गांधी जी की मृत्यु का पूर्वाभास
30 जनवरी, 1948 को प्रार्थना सभा में गांधी जी मनु बेन और सुशीला नायर के बीच में उनके कंधे का सहारा लेकर आये, उपवास व अन्य मानसिक उद्वेगों के कारण वे बहुत कमज़ोर हो गये थे. वे प्रार्थना सभा के मञ्च की ओर बढ़ ही रहे थे कि एक युवक उन्हें प्रणाम करते हुए उनके चरण स्पर्श करने के बहाने नीचे झुका और चरण स्पर्श करके खड़े होते ही पिस्तौल निकाल कर उन पर तीन गोलियां दाग दीं. ‘हे राम’ के पीड़ामय उद्गार के साथ वे गिरे और उनका प्राणान्त हो गया. नथूराम गोडसे नामक वह युवक वहीं पकड़ लिया गया.
सबके
लिए यह ह्रदयविदारक घटना अकस्मात घटित हुई, अप्रत्याशित थी किंतु गांधी जी को अपनी
मृत्यु का पूर्वाभास सा हो गया था. सवा सौ साल जीने की कामना करने वाले गांधी जी जीवन
के अन्तिम दिनों में बहुत व्यथित और निराश से हो गये थे. वे अब और जीने की इच्छा नहीं
कर रहे थे. उनकी बातों में कई बार इसके संकेत मिलते हैं.
दंगों, मारकाट और विभाजन वाले दौर में समाज के व्यवहार, शासन के व्यवहार और
सबसे बढ़ कर अपने साथियों के व्यवहार से दुखी होकर वे ज़ल्दी मरने की इच्छा ज़ाहिर करने
लगे थे. गांधी जी ने एकाधिक संकेतों और भावों से ही नहीं बल्कि सीधे बोल कर भी यह जता
दिया था कि देश और दुनिया को बदलने का उनका लम्बा संघर्ष अब ‘द एण्ड’ पर आ चुका है.
निर्वाण के पहले वाले दिन पटेल–नेहरू का मनमुटाव निपटाने के लिए उन्होंने उस दिन सरदार
पटेल को बुलाया था और उनसे लम्बी चली बातचीत के चलते गुजरात से आये कठियाबाड़ी नेता
रसिक भाई और ढेबर भाई को दिया हुआ समय रह गया. मनु ने उनके लिए नया समय मांगा
तो गांधी जी ने कहा, ‘उनसे कहो कि यदि ज़िन्दा रहा तो प्रार्थना के बाद
टहलते समय बात कर लेंगे.’ वह समय कभी न आया.
मनु
से उन्होंने यह भी कहा था –
‘ … आज एक बात मैं तुझे कहना चाहता हूँ, जो
कई बार कह भी चुका हूँ. यदि मैं किसी रोग से या छोटी–सी फुंसी से भी मरूँ, तो तू जोर–शोर
से दुनिया से कहना कि यह दम्भी महात्मा रहा. तभी मेरी आत्मा को, भले ही वह कहीं हो,
शान्ति मिलेगी. भले ही मेरे लिए लोग तुझे गालियां दें, फिर भी यदि मैं रोग से मरूँ,
तो मुझे दम्भी पाखण्डी महात्मा ही ठहराना. और यदि गत सप्ताह की तरह धड़ाका हो, कोई मुझे
गोली मार दे और मैं उसे खुली छाती झेलता हुआ भी मुह से ‘सी’ तक न करता हुआ राम का नाम
रटता रहूँ, तभी कहना कि वह सच्चा महात्मा था … इससे भारतीय जनता का कल्याण ही होगा
…
प्रार्थना
सभा को जाते हुए ऐसा ही हुआ. उन्हें गोली मारी गयी जो उन्होंने खुली छाती पर झेली और
अन्तिम समय उनके मुह से ‘हे राम’ निकला.
बहुत
बार लोगों को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो जाता है, वे आसन्न मृत्यु के बारे में बाते
करते हैं और वैसे ही मृत्यु होती है जैसे उन्होंने सोचा / कहा था किंतु क्या किसी अन्य
व्यक्ति को, और वह भी ऐसे को जो लम्बे समय तक/ निरन्तर उनका निकटस्थ न रहा हो, को भी
उनकी मृत्यु का पूर्वाभास था ? पूर्वाभास भी नहीं बल्कि यह भी आभास हो गया था कि उनकी
मृत्यु कैसे होगी और उस समय कौन उनके साथ होगा ? आश्चर्यजनक रूप से यह सत्य है या यूँ
कहें कि किसी की कल्पना वास्तविकता से इतना अधिक साम्य रखती है. रुसी मूल के पोलिश
कलाकार, फेलिक्स तोपोलस्की, को इस ‘पूरी कलाकारी’ का सटीक पूर्वाभास था और जब 1944
में वे भारत आये और गांधी जी पर पेण्टिंग बनाने कि अनुमति मांगी, जो कि उन्हें मिली
तो उन्होंने 1946 में एक पेण्टिंग तैयार की जिसमें गांधी जी गोली खाकर दो लड़कियों के
शरीर पर लुढ़कते हुए दिख रहे हैं और वहीं खड़े आदमी की हाथ की पिस्तौल से अभी धुआँ निकल
रहा है. यह बिल्कुल वैसा ही था जैसा 30 जनवरी, 1948 को हुआ था. बिना पूर्वाभास / अदृश्य
शक्ति की योजना के दो साल पहले ही, 1946 में, हूबहू वैसा ही चित्रण करना आश्चर्यजनक
है. क्या यह कोई भावी अनिष्ट का संकेत था ! फेलिक्स तोपोलस्कीकी यह पेण्टिंग
राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केन्द्र में लगी है, इसका नाम ‘द ईस्ट’ है.
1948 में उन्होंने फिर से अपनी खास शैली की एक विशाल पेण्टिंग बनायी जिसमें भारत, चीन, अफ़्रीका और पूरब के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते, बिना किसी विभाजक रेखा के, चार हिस्से हैं तो उसके भारत वाले हिस्से में फिर से गांधी जी की हत्या वाले दृश्य को दोहराया. इस पेण्टिंग में फ़र्क़ यह था कि इस बार गांधी जी के आसपास
अधिक भीड़ दिख रही है, गोली खाकर गिरते गांधी जी का सिर ज़्यादा झुका हुआ है और धुआँ उगलती पिस्तौल वाले की जगह उनके पीछे एक काला आदमी दिख रहा है.
1949 में जब नेहरू जी इंग्लैण्ड गये तो इसे खरीद कर लाये,
यह पेण्टिंग भी राष्ट्रपति भवन में लगी है.
(गांधी जी के अंतिम दिनों में मृत्यु के पूर्वाभास सम्बन्धी
विवरण सुधीर चंद्र की किताब, ‘गांधीः एक असम्भव सम्भावना’ से और पेण्टिंग सम्बन्धी
विवरण अरविन्द मोहन की किताब, ‘गाँधी और कला’ से लिए गये हैं तथा पोस्ट के साथ चस्पा,
संदर्भित दोनों पेण्टिंग्स की, छवि नेट से ली गयी हैं.)
गांधीजी को पूर्वानुमान हो गया था, यह पढ़ा था पहले। पर चित्रकार वाली जानकारी नयी है। कलाकार को समय से आगे का दिखाई देता है, यहाँ यह कह सकते हैं
ReplyDeleteपढ़ने और त्वरित प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. पेण्टिंग उनकी हत्या से दो साल पहले बनी तो ऐसे चित्रण की चर्चा भी हुई होगी और १९४८ वाली पेण्टिंग की भी किंतु इससे बहुत लोग अनजान इसलिए रहे कि उन्हीं लोगों ने इसे लक्ष्य किया होगा जो कला में गहन रुचि रखते हैं. दूसरे, हम में से बहुतेरे कथेतर अपेक्षाकृत कम पढ़ते हैं तो इसकी चर्चा भी हुई होगी तो सीमित लोगों का ध्यान गया होगा.
Delete