" ... इसके
बाद
मोहतरिमा
ने
हारमोनियम
सँभालकर
जो
गाना
शुरू
किया
तो
समा
बाँध
दिया.
इस
क़दर
खूबसूरत
आवाज़
थी
कि
बस
कुछ
न
पूछिए.
मैं
दाद
देते-देते
थक
सा
गया
मगर
शह्रयार
खामोश
बैठे
रहे.
मैंने
आहिस्ता
से
कान
में
कहा,
"यह क्या
मज़ाक
है
?
दाद
तो
दीजिए."
जवाबन
आहिस्ता
से
मेरे
कान
में
बोले,
" कैसे दाद
दूँ
?
कमबख़्त
ने
मेरी
ही
ग़ज़ल
छेड़
दी
है.
कहीं
अपने
ही
कलाम
पर
दाद
दी
जाती
है
?"
उस
रात
मुग़न्निया
मौसूफ़ा
ने
बड़ी
देर
तक
महफ़िल
जमाई
और
शह्रयार
को
दाद
देने
का
मौक़ा
न
दिया.
सारी
ग़ज़लें
शह्रयार
की
सुनाईं...
"
इस वाकया
में
शायर
का
तो
नाम
दिया
ही
है, जो
इसे
सुना
रहे
हैं, वो
हैं
उर्दू
के
मशहूर
व्यंग्यकार, मुज्तबा
हुसैन.
वाकया
देहली
(उन्होंने देहली
ही
लिखा
है, दिल्ली
नहीं)
का
है
और
उनके
व्यंग्य
शैली
में
संस्मरण
की
किताब, 'मुज्तबा
हुसैन
के
ख़ाके' से
लिया
गया
है.
अगर
आपने
मुज्तबा
हुसैन
को
पढ़ा
है
तो
बहुत
अच्छा, अगर
नहीं
पढ़ा
है
तो
ज़रूर
पढ़ें.
इनके
व्यंग्य
में
दिलफरेब
सादगी
और
मीठी
चुभन
खास
तौर
पर
देखने
योग्य
है.
उत्कृष्ट
व्यंग्य, लेख
और
यात्रा
वृत्तांत
के
लिए
ग़ालिब
पुरस्कार
और
आंध्र
प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक
और
मध्य
प्रदेश
की
उर्दू
अकादमियों
व
अन्य
पुरस्कारों
से
पुरस्कृत,
2009 में
पद्मश्री, मुज्तबा
हुसैन, की
18 किताबें प्रकाशित
हो
चुकी
हैं.
यह किताब, 'मुज्तबा
हुसैन
के
ख़ाके' साहित्य, संगीत
और
कला
जगत्
की
19 विभूतियों के
जीवंत
रेखाचित्र
हैं
जिनमें
अन्तिम
ख़ाके, 'अपनी
याद
में' में
वे
ख़ुद
हैं.
अद्भुत
आलेख
है
जिसमें
चुटीली
शैली
में
ख़ुद
को
ऐसे
याद
किया
है
जैसे
वे
मर
चुके
हों.
मर
चुके
की
तारीफ
ही
तारीफ
नहीं
बल्कि
खिंचाई
की
है, आत्मतर्पण
किया
है.
ये
'आत्मतर्पण' 'हंस' में
प्रकाशित
हो
चुका
है.
इससे
ऊपर
के
18 ख़ाकों में
बेदी
(राजिंदर सिंह), कृश्न
चन्दर, सज्जाद
ज़हीर, फ़ैज़, शम्सुर्रहमान
फ़ारुक़ी, हुसैन
... कहाँ तक
कहें, फिलहाल
सज्जाद
ज़हीर
के
ख़ाके
का
एक
हिस्सा
पढ़िए
और
बाक़ी
किताब
में
-
" ... जब
तक़रीर
के
लिए
उनका
नाम
पुकारा
गया
तो
वो
हाज़रीन
के
सामने
वाली
क़तार
में
से
उठकर
यूँ
सुबुक
खरामी
के
साथ
माइक
पर
आए
कि
उन्हें
देखने
की
सारी
आरज़ू
का
सत्यानाश
हो
गया.
उनके
चलने
में
ऐसी
नर्मी, आहिस्तगी, ठहराव
और
धीमापन
था
कि
एकबारगी
मुझे
यह
वजह
समझ
में
आ
गयी
कि
हमारे
मुल्क
में
इन्क़िलाब
के
आने
में
इतनी
देर
क्यों
हो
रही
है..."
*********
किताब - मुज्तबा
हुसैन
के
ख़ाके
लेखक - मुज्तबा
हुसैन
(उर्दू में
)
अनुवादक - डॉ.
रहील
सिद्दीकी
(हिन्दी)
विधा - रेखाचित्र/संस्मरण
प्रकाशक - वाणी
प्रकाशन
हार्ड बाउण्ड,
131 पृष्ठ, कीमत
₹
250/-
किंडल पर
- पता नहीं
(ख़ुद तलाशें)
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