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Saturday 22 February 2020

शिव जी का कपाली नाम !



जय भोलेनाथ.
सब पंचन का शिवरात्रि की राम राम. शिवरात्रि मा राम-राम ! तो भईया, शिव केर ध्यान राम जी मा लगत है उई उनका आराध्य मानत हैं तो राम जी शिव जी का. शिव जी तो उनपै इत्ते फिदा हैं कि जब पारवती जी उनकी परीक्षा लीन, सीता का भेख धरि के, तो शिव जी उनका त्यागै दीन. काहे ते कि एक तो राम जी की परीक्षा लीन, दूजे पूछे पर झूठ बोलिन कि कुछौ परीक्षा-वरीक्षा नाई लीन, तुमरी नाइ परनाम कीन औ चलि दिहेन औ तीजे ई कि उइ सीता का भेख धारिन औ सीता तो मा दाखिल आंय तो माता का भेख धरै वाली का भार्या कैसे मानी. ई सब प्रसंग तुलसी बाबा रामचरित मानस के बालकांड मा बखानिन हैं. रामौ जी शिव जी का मानत रहें, लंका के सागर तट पर् सिवलिंग की थापना करके पूजा कीन और कहिन कि जो हमका मानी औ शिव केर अनादर करी ऊ कलप भर घोर नरक मा वास करी. लंकाकांड मा तुलसी बाबा राम के मुख से कहिलाइन हैं –

“ लिंग थापि विधिवत करि पूजा । सिव समान प्रिय मोहि न दूजा ॥“
“ सिव द्रोही मम भगत कहावा । सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा ॥
संकर बिमुख भगति चह मोरी । सो नारकी मूढ़ मति थोरी ॥
              संकरप्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास ।
             ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास ॥“

( अब नर कहिन हैं तो ई न जानेव कि नारिन का कौनों दोख नाई लगत है, ई उनहू पर लागू होत है. ई तो कहे का चलन आय के नरै कहा जात है. नरभक्षी सेर के सामने नारी पड़ि जाय तो का ऊका न खईहे के हम तो नरभक्षी बाजित है, नारी का काहे भक्षी ! )

तो भईया, रामनवमी मा कहो जयसंकर और महासिवरात्रि मा राम-राम. बाबा तुलसी दुइनों का एक दूजे का भगत दिखाय के सैव-वैष्नव  का वैमनस्य खतम कईके सन्मवय साधिन हैं तो हमहू राम-राम कहेन.

सिव तो बहुतै पुरान आंय, पुरिखा ! आदि पुरुख, अनादि, अनन्त, अजन्मा. ऊ तो ब्रह्मा के बराबर के आंय बल्कि उनतेऊ बड़े, सक्तिसाली और उनहू का दंड दे का समरथ राखे वाले. एक प्रसंग बखानित है जब सिव ब्रह्मा का दंड दीन औ ऊका प्रायश्चितौ कीन. सृष्टि के प्रारम्भ की बात आय, ब्रह्मा देवन का जनम दै चुके तो अपने वक्षस्थल से एक नारी का जनम दीन, नाम बुदबुदात भये उचारिन – गायत्री के सतरूपा के सावित्री के सरस्वती – इत्ते धीमे बोले के उनके मानसपुत्रन का कछु स्पष्ट न भवा मुदा ऊ सुन्दर लड़की का नाम सरस्वती भवा. अब ब्रह्मा ऊपै मोहित भये. ई मोह पुत्री पै ममता या वात्सल्य वाला न हुईके वासना वाला रहे. जब ऊ कन्या उनकी पैकरमा करत रहे तो जिधर ऊ घूमै, ब्रह्मौ ऊधरै मू घुमाय लें. ऊका लालसा से निहारैं. अईसे सर घुमाय के देखै की कोसिस मा ऊ जिधर जाय, ब्रह्मा का एक सर उग आवै. ई तनि उनके तब पाँच सर भये. उनके मानसपुत्रौ ई देखत रहें, मनहीमन गुस्सायें, धिक्कारें मुदा कुछु करि न सकत रहें. पुत्रन का तो भगाय दीन मुदा सिव का पुत्री पर कुदृष्टि बरदास न भई. ईहौ भवा रहे के ब्रह्मा केर पाँचवा मुख शिव का कुछ घमंड से अपमानजनक कहि दिहिस. सिव भैरव के भयंकर रूप मा प्रगटे औ आपन बांए हाथ के अंगूठा के नाखून से ब्रह्मा केर पाँचवा सर काट दिहिन. अब भा ई के जब सिव ऊ सर का उछाल के फेंके चहिन तौ ऊ उनकी हथेली से चिपकु गा. लाख जतन कीन छुड़ावै का मुदा अलगै न होय. ऊ सर हथेली पर चिपका रहा. यही बदे सिव केर एक नामु कपाली भा. अब ई रहै तो एक गम्भीर अपराध तो सिव तीरथ-तीरथ घूमत फिरे कि जाने कऊन तीरथ के महातम ते ई सर छूट जाय औ उनका अपराध का विमोचन होय. अब सिव भटकत फिरैं औ उनके पाछै नारि रूप धारि के ब्रह्महत्या फिरै. देवदार के वनन से भटकत भये सिव पहुँचे मृगशीर्ष के आँठवें दिन एक मशान मां औ अर्ध्य देत देत ऊ कपाल चूर-चूर हुई कै गल गा. सिव का अपराध मोचन भा औ ब्रह्महत्या भूमि की दरार मा समाय गै.

तमाम प्रसंग आंय सिव महिमा के. ई प्रसंग पुरानन मा बखाना है मुदा हम लीन है रॉबर्तो कलासो की किताब “क” से जो इतालवी से अंग्रेजी मा और फिर हिन्दी मा अनूदित है. अनुवादक आंय देवेन्द्र कुमार औ किताब राजकमल प्रकाशन से प्रकासित भै है.

आजु महासिवरात्रि के पर्व पर सिव महिमा हम अवधी मा बखानेन काहे ते आजु मातृ भाखा दिवस आय औ हमार मातृभाखा तो अवधी आय. अवधी का गोड़ लागि के परनाम. आप पंचन का भाखा समझै मा कहु दिक्कत होय तो माफी चाहित है, बेखटके पूछ लिहो जो न समझ आवै. वईसे सिव महिमा आय तो सिव परताप ते दिक्कत न होयक चही.
जय भोलेनाथ !


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