पुस्तक
चर्चाः नया राजा नये क़िस्से.
राजा होते हैं तो उनके क़िस्से भी होते हैं, उन पर बनते हैं या यूँ कहें कि तमाम राजा उन किस्सों से ही बने होते हैं. जैसे किस्से अवाम में फैले / राजा ने फैलवाए, वैसी ही उसकी छवि बनी और युग्-युगान्तर तक बनी रही. अब यह किताब ‘नया राजा नये क़िस्से’ है तो ज़ाहिर है कि इसमें आज के राजा के किस्से हैं. राजा का कहीं नाम नहीं लिया गया है और न ही यह कि वह किस देश का राजा है मगर हर किस्सा बता देता है कि किस राजा की बात हो रही है. वर्तमान परिवेश ऐसा है कि किताब का शीर्षक देख कर ही 99.99% सुधी जन समझ जायेंगे कि किसके क़िस्से होंगे और उनका अनुमान 100% सही होगा. वैसे उस राजा को इन क़िस्सों की एक बात से मैच नहीं कर सकते, वह यह कि कई क़िस्सों में राजा की रानी का भी उल्लेख है. केवल उल्लेख ही नहीं, राजा के महल में रानी रहती भी है, राजा उससे बातचीत भी करता है. इस एक बात से यह कह सकते हैं कि इस किताब का राजा काल्पनिक है, वास्तव में किसी से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है, यदि कहीं ऐसा पाया जाता है तो यह संयोग मात्र है. क़िस्सों में रानी को डाल कर लेखक ने अपना बचाव किया है अन्यथा उसे सजा भी हो सकती थी. नहीं हुई तो एक कारण तो यही है. राजा व उसके दरबारी कह सकते हैं कि महराज, यह आपके किस्से नहीं. आप कहाँ रानी – वानी के लफड़े में पड़े हैं, कहाँ उनसे बातचीत करते हैं, आपने तो राजधर्म के लिए पहले ही उन्हें छोड़ रखा है. एक यह बात और दूसरी यह कि नया राजा कहाँ पढ़ता ही है, साहित्य – वाहित्य तो कतई नहीं. वैसे ही उसके दरबारी ! उन्हें भी पढ़ने से क्या वास्ता. तो इन्हीं दो कारणों से लेखक बचा हुआ है ( इस तथ्य से भी अनुमान लग गया होगा कि किसके क़िस्से हैं ) लेखक, और उनमें भी व्यंग्यकार, बहुत चकड़ होते हैं. लेखक, अनूप मणि त्रिपाठी व्यंग्यकार के इस गुण से युक्त हैं. यह राजनीतिक परिदृश्य पर व्यंग्यलेख (क़िस्से ) हैं. किसी न किसी घटना या राजा की चिंता को लेकर छोटे-छोटे क़िस्से और हर क़िस्सा ऐसा ही बरबस ही मुह से निकले कि वाकई, राजा ऐसा ही है. इस किताब में राजा के 43 किस्से हैं. इस किताब के समर्पण में “लोकतंत्र में आस्था रखने वालों को समर्पित” कहा गया है, इससे भी किताब पढ़ने के पूर्व ही यह संकेत मिल जाता है कि किसके क़िस्से हैं.कुछ बानगी देखें –
राजा बहुत परेशान था. लोग महँगाई, बेरोज़गारी आदि का सवाल उठा रहे थे. मंत्रियों से विमर्श किया. राजा ने कहा कि कोई हौआ खड़ा कर दो पर मंत्री को यह न कारगर न लगा. तब राजा ने कहा, ‘जो सवाल खड़ा करे, उसका चरित्र हनन करा दो. जो समझाने से भी न समझे उसे संदिग्ध घोषित कर दो. ‘
मंत्री चुपचाप सुनता रहा.
राजा ने आगे कहा, ‘ राष्ट्र के समक्ष कोई नया संकट खड़ा कर दो, नहीं तो उनके समक्ष कोई संदेह ! नहीं तो प्रजा को गर्व का कोई नया विषय दे दो.! नहीं तो किसी जाति, बिरादरी, वर्ग, समूह के विषय में कोई नई अफ़वाह उड़ा दो.
मंत्री कुछ न बोला. वह चुपचाप सुनता रहा.
मंत्री की भाव भंगिमा देख कर राजा थोड़ा उत्तेजित हो कर बोला, ‘देखो, अगर कोई तुमसे कहे कि फलां चीज़ के दाम बहुत बढ़ गए हैं तो तुम सीधे उससे उसका पंथ पूछ लो ! बोलो, ओहो फलाना पंथी हो ! तभी ! कोई कहे कि बेरोज़गारी बढ़ गई है तो कहो बेरोज़गारी नही बढ़ी है, जनसंख्या अधिक हो गई है. समझ रहे हो न ! राजा थोड़ा अधीर हुआ.
अब मंत्री राजा से कैसे कहे कि यह सारे हथकंडे वह तब से इस्तेमाल कर रहा है, जब से उसकी नियुक्ति हुई है.
मंत्री को कोई तरीका न रुचा. उसने कुछ तूफानी करने का सोचा और राज्य से विलुप्त हो चुके शेरों को विदेश से मंगवाने के इवेंट की राय दी. विस्तृत चर्चा और निर्देशादि के बाद यही तय पाया गया.
घोर वाद – विवाद के बाद वह दिन भी आया जब विदेशी शेरों का राज्य की पावन धरती पर विशेष रथों द्वारा ऐतिहासिक आगमन हुआ. दिन भर राजा और शेरों की गौरवशाली बातें हुई. अति विस्तृत राज्य का राजा इस कार्य हेतु पूरे दिन अति व्यस्त रहा और प्रजा भी. शेरों को शिकार करते हुए टी.वी. पर प्रजा को सजीव दिखाया गया. रात को राज्य के सूचनातंत्र द्वारा राजा का मंगलगान हुआ. जिसे ज्ञानियों ने बहस कहा.
उस रात के बाद राजा ने काफ़ी दिनों तक चैन की बंसी बजायी.
कथा सुनाने के बाद बेताल ने विक्रम से पूछा, ‘यों तो कई प्रश्न हैं, परंतु तू बस एक प्रश्न का जवाब दे तो तुझे जानूं ! तो बता विक्रम शेर ने क्या खाया था ??’
विक्रम ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, ‘मुद्दा.’
यह सुनते ही बेताल उड़ गया.
( क़िस्सा ‘राजा और शेर’ से.)
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राजा ने अचानक विद्वानों की आपात मीटिंग आहूत की. अफरातफरी में सभी भागे – भागे, आशंकित होते आए. कुछ समय बाद राजा ने मीटिंग का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा, ‘जैसा कि विदित है मुझे आखेट बहुत पसंद है परंतु अब मैं चाहता हूँ कि आप सब आखेट की जगह कोई नया शब्द खोजें या बनाएं ! मुझे यह शब्द भाता नहीं ! नकारात्मकता झलकती है … प्रजा मुझे क्रूर समझती है.
फिर आगे बोला, ‘यह शब्द मुझे पुरातन, घिसा-पिटा लगता हैँ मुझे कोई आधुनिक, नया शब्द दें. और हाँ, जब तक मेरी समस्या का समाधान नहीं हो जाता, तब तक आप में से कोई भी राजधानी से जाएगा नहीं !
तमाम चिन्तन – मन्थन हुआ, अन्ततः नया शब्द खोज ही लिया गया.
विद्वानों की टोली ख़ुशी – ख़ुशी वह शब्द लेकर राजा के सामने उपस्थित हुई.
‘तो आपने क्या नया शब्द खोजा !’ राजा ने पूछा.
‘चुनाव महराज ! चुनाव !’ विद्वानों की टोली ने समवेत स्वर में कहा.
यह शब्द सुनते ही राजा ख़ुशी से उछल पड़ा. वह उत्साहित होकर बोला, ‘वाह ! हमें भाया यह शब्द ! खूब भाया ! तो तय रहा आज से हम आखेट पर नहीं चुनाव पर जाया करेंगे !
( क़िस्सा ‘ राजा और आधुनिकता’ से )
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तो ऐसे कई क़िस्से हैं इस किताब में. आज के हालात और राजा की सच्ची तस्वीर, व्यंग्य की चासनी में लिपटी हुई, देखने के लिए किताब पढ़ें.
किताब – ‘नया राजा नये क़िस्से’
विधा – व्यंग्य
लेखक – अनूप मणि त्रिपाठी
प्रकाशक – वाम ( बुक स्टोर्स पर उपलब्ध
)
पेपरबैक, 147 पृष्ठ, दाम 225/-
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