गाँधी जयन्ती की पूर्वसन्ध्या पर गाँधी जी की तो याद आयी ही किन्तु उनसे भी अधिक कुछ और लोगों की याद ज़ोर मारने लगी. इधर कुछ वर्षों में यह चलन हो गया है, फेसबुक, व्हाट्स ऐप और ट्वीटर आदि पर तो ज़ोर शोर से ही, कि गाँधी जयन्ती पर गाँधी जी को याद न करके कुछ और लोगों को याद किया जाय, उनकी बात की जाय – इस दिन तो ज़रूर ही चाहे बाक़ी तीन सौ इकसठ ( तीन सौ चौसठ इसलिए नही कि एक-दो दिन तो उनकी भी जयन्ती पुण्यतिथि वगैरह पड़ जाती है जिन्हे गाँधी जयन्ती के दिन याद किये जाने का चलन है ) दिन उन्हे बिसराए ही रखा जाता हो. अब जब ये चलन ही हो चला है तो भला मैं कैसे न याद करता दूसरों को - याद कर रहा हूँ.
वो क्या है कि गाँधी जयन्ती के दिन लगभग सब जगह छुट्टी रहती है किन्तु जिनकी वजह से छुट्टी मिलती है, उनको याद करने के बजाय बहुत से लोग बैंक और बैंकियों ( बहुतेरे बैंकिये अपने को बैंकर्स कहते हैं ) को बड़ी शिद्दत से याद करते हैं. बहुधा बैंकियों से फोन करके या प्रत्यक्ष पूछते हैं, “ कल बैंक भी बन्द रहेंगे क्या !” यह वाक्य जानकारी चाहने वाला सामान्य वाक्य भर नही है – इस एक वाक्य में जिज्ञासा, आश्चर्य, कौतूहल, धिक्कार, खेद ... जाने कितने भाव भरे हैं. यह बोल कर नही बल्कि लिख कर पूछा गया होता तो इसमें प्रश्नवाचक चिन्ह ? नहीं, बल्कि विस्मयादिबोधक चिन्ह ! लगा होता. बताईये भला ! यह भी कोई बात हुई कि जिस दिन हमारी छुट्टी हो उस दिन बैंक भी बन्द रहें. जाने कितने तो काम होते हैं बैंक के जो आज कर आते मगर नहीं, बैंक ही बन्द है ! हमें और सब कार्यालय बन्द होने से परेशानी नहीं किन्तु बैंक भी बन्द हैं !!! शहर में तो नहीं किन्तु गाँव, कस्बा, तहसील, छोटा जिला आदि की शाखाओं में दस- बीस लोग चैनल बन्द देख कर भी गार्ड से पूछने आ जाते हैं, “ आज बैंक बन्द है !” या “आज बैंक काहे बन्द है ?” गार्ड द्वारा बताये जाने पर ही उन्हे पता चलता है कि गाँधी जयन्ती पर अन्य कार्यालयों की तरह बैंक में भी छुट्टी रहती है और यह सरकार का नियम है. हमें तो इसमें बैंक वालों की एक साजिश और लगती है कि महीने के शुरू में ही दो अक्टूबर रखवा दिया, कितने तो काम होते हैं बैंक के महीने की शुरुआत में और छुट्टी रख ली धूर्तों ने !
बैंक और बैंकियों के अलावा जो और लोग
/ वर्ग शिद्दत से याद किये जाते हैं उनमें से दूसरे पायदान पर हैं देशी-अंग्रेजी दारू
की दुकानें और उनके सेल्समैन. मद्यपों में कुछ लोग दूरदर्शी होते हैं , वो गाँधी जयन्ती
की पूर्व सन्ध्या पर ही खरीद कर रख लेते हैं
किन्तु सब तो ऐसे सजग नागरिक नही होते ना ! वे ठेका / दुकान / मॉडल शॉप / बार आदि बन्द
देख कर उन सेल्समेन को याद करते हैं जो सांकेतिक तरीके से शटर खटखटाने पर 1/20 शटर खोल कर माल थमा देते हैं या पिछवाड़े
की गली में आने को कह देते हैं. इस अवसर पर
दुकान के पास जूस का ठेला लगाने वाले भी याद किये जाते हैं. कुछ लोग मित्रों को भी
याद करते हैं, “ कुछ रखे हो क्या ! याद ही नही रहा नही तो कल ही ले लिये होते” ऐसे
संदेश सोशल मीडिया ( व्हाट्स ऐप ) पर भी इस
तरह दिये जाते हैं, “ दवा की बहुत ज़रुरत है और आज दुकाने बंद हैं. किसी के पास हो
तो दे दे.” अब लोग समझ लेते हैं कि दवा-दारू वाली दवा की बात हो रही है. तो गाँधी जयन्ती
पर बजाय गाँधी जी को याद करने के लोग बैंक वालों के साथ इन्हे भी याद करते हैं.
अब आते हैं वो जो इधर छह-सात साल से
गाँधी जयन्ती पर इतना याद किये जाते हैं कि पहले पायदान के हक़दार हैं – वे विभूति
हैं भगतसिंह ! गाँधी जयन्ती पर सबसे ज़्यादा याद किये जाते हैं भगतसिंह और वो भी अपनी
शहादत, विचारों या और किसी सन्दर्भ में नहीं बल्कि बस इस सन्दर्भ में कि “ गाँधी जी
ने भगतसिंह की फांसी रुकवाने के लिये कुछ नही किया / वे चाहते तो फांसी रुकवा सकते
थे / गाँधी चाहते थे कि भगतसिंह को फांसी हो जाय “ आदि, इत्यादि. न गाँधी जी के काम
याद किये जाते हैं, न भगत सिंह के – ये वर्ग बस गाँधी जयन्ती पर इस तरह भगत सिंह को
याद करता है. कल देखियेगा, है तो गाँधी जयन्ती किन्तु याद भगत सिंह किये जायेंगे फेसबुक,
व्हाट्स ऐप और ट्वीटर आदि पर.
भगत सिंह के अलावा गाँधी जयन्ती पर कुछ छुटपुट लोग और घटनाएं भी याद किये जाने का चलन फेसबुक, व्हाट्स ऐप और ट्वीटर आदि पर है. ये वो औरतें / लड़कियाँ हैं जिनके साथ गाँधीजी के अंतरंग सम्बन्धों को चटखारे ले-लेकर याद किया जाता है और याद दिलाया जाता है. गाँधी जी के कार्यों आदि का समग्र मूल्यांकन न करके बस उन महिलाओं को याद किया जाता है. बाक़ी दिनों उन महिलाओं का भी कोई नामलेवा नही होता किन्तु इस दिन वे चर्चा में होती हैं - कोई डायरी खंगाली जाती है तो किसी की स्वीकारोक्ति तो किसी किताब के सन्दर्भ तलाशे और पोस्ट किये जाते हैं.
हे राम!
ReplyDeleteधन्यवाद गोपाल जी ! गांधी जी से असहमत होना और बात है, असहमति का वे भी आदर करते थे किन्तु उन्हे नकारने के लिए एक और महान व्यक्ति और अन्य लोगों का सहारा लेना ... ये वास्तव में 'हे राम !' वाली बात है.
Deleteकहा जाता है कि गांधी एक व्यक्ति नहीं, विचार हैं लेकिन आज कल उनके विषय में इतने भिन्न भिन्न विचार प्रकट किए जाते हैं कि आम आदमी बार बार भरम में पड़ जाता है कि किसे सही माने। आपकी यह पोस्ट गांधी जयंती पर सामयिक बिंदुओं पर आधारित है और बढ़िया लिखी हुई है। साधुवाद।
ReplyDeleteसही कहा उत्तम भाई ! भ्रम पैदा करने वालों ने न गांधी जी को पढ़ा और न ही भगत सिंह को और न ही उन घटनाओं को जो इतिहास में अंकित हैं. ये व्हाट्स ऐप युनिवर्सिटी के दीक्षित हैं, उतना ही उगल देते हैं, जितना उनमें फिड किया गया है.
Deleteकहा जाता है कि गांधी एक व्यक्ति नहीं, विचार हैं लेकिन आज कल उनके विषय में इतने भिन्न भिन्न विचार प्रकट किए जाते हैं कि आम आदमी बार बार भरम में पड़ जाता है कि किसे सही माने। आपकी यह पोस्ट गांधी जयंती पर सामयिक बिंदुओं पर आधारित है और बढ़िया लिखी हुई है। साधुवाद।
ReplyDeleteसदैव प्रासंगिक गांधीजी पर एक सुन्दर आलेख।
ReplyDeleteधन्यवाद सौरभ !
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