखी ने हाजमोला मांगा और रजनीश ने कहा, “ अभी भी कुछ पल्ले नही पड़ा. “ घबराईये नही, इस बार ऐसा कुछ नही है. ( हाँ, अगली..... अगली....... अगली बार के लिये आगाह कर दूँ कि “क” पर तीसरी पोस्ट आनी है और इस पोस्ट मे पुस्तक अंशों के साथ मेरी टिप्पणियां भी होंगी.)
इस समय जिसकी चर्चा कर रहा हूँ, वो किताब है “ मसाला चाय “ और इसके लेखक हैं, , दिव्य प्रकाश दुबे. यह उनकी दूसरी किताब है. दुबे रुड़की से इंजीनियरिंग, पुणे ( SIBM ) से मार्केटिंग से MBA करने के बाद एक टेलीकॉम कम्पनी मे मार्केटिंग मैनेजर हैं और साथ ही फिल्म मेकिंग, स्क्रीनप्ले, लिरिक, कॉपी - राइटिंग आदि मे सक्रिय हैं व 2011 से फिल्म राइटर एसोसिएशन के सदस्य हैं. “डस्ट जैकेट” ( किताब के पिछला कवर / हार्ड बाउंड किताबों मे अन्दर की तरफ ) पर इनके परिचय मे यह भी लिखा है, “ … इनके ऑफिस मे लोग समझते हैं कि DP बेसिकली एक लेखक हैं जो मार्केटिंग भी कर लेते हैं जबकि बाक़ी लिखने वाले दोस्तों का मानना है कि ये एक अच्छे मार्केटिंग मैनेजर हैं जो लिख भी लेते हैं... “ किताब हिन्द-युग्म प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित है.
किताब पर कुछ कहने से पहले दो बातें और. एक तो यह कि इस बार एक किताब जो मै खरीदना चाहता था ( “महागुरु मुक्तिबोधः जुम्मा टैंक की सीढ़ियों पर” - लेखक कान्ति कुमार जैन-- संस्मरण, सामयिक प्रकाशन ) पुस्तक मेला मे न मिल सकी तो अभी 4 तारीख को यूनिवर्सल - कपूरथला, लखनऊ से खरीदी, साथ मे अरविन्द कुमार का समान्तर कोश - दो खण्ड, एक किताब “ मेरे मञ्च की सरगम” - थियेटर के गीतों का संग्रह और “ मसाला चाय “ खरीदी. . दूसरी बात, कि मेरी बेटी अपेक्षिता ने उसी शाम “मसाला चाय” पढ़ डाली और उसकी राय थी, “... बस ऐसे ही है... “ उसके साथ यह है कि बचपन से अब तक उसने हिन्दी की उत्कृष्ट/ साहित्यिक किताबें पढ़ी हैं ( अंग्रेजी मे कोई गुरेज नही है, उसमे हल्का-फुल्का ही पढ़ती है ) तो हल्का-फुल्का उसे “बस ऐसे ही” लगता है. इस किताब के बारे मे मेरी राय उससे अलग है.
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किताब और उसकी कहानियां हल्की-फुल्की हैं, जेब पर भी भारी नही - मात्र Rs. 100.00 की है. भाषा भी टकसाली नही बल्कि वह है जो हम-आप बोलते हैं, बीच-बीच मे अंग्रेजी के शब्द ही नही, पूरे वाक्य भी हैं. कथ्य आस-पास से उठाया गया है. किशोरों व युवाओं की बातें. किशोरों की जिज्ञासायें -- प्यार क्या है, कैसे होता है, क्या गंदी बात है ? वर्जित चीजों मे क्या है ? घर /स्कूल मे पूछने पर डांट -मार खाने व जिज्ञासा शमन न होने पर चोरी छिपे उनका अनुभव लेना, कैरियर, ब्रेक अप, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी और उसके दौरान टाईम पास, फ्लर्ट टाईप का कुछ. मतलब वो तमाम विषय जिनसे सभी लोग दो-चार हो चुके होते हैं. इनका सपाट पाठ्यक्रमीय विश्लेषण नही बल्कि जैसे चल रहा है, वैसे ही देखना और बताना. यही वजह है कि किताब, उसका कथ्य व शैली हल्की लग सकती है. कुछ लखनऊ की घटनायें हैं तो कुछ दिल्ली की. इसी के बीच कुछ ऐसी बातें निकल कर सामने आती हैं जिन्हे महसूस सबने किया होगा किन्तु कहा / लिखा नही. अब हर कहानी का सार संक्षेप नही दूंगा, बस कुछ अंश दे रहा हूँ.
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... बड़ा ही अजीब हो जाता है ऐसे किसी बंदी से बात करना जो कि आने वाले कल मे आपकी बीवी हो सकती है. आपको पता होता है, आपको शुरू तो जीरो से करना है लेकिन इस बार आपको जान-पहचान से दोस्ती वाली सीढ़ी पार नही करनी. ये वैसे ही है जैसे किसी tournament मे टीम सीधे फाइनल खेलने के लिये उतरे और उससे पहले कोई प्रैक्टिस मैच भी खेलने को न मिला हो... “
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... Please tell something which is not written in the resume and please be honest.”
ये जो and please be honest है न, बार-बार इसलिय बोला जाता है ताकि ग़लती से कोई बंदा बातों मे आकर भूल गया कि उसको सब सच बोलना है तो वो एक बार सोच ले और वही बोले जो इंटरव्यू crack करने के लिये ठीक हो. वर्ना ज्यादा honest होने के जो फायदे - नुकसान हैं, वो किसी से छुपे ठोड़े ही हैं...” **** please be honest का मतलब यह नही है कि झूठ नही बोलना है बल्कि केवल वो सच बोलने हैं जो नौकरी दिलवाने के लिये काफी हैं.
( साक्षात्कार की इस चर्चा मे यहां नौकरी को नौकरी / प्रोन्नति पढ़ें )
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... ऐसे ही एक दिन साइकिल से स्कूल जाते हुए धुन ने सुरभि से पूछा,
प्यार क्या होता है”
सुरभि सवाल सुनके ज़ोर से हँसी और बोली, “ मुझे क्या पता !”
प्यार कब होता है ?” धुन ने सवाल बदल के पूछा.
अरे यार ! मुझे क्या पता !” सुरभि ने थोड़ा खीझते हुए कहा.
तो पता करके बता. टी वी पे, मूवीज मे हर जगह हर कोई इतना प्यार कर रहा है. even घर पर भी पापा ऑफिस जाने से पहले मम्मी को love you बोल के जाते हैं”
ओये, छोड़ न यार, प्यार-व्यार.”
नही, मुझे पता लगाना है. तू कुछ हेल्प कर.”
( ये वो सवाल हैं जो हर किशोर को पूरी शक्ति से उद्वेलित करते रहते हैं किन्तु उन्हे इसका ठीक-ठीक उत्तर कहीं नही मिलता. घर पर पूछने पर डांट / मार मिल सकती है या गोल-मोल उत्तर. यही स्कूल मे होता है. तब ये किशोर अपने समवयस्कों से / अपने से कुछ बड़ों से, जिनका 'चक्कर' चल रहा होता है, उनसे. अश्लील / अर्धअश्लील किताबों / फिल्मों से, नेट से... गरज़ ये कि तमाम जगहों से जानने की कोशिश करते हैं. मिलता क्या है - अधकचरी जानकारी या यौन का कुछ क्रियात्मक अनुभव. यह कहानी ऐसे ही सवालों से दो-चार होती है और किशोरों से ज्यादा बड़ों के attitude को दर्शाती है. जैसा कि मैने पहले कहा, इस किताब की कहानियां गम्भीर सवालों को बात-चीत के रोजमर्रा के अंदाज़ मे पेश करती हैं. उपदेशात्मक नही हैं सो कोई समाधान नही देतीं. बस पढ़ें और समाधान खुद तलाशें. हाँ, बाल से लेकर किशोर और युवा मन को सही से दिखाती हैं )
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... अक्सर अजनबी लोग बड़े सही रहते हैं, उनको कुछ भी बता दो. अनजान लोग कुछ ही देर मे हमारे बारे मे इतना जान जाते हैं जितना कभी करीबी नही जान पाता.हम अपने करीबी लोगों के लिये उम्र भर अजनबी ही रहते हैं. इस बंदी ने अपना नम्बर बड़ी ही आसानी से मुझे दे दिया और मैने भी कहा था कि लखनऊ मे पक्का मिलते हैं कभी... “
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... पापा शुरू से टॉपर रहे थे इसलिये कभी समझ नही पाये थे कि टॉपर के अलावा बाक़ी लोग दुनिया मे ज़िंदा कैसे रहते हैं. उनकी नौकरी कहाँ लगती है,वे खाते कैसे हैं और अपना घर कैसे चलाते हैं ! पापा की दुनिया स्कूल टॉप करने से शुरू हुई थी और कॉलेज टॉप करते-करते IAS बन गये थे. वो बात अलग है कि UPSC ( IAS वाला exam ) मे वो टॉप नही कर पाये थे जिसका मलाल उनको आज भी था. ..”
चूंकि उनको टॉपर ही पसंद थे तो उनको अपने ही बैच की लड़की से प्यार हुआ जो अपने कॉलेज की टॉपर थी... “
कभी भी यह देखना हो कि सरकारी ( बैंक वाला भी ) अधिकारी अच्छा है या खराब तो बस उठा के देख लो कि उसकी पिछली कुछ पोस्टिंग्स कहाँ-कहाँ हुई हैं. अगर पिछले 5-10 साल मे उसकी posting केवल अच्छी जगहों पर हुई हैं तो वो अधिकारी, अच्छा अधिकारी कम, अच्छा मैनेजर ज्यादा होता है और अगर पोस्टिंग खराब जगहों पर हुई है तो वो अधिकारी अच्छा अधिकारी होता है, जो अपनी postings manage नही कर पाता... “
कई रिश्ते केवल इसलिये बचे रहते हैं और लंबे चलते हैं क्योंकि उन रिश्तों मे वही कहा जाता है जो दूसरा सुनना पसंद करता है... “
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... दुनिया मे mute का बटन रिमोट मे आने से बहुत पहले से हुआ करता था. सच को जब भी दुनिया के जिस भी हिस्से मे बोला गया है, किसी न किसी ने उसको mute करने की कोशिश की है, यह कोशिश कोई नयी नही है... “
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पुस्तक अंश के साथ तिरछे अक्षरों मे दिये गये वाक्य मेरे हैं, उन कहानियों के नही जहाँ से ये टुकड़े उठाये गये हैं.
राज नारायण

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