शिव
जी विवाह किये और गौरा को लेकर घर आये. अब घर क्या, कैलाश पर बसेरा. महल भी रहा होगा. कुमार संभव में कालिदास ने जो लीला
बखानी है, वह खुले में थोड़े न संपन्न हुई होगी और बालक का शिरोच्छेद महल के बाहर ही
किया होगा जब वह पहरे पर तैनात था. महल होगा किंतु शिव जी का दरबार खुले में ही लगता
था. अब उनके परिवार में आज की तरह जितने लोग, उतने वाहन, किंतु सब अलग – अलग प्रवृत्ति
के. शिव जी का वाहन बैल और वो बार – बार ऊँचे स्वर में डकारे तो पार्वती का वाहन सिंह
उस पर दांत धरे गुर्राये. भूतगण अलग शोर करें तो इस कोलाहल में कोतवाल भैरव का वाहन
कुत्ता अलग भौंके. गणेश के वाहन, मूषक, को देख कर उसे आहार बनाने को शिव जी के कण्ठ
में लिपटा सांप फुंकारे तो उसे खाने को कार्तिकेय का वाहन मयूर झपटे. अब विवाह करने
पर परिवार बढ़ेगा तो ये झमेले भी होंगे. जहाँ चार बरतन होते हैं, खड़कते ही हैं. शिव
जी के पार्षद गण आपस में कहते हैं कि ये घर है कि तबेला, बड़ी रार मची है शिव जी के
तबेले में.
******************************
यही
रार एक अन्य कवित्त में भी बखानी है. कवि देवीदास शिव जी की सबको साध कर रखने की क्षमता
को सराहते हैं कि कैसी तो शिव जी राजनीति है कि एक सेर पर कोई न कोई सवा सेर बैठा रखा
है. मूषक है तो वह उत्पात न करे इसलिए सांप रखे हुए हैं और सांप को काबू में रखने के लिए कार्तिकेय का वाहन
मोर है. पूतनी के लिए भूत हैं तो भूतों को भभूत लगा कर साधे हुए हैं, षटमुख के ऊपर
गजमुख हैं ( कार्तिकेय जी की शरारतों को गणेश जी संभाले हुए हैं) काम पर विजय प्राप्त
की किंन्तु वामा साथ में हैं, कण्ठ में विष है तो उसके शमन के लिए मस्तक पर चंद्रमा
है जिसमें अमृत का वास है. तीसरे नेत्र में अग्नि है तो उसे शांत रखने को जटाओं में
गङ्गा जी की धारा है. देवीदास कहते हैं कि देखिए ज्ञानी शङ्कर जी की सावधानी, सबको
साध रखने की राजनीति ब अरते हुए हैं.
*******************************
अब
ऐसा अलग – अलग प्रवृत्ति का परिवार और भूत – पिशाच गण के रूप में किंतु सदा ही रार
नहीं रहती. कहीं आते – जाते भी होंगे. गौरा जी के साथ भ्रमण पर निकलने और उनके आग्रह
पर दीन - दुखियों, भाग्यहीनों के लिए व्यवस्था
करने की कितनी ही लोककथाए हैं. अब इसी चित्र में देखिए – शिव जी सपरिवार कहीं गये हैं.
सब साथ में हैं और टपरे की छत पर शिवजी कैसे मगन हैं.
भक्त सखाभाव से भी भक्ति करता
है, इस भाव में वह भगवान को अपना सखा, अपने जैसा ही मानता और वैसा ही चित्रण करता है.
ऊपर के कवित्त और यह चित्र ऐसे ही भाव से चित्रित हैं.
बार बार बैल कौ
निपट ऊँचो नाद सुनि,
हुंकरत बाघ
बिरुझानो रसरेला में |
भूधर भनत ताकी
बास पाय शोर करि,
कुत्ता कोतवाल
को बगानो बगमेला में |
फुंकरत मूषक को
दूषक भुजंग तासों,
जंग करिबेको
झुक्यो मोर हधेला में |
आपस में पारषद
कहत पुकारी कछु
रारि सी मची है
त्रिपुरारि के तबेला में ||
**********
मूसे पर सांप
राखै, सांप पर मोर राखै, बैल पर सिंह राखै, वाकै कहा भीती है |
पूतनिकों भूत
राखै, भूत कों बिभूति राखै, छमुख कों गजमुख यहै बड़ी नीति है |
कामपर बाम राखै, बिषकों पीयूष राखै, आग पर पानी राखै सोई जग जीती है |
'देविदास' देखौ
ज्ञानी संकर की साबधानी, सब बिधि लायक पै राखै राजनीति है |
No comments:
Post a Comment