“क्या महाराज
! लॉक डाउन है कि सुरसा के मुह की तरह बढ़ता ही जा रहा है, लोग भी निकल नहीं रहे तब
भी आप पोथी-पत्रा लेकर आ गये मंदिर पर. “
रामचरितमानस मुनि भावन। विरचेउ संभु सुहावन
पावन॥
रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस
बर।
धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥
वैदेहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्वि रामायणम्॥“
(श्री
राम वनवास गये, वहाँ उन्होनें स्वर्ण मृग का वध किया. रावण ने सीताजी का हरण किया,
जटायु रावण के हाथों मारा गया. श्री राम और सुग्रीव की मित्रता हुई श्री राम ने बाली
का वध किया. समुद्र पार किया. लंका का दहन किया. इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया,
यही रामायण है.)
और शार्ट चाहो तो एक
और है ‘ एक रहे राम, एक रहे रावन्ना … ‘ करके ! किन्तु वो भाषा की दृष्टि
से न रसपूर्ण है, न ही कोई भक्ति भाव जाग्रत होता है सो वह कहना उचित नहीं”
अब ये सब हुआ तो लोग आने लगे. मतलब भर के श्रद्धालु श्रोता जुट गये.
प्रथमहिं अति अनुराग
भवानी। रामचरित सर कहेसि बखानी॥
पुनि नारद कर मोह अपारा। कहेसि बहुरि रा वन अवतारा॥
बालचरित कहि बिबिधि
बिधि मन मँह परम उछाह।
रिषि आगवन कहेसि पुनि श्रीरघुबीर बिबाह॥
पुरबासिन्ह कर बिरह बिषादा।
कहेसि राम लछिमन संबादा॥
बालमीकि प्रभु मिलन बखाना।
चित्रकूट जिमि बसे भगवाना॥
करि नृप क्रिया संग पुरबासी।
भरत गए जहँ प्रभु सुख रासी॥
भरत रहनि सुरपति सुत
करनी। प्रभु अरु अत्रि भेंट पुनि बरनी॥
कहि बिराध बध जेहि बिधि देह तजी सरभंग।
बरनि सुतीछन प्रीति पुनि प्रभु
अगस्ति सतसंग॥
कहि दंडक बन
पावनताई। गीध मइत्री पुनि
तेहिं
गाई॥
पुनि प्रभु पंचबटी कृत
बासा। भंजी सकल मिनिह्न की त्रासा॥
पुनि लछिमन उपदेस अनूपा।
सूपनखा जिमि कीन्हि कुरूपा॥
खर दूषन बध बहुरि बखाना।
जिमि सब मरमु दसानन जाना॥
दसकंधर मारीच बतकही।
जेहि बिधि भई सो सब तेहिं कही।
पुनि माया सीता कर हरना।
श्रीरघुबीर बिरह कछु बरना॥
पुनि प्रभु गीध क्रिया जिमि कीन्ही। बधि कबंध सबरिहि गति दीन्ही॥
बहुरि बिरह बरनत रघुबीरा। जेहि बिधि गए सरोबर तीरा॥
प्रभु नारद संबाद कहि मारुति
मिलन प्रसंग।
पुनि सुग्रीव मिताई बालि
प्रान कर भंग॥
कपिहि तिलक
करि प्रभु कृत सैल प्रबरसन बास।
बरनन बर्षा सरद
अरु राम रोष
कपि त्रास॥
जेहि बिधि कपिपति कीस
पठाए। सीता खोज सकल दिसि धाए॥
बिबर प्रबेस कीन्ह
जेहि भाँती। कपिन्ह बहोरि मिला
संपाती॥
सुनि सब कथा समीर
कुमारा। नाघत भयउ पयोधि
अपारा॥
लंकाँ कपि प्रबेस जिमि
कीन्हा। पुनि सितहि धीरजु जिमि दीन्हा॥
बन उजारि रावनहि प्रबोधी।
पुर दहि नाघेउ बहुरि पयोधी॥
आए कपि सब जँह रघुराई।
बैदेही की कुसल सुनाई॥
सेन समेति जथा रघुबीरा।
उतरे जाइ बारिनिधि तीरा॥
मिला बिभीषन जेहि बिधि
आई। सागर निग्रह कथा सुनाई॥
सेतु बाँधि कपि सेन जिमि उतरी
सागर पार।
गयउ बसीठी बीरबर जेहि बिधि
बालिकुमार॥
निसिचर
कीस लराई बरनिसि बिबिध प्रकार।
कुंभकरन
घननाद कर बल पौरुष
संघार॥
निसिचर निकर मरन बिधि
नाना। रघुपति रावन समर बखाना॥
रावन बध मंदोदरि सोका। राज बिभीषन देव
असोका॥
सीता रघुपति मिलन बहोरी। सुरन्ह कीन्हि अस्तुति कर जोरी॥
पुनि पुष्पक चढ़ि कपिन्ह
समेता। अवध चले प्रभु कृपा निकेता॥
जेहि बिधि राम नगर निज
आए। बायस बिसद चरित सब गाए॥
कहेसि बहोरि राम अभिषेका। पुर बरनत नृपनीति
अनेका॥
कथा समस्त भुसुंड बखानी।
जो मैं तुम्ह सन कही भवानी॥
सुनि सब राम कथा खगनाहा।
कहत बचन मन परम उछाहा॥
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कहो ! बहुत कठिन तो
नहीं अर्थ समझना कि अर्थ भी करके बताऊँ ?”
“अनुमान सही भी है और ग़लत भी. फेसबुक पर एक पेज है, FOUNTAIN PEN CLUB INDIA. उसमें फाउण्टेन पेन के प्रेमी जन पेन, इंक आदि की चर्चा करते हैं, फोटो पोस्ट करते हैं और लिखावट भी. इन्ही में से एक, अनुपम गोस्वामी, ने पाण्डुलिपि शैली में उत्तरकाण्ड की संक्षिप्त राम कथा लिखी. बहुत ही सुन्दर लिखावट है. वो पृष्ठ इस पोस्ट की प्रेरणा भी बने. आप सब भी देखें इतनी अच्छी लिखावट. अन्य वितरण इस प्रकार हैं –
My
first attempt at a traditional looking manuscript.
Paper: handmade paper by Ayush
Surana
Pen: RC Devanagari by Rajeev
Chauhan
Inks: krishna IG black and MB
Corn Poppy red
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