पुस्तक चर्चा
किताबः मेटामॉर्फोसिस
( कायांतरण)
लेखकः फ्रेंज़
काफ़्का
मूल भाषाः
जर्मन
अनुवादकः डॉ.परितोष
मालवीय
विधाः उपन्यास
प्रकाशकः मेन्ड्रेक
पब्लिकेशन्स, भोपाल
क्या कोई व्यक्ति बिना किसी वैज्ञानिक परीक्षण के या बिना किसी शाप/ वरदान के कीड़ा बन सकता है और क्या कीड़ा बन जाने के बाद भी वह अपने मानव स्वरूप के बारे में, उसकी बातें याद रख सकता है और वर्तमान में कीड़े के रूप रेंगते, खाते भी मनुष्यों की तरह सोचता रह सकता है, सोचता है तो क्या सोचता है …? इन सबका उत्तर मिलेगा फ्रेंज़ काफ़्का के उपन्यास, “मेटामॉर्फोसिस” में. यह कोई विज्ञान कथा नहीं, कोई फतांसी नहीं, कोई पौराणिक / मिथकीय कथा नहीं और कोई वास्तविक कथा नहीं बल्कि कथा के बहाने परिवार और समाज की सोच का नग्न चित्रण है जो किसी उपयोगी व्यक्ति के नितान्त अनुपयोगी और आश्रित हो जाने पर हो जाती है. किताब में तो मुख्य पात्र कीड़ा बन जाता है (सोच में नहीं, भौतिक रूप से), वास्तव में ऐसा भी होता है कि वृद्ध, बेकार, अशक्त, बीमार हो जाने पर कोई कीड़े की तरह घृणित और अवांछनीय हो जाए, जिस पर कुछ दिन तो उसके परिवार सहित समाज दया दिखाये/ उसे सहन करे और उसके मर जाने की कामना करे. इसी क्रूर स्थिति को दिखाया है इस उपन्यास में.
मुख्य पात्र, ग्रेगर साम्सा, एक कम्पनी में टूरिंग सेल्समैन है जो हर सुबह पाँच बजे ड्यूटी पर जाने के लिए ट्रेन पकड़ता है. एक सुबह जब वह जागता है तो पाता है कि वह एक बड़ा सा कीड़ा बन चुका है - कठोर पीठ, बहुत से लिजजिजे छोटे-छोटे पैर और कीड़ों की ही तरह मुह वाला कीड़ा. इस स्थिति में भी उसे सुबह की ट्रेन याद आती है जो छूट चुकी है. वह कीड़ा होते हुए भी जैसे अपने कीड़ा हो जाने को स्वीकार नहीं कर पाता और तैयार होने व दूसरी ट्रेन से काम पर जाने की सोचता है. वह अपने काम और परिवार, जो भरण-पोषण के लिए उस पर आश्रित है और जिसमें बस माता-पिता और छोटी बहन है, के बारे में सोचता है. तैयार होने के लिए उसे उठना होता किन्तु कीड़ा हो जाने के कारण उसे बिस्तर से उठना भी पहाड़ है. उसके परिवार वाले दरवाज़ा खटखटाते हैं तो वह उन्हे बस अभी आने के बारे में बताता है तो पाता है कि उसकी आवाज़ भी बदल चुकी है.
इसके
बाद शुरू होती है कीड़े के रूप में उसके जीवन, जो अब उसके छोटे कमरे में ही सिमट कर रह गया है, की कथा और उसके साथ सबके उसके प्रति बदलते जाने की निर्मम सच्चाई. कोई उसे पसन्द नहीं करता, सब उससे डरते और घिनाते हैं, उसके पिता खास तौर से. एक बार वह बाहर कमरे में आ जाता है तो वे उसे छड़ी से भगाते हैं, दूसरी बार उस पर विभिन्न वस्तुएं फेंक कर हमला भी कर देते हैं. केवल छोटी बहन है जो उससे सहानुभूति रखती है, उसके लिए खाने को (कीड़ोचित सड़ी-गली सब्जी, पनीर आदि ) रखती और उसका कमरा साफ करती है. वह भी सबके मनोभाव समझता है और बहन के आने पर सोफे के नीचे छिपा रहता है. वह ही घर का कमाऊ सदस्य था सो अब आर्थिक संकत भी आता है और उसके पिता, माता, बहन को काम करना पड़ता है और घर का एक कमरा भी किराये पर उठाना पड़ता है. माता-पिता के लिए तो वह अवांछित हो ही गया था, धीरे-धीरे बहन के लिए भी होता जाता है. वह कहती है, “ … पिताजी, माँ ! हो सकता है, आप लोगों को मोह के कारण कुछ नज़र न आ रहा हो, पर मुझे सब दिख रहा है. अब मैं इस दैत्याकार कीड़े को अपना भाई नहीं मान सकती. हमें तुरन्त इससे छुटकारा पा लेना चाहिए. मानवता के चलते हमने अपने भरसक इसकी देखभाल की है. मुझे नही लगता कि कोई हमारे ऊपर इसकी उपेक्षा करने या कुछ भी ग़लत करने का आरोप लगा सकता है …“ वह भी यह सब सुन रहा होता है और अगली ही सुबह मर जाता है.
अद्भुत है यह किताब. उपन्यास क्या, इसे लम्बी कहानी की श्रेणी में रखना चाहिए, 'हंस' में इससे
भी लम्बी कहानियां छप चुकी हैं. वैसे तो कई विज्ञान कथाओं, जासूसी किताबों, फतांसी कथाओं और मिथकीय कहानियों में ऐसे चरित्र हैं जिनमें पात्र का रूप बदल जाता है, वह कोई दूसरा ही हो जाता है किन्तु उनका उल्लेख इसलिए नहीं किया कि यह उपन्यास ही सही अर्थों में 'मेटामॉर्फोसिस' पर है. इसमें ग्रेगर साम्सा बिना किसी वैज्ञानिक परीक्षण/ शाप/ वरदान के एक कीड़े में बदल जाता है और कीड़े के रूप में ही कुछ माह जीवित रहने के बाद (शायद अपनी बहन के भी विचार बदल जाने के आघात से ) कीड़े के रूप में ही मर जाता है. और किताबों के चरित्र जब रूप बदलते हैं तो बदले हुए रूप के उनके कार्य (बहुधा दुष्कर्म / अतिमानवीय कर्म) का ही वर्णन होता है, उनकी कायान्तरण के बहाने परिवार और समाज के बदलते नज़रिये का चित्रण नहीं होता, स्वयं मुख्य पात्र की मनोस्थिति का चित्रण नहीं होता जबकि 'मेटामॉर्फोसिस' में यही है. इस दृष्टि से यह कायान्तरण की महत्वपूर्ण किताब है.
अविश्वसनीय कथानक होते हुए भी किताब बांधे रखती है.यदि आप एक विचारोत्तेजक और स्तब्ध कर देने वाले कथानक को पढ़ना चाहते हैं, तो इसे ज़रूर पढ़ें.
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