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Tuesday, 1 June 2021

संक्षिप्त रामायण

 

क्या महाराज ! लॉक डाउन है कि सुरसा के मुह की तरह बढ़ता ही जा रहा है, लोग भी निकल नहीं रहे तब भी आप पोथी-पत्रा लेकर आ गये मंदिर पर. “

 “आओ भाई ! अब तुम आये कि नहीं. अरे पूरी बाँह के कपड़े पहनों, सर्जिकल ग्लब्स पहन लो, डबल मास्क लगाओ, सेनेटाईजर का इस्तेमाल करो, और दो गज की दूरी रखो तो मंदिर आने में क्या दिक्कत. बस भीड़ न हो और बहुत देर न बैठें तो दिक्कत नहीं. और फिर वो व्हाट्स ऐप के मैसेज और फेसबुक पर घूम रही स्टोरी नहीं पढ़ी कि इन्द्र, जने शिव जी ने बारह साल तक वर्षा न करने व डमरू न बजाने का निर्णय किया फिर भी एक किसान खेत में काम करता रहा कि कहीं खेती –किसानी भूल न जाए. उधर पार्वती जी ने भी शिव जी को उकसाया कि कहीं आप डमरू बजाना भूल गये तो ! तो क्या, भोले भण्डारी आ गये पार्वती जी की बात में, डमरू बजाया और उधर झमाझम बरसात. तो मॉरल ऑफ द स्टोरी के मुताबिक मैं क्यों अपना काम छोड़ूँ !”

 “बात तो आप सही कह रहे हैं. तो आज क्या सुनाने का विचार है ?”

 “और क्या सुनायेंगे ! रामकथा ! वैसे तो भगवान के सब रूपों में हमारी आस्था है, सबके चरित पावन और मनोहर हैं किन्तु हमारा मन रामकथा में अधिक रमता है और रमे भी क्यों ना ! देवों के देव महादेव भी तो रामरस प्रेमी हैं. उन्होनें रामचरित को मन में रखा सो वह संभु रचित रामचरितमानस हुआ –

                      रामचरितमानस मुनि  भावन। विरचेउ  संभु  सुहावन  पावन॥

                      रचि महेस निज मानस राखा। पाइ  सुसमउ सिवा सन भाषा॥

                      तातें    रामचरितमानस   बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥

 “ अति उत्तम ! किन्तु रामकथा तो बहुत बड़ी है, रामजन्म के पूर्व से लेकर राम-रावण युद्ध, रावण वध और अयोध्या लौटने तक की. मानस के उत्तरकाण्ड में और भी प्रसङ्ग हैं. अब इतना तो कई दिन का कार्यक्रम है. कोई शार्टकट नहीं है कि रामकथा भी हो जाय और समय भी अधिक न लगे, बस आज भर की बैठक में पूर्ण हो जाय ?”

 “ है क्यों नहीं ! शार्टकट चाहने वालों के लिए ‘एक श्लोकी रामायण’ है. सुनो -

 आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्‍।

 वैदेहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्‍॥

 बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्‍।

 पश्चाद्‍ रावण कुम्भकर्ण हननम्‍, एतद्वि रामायणम्‍॥“

 

(श्री राम वनवास गये, वहाँ उन्होनें स्वर्ण मृग का वध किया. रावण ने सीताजी का हरण किया, जटायु रावण के हाथों मारा गया. श्री राम और सुग्रीव की मित्रता हुई श्री राम ने बाली का वध किया. समुद्र पार किया. लंका का दहन किया. इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया, यही रामायण है.)

और शार्ट चाहो तो एक और है ‘ एक रहे राम, एक रहे रावन्ना … ‘ करके ! किन्तु वो भाषा की दृष्टि से न रसपूर्ण है, न ही कोई भक्ति भाव जाग्रत होता है सो वह कहना उचित नहीं”

 “क्या महराज ! अब शार्टकट कहा तो इतना शार्ट पर उतर आये. अरे, रामकथा क्या इतनी सी ही है ! अरे भई, कुछ ऐसी नहीं है कि क्या गायन-वादन भी हो, कथा भी लगभग पूरी हो.”

 ‘है क्यों नहीं ! वो भी है. बाबा तुलसी ने बहुत ध्यान रखा है. वो भविष्यदर्शी थे. जानते थे कि ऐसा भी समय आयेगा कि लोगों के पास इतना समय न होगा कि पूरी रामकथा सुनें. समय भी होगा तो ऊबने लगेंगे. आधे से अधिक मोबाईल चलाते रहेंगे या फिर समानान्तर सास-बहू-पड़ोसन पुराण चलेगा. ‘अखण्ड रामायण’ के नाम पर चौबीस घण्टे में मानस का पाठ बैठा तो देते हैं किन्तु कहाँ बैठाने वाला उसमें बैठता है. पेशेवर मण्डली बुला ली और लाऊडस्पीकर लगा कर हुआ नई-पुरानी फिल्मी धुनों पर मानस गान. सच कहो ! उसमें रामरस मिलता है क्या ?”

 “सो तो है महराज ! मगर इतना समय इस सब में वेस्ट कर दिया, संक्षिप्त रामकथा, जिसमें रामरस मिले, वो कहिए ना !”

 “और दस-बारह लोग भी दिख रहे हैं. धूप-दीप करके हारमोनियम बजाता हूँ, ले तो आओ सामने के घर से. जब लहरा बजेगा, शंख बजेगा, मौसम बनेगा तो और लोग भी जुटेंगे.

                                                            अब ये सब हुआ तो लोग आने लगे. मतलब भर के श्रद्धालु श्रोता जुट गये.

 तो भक्तों, तुलसीदास जी ने मानस के उत्तरकाण्ड में दोहा ६३/४ से दोहा६७/४ तक काकभुसण्डि – गरुण संवाद में संक्षिप्त रामायण कही है. गरुण को मोह हुआ. मानस में सती, नारद और गरुण के मोह प्रसङ्ग हैं. मोह किसी के प्रति नहीं बल्कि प्रभु की माया से ग्रस्त होकर इन्होनें राम के ब्रह्म या अवतार होने पर शङ्का की सो उनका मोह निवारण भी किया गया. गरुण को मोह हुआ तो वे कई लोगों के पास गये, अन्ततः शिवजी के पास भेजे गये, शिव जी ने उन्हें काकभुसण्डि जी (कौआ रूप में एक परम भक्त ) के पास भेजा. काकभुसण्डि जी ने उनके मोह का निवारण तो किया ही, जिज्ञासा पर अन्य प्रसङ्ग भी सुनाये. उसी में राम कथा भी संक्षेप में सुनायी, सुनो -    

            

प्रथमहिं अति अनुराग भवानी। रामचरित सर कहेसि बखानी॥

पुनि नारद कर  मोह अपारा। कहेसि  बहुरि रा वन अवतारा॥

 प्रभु अवतार कथा पुनि गाई। तब सिसु चरित कहेसि मन लाई॥

                              बालचरित कहि बिबिधि बिधि मन मँह परम उछाह।

                              रिषि  आगवन   कहेसि   पुनि   श्रीरघुबीर  बिबाह॥

 बहुरि  राम  अभिषेक  प्रसंगा। पुनि नृप  बचन राज रस भंगा॥

पुरबासिन्ह कर बिरह बिषादा। कहेसि राम लछिमन संबादा॥


 बिपिन  गवन  केवट  अनुरागा। सुरसरि उतरि निवास प्रयागा॥

बालमीकि प्रभु मिलन बखाना। चित्रकूट  जिमि बसे भगवाना॥


 सचिवागवन  नगर नृप मरना। भरतागवन   प्रेम  बहु  बरना॥

करि नृप क्रिया संग पुरबासी। भरत गए जहँ प्रभु सुख रासी॥


 पुनि रघुपति  बहुबिधि  समुझाए। लै   पादुका   अवधपुर   आए॥

भरत रहनि सुरपति सुत करनी। प्रभु अरु अत्रि भेंट पुनि बरनी॥

 

                     कहि  बिराध बध  जेहि बिधि  देह तजी  सरभंग।

                     बरनि सुतीछन प्रीति पुनि प्रभु अगस्ति सतसंग॥

 

कहि  दंडक  बन  पावनताई। गीध  मइत्री  पुनि   तेहिं  गाई॥

पुनि प्रभु पंचबटी कृत बासा। भंजी सकल मिनिह्न की त्रासा॥

 

पुनि लछिमन उपदेस अनूपा। सूपनखा जिमि कीन्हि कुरूपा॥

खर दूषन बध बहुरि बखाना। जिमि सब मरमु दसानन जाना॥

 

दसकंधर  मारीच  बतकही। जेहि बिधि भई सो सब तेहिं कही।

पुनि माया सीता कर हरना। श्रीरघुबीर   बिरह   कछु   बरना॥

 

पुनि प्रभु  गीध क्रिया जिमि कीन्ही। बधि कबंध सबरिहि गति दीन्ही॥

बहुरि    बिरह   बरनत   रघुबीरा। जेहि   बिधि   गए  सरोबर  तीरा॥

 

                       प्रभु नारद संबाद कहि मारुति मिलन प्रसंग।

                       पुनि  सुग्रीव  मिताई  बालि  प्रान  कर भंग॥

                                      कपिहि तिलक करि प्रभु कृत सैल प्रबरसन बास।

                                      बरनन  बर्षा  सरद  अरु  राम  रोष  कपि  त्रास॥

 

जेहि बिधि कपिपति कीस पठाए। सीता खोज सकल दिसि धाए॥

बिबर  प्रबेस  कीन्ह  जेहि भाँती। कपिन्ह  बहोरि  मिला संपाती॥

 

सुनि  सब कथा  समीर कुमारा। नाघत   भयउ  पयोधि  अपारा॥

लंकाँ कपि प्रबेस जिमि कीन्हा। पुनि सितहि धीरजु जिमि दीन्हा॥

 

बन उजारि रावनहि प्रबोधी। पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी॥

आए कपि सब जँह रघुराई। बैदेही   की   कुसल   सुनाई॥

 

सेन    समेति     जथा    रघुबीरा। उतरे जाइ बारिनिधि तीरा॥

मिला बिभीषन जेहि बिधि आई। सागर निग्रह कथा सुनाई॥

 

                       सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी सागर पार।

                       गयउ बसीठी बीरबर जेहि बिधि बालिकुमार॥

                                           निसिचर कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार।

                                           कुंभकरन  घननाद  कर बल  पौरुष  संघार॥

                           

निसिचर निकर मरन बिधि नाना। रघुपति रावन समर बखाना॥

रावन    बध    मंदोदरि    सोका। राज  बिभीषन  देव असोका॥

 

सीता   रघुपति    मिलन   बहोरी। सुरन्ह कीन्हि अस्तुति कर जोरी॥

पुनि पुष्पक चढ़ि कपिन्ह समेता। अवध  चले   प्रभु  कृपा  निकेता॥

 

जेहि बिधि राम नगर निज आए। बायस बिसद चरित सब गाए॥

कहेसि बहोरि  राम अभिषेका। पुर  बरनत  नृपनीति  अनेका॥

 

कथा   समस्त  भुसुंड  बखानी। जो  मैं तुम्ह सन कही भवानी॥

सुनि सब राम कथा खगनाहा। कहत बचन मन परम उछाहा॥

 

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कहो ! बहुत कठिन तो नहीं अर्थ समझना कि अर्थ भी करके बताऊँ ?”

 “नहीं, नहीं ! अब इतना कठिन भी नही फिर भी जिन्हें कठिन लग रहा होगा तो कल की सभा ( यहाँ पर टिप्पणियों में ) पूछेंगे, तब सरलार्थ भी कर दीजिएगा.”

 “ यही मेरा भी विचार है. अब संक्षेप वाली बात है तो अर्थ करने में बहुत विस्तार हो जाएगा / पोस्ट बड़ी हो जाएगी सो अर्थ पूछने पर.”

 “ जय हो ! अब एक बात और बताईये. ये हाथ में क्या लिए हैं मानस के अलावा ? ये तो कुछ चित्र से लगते हैं. चित्र भी नहीं, पाण्डुलिपि के पृष्ठ लगते हैं. क्या हैं ये, ज़रा दिखाईये और बताईये इनके बारे में. “

 




“अनुमान सही भी है और ग़लत भी. फेसबुक पर एक पेज है, FOUNTAIN PEN CLUB INDIA. उसमें फाउण्टेन पेन के प्रेमी जन पेन, इंक आदि की चर्चा करते हैं, फोटो पोस्ट करते हैं और लिखावट भी. इन्ही में से एक, अनुपम गोस्वामी,  ने पाण्डुलिपि शैली में उत्तरकाण्ड की संक्षिप्त राम कथा लिखी. बहुत ही सुन्दर लिखावट है. वो पृष्ठ इस पोस्ट की प्रेरणा भी बने. आप सब भी देखें इतनी अच्छी लिखावट. अन्य वितरण इस प्रकार हैं –

 

                        My first attempt at a traditional looking manuscript.  

                        Paper: handmade paper by Ayush Surana

                        Pen: RC Devanagari by Rajeev Chauhan

                        Inks: krishna IG black and MB Corn Poppy red

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