खांसी - जुकाम सामान्यतः जाड़े की चीज़ है या बरसात में भीग जाने की या बहुत हुआ तो बदलते मौसम की, मगर ऐसी भद्दर गरमी में जुकाम हो जाए, वह भी बहने वाला तो लगता है जैसे कोई गुनाह हो गया है और वह सबके सामने उजागर भी हो गया है ! कल से लज़्ज़त ए गुनाह उठा रहा हूँ.
भद्दर गरमी में जुकाम हो, भच्छ-भच्छ छींके आएं, बार-बार नाक पोछें
तो आपके तीन-चार हफ्ता पुराने पाप याद दिलाए जाने लगते हैं, लानत-मलानत का दौर चल
पड़ता है कि जब मालूम है कि इतने नाज़ुक हैं तो क्यों फ्रिज का पानी पीते हैं, बल्कि
सामान्य पानी ही क्यों पीते हैं, हमेशा या कम से कम घर पर गुनगुना पानी क्यों नहीं
पीते ? उस दिन आपने आईसक्रीम खा ली, फलां शादी में दो बार कोल्ड ड्रिंक लिया, दही
बड़ा खाया, बाहर से आते ही AC के सामने बैठ गये/ नहा लिए ... वगैरह, वगैरह.
छींक आने का समय !
आपने चाय बनायी, कप में छानी और हाथ में लेकर किचन से कमरे की ओर
बढ़े कि मेज पर रख कर आराम से पियेंगे मगर दो-तीन मीटर दूरी तय करने में जब
बीच राह में हों कि आआं ... छी, भच्छ ! चाय भी गिरी और हाथ भी जला.
और भी बहुत सी स्थितियां होंगी गरमी में खांसी – जुकाम की और आपको इतनी
बातें सुनाई जाती होंगी कि वाकई लगने लगे कि आपसे कोई गुनाह हो गया है या यह जाने –
अनजाने पापों का दण्ड है. अब खांसी – जुकाम का क्या ! यह तो किसी को और कभी भी हो
सकता है. ऐतिहासिक और पौराणिक पात्रों को भी ! एक पुरानी कथा याद आ रही है जो आपसे
अब तक छिपायी गयी. वामपंथि साहित्य/इतिहास/पुराण कारों ने सामने आने ही नहीं दिया.
वो तो भला हो पुरातन पर गर्व करने और करवाने वालों का जो ऐसा छुपाया गया इतिहास
खोज – खोज कर सामने लाते हैं, व्हाट्स ऐप के माध्यम से ग्रुपों में फारवर्ड करते
रहते थें, फेसबुक अय्र एक्स पर ठेलते रहते हैं. तो एक ऐसी ही कथा हाथ लगी जो आपने
सुनी / पढ़ी न होगी – सुनते / पढ़ते भी कैसे – विधर्मियों ने सच्चा इतिहास सामने आने
ही न दिया.
कथा से पहले ही ‘नाकोहस’ ( नेशनल कमीशन फॉर हर्ट सेन्टीमेन्ट्स – ‘आहत
भावना आयोग’ )* वालों से क्षमा मांग लेता हूँ. क्षमायाचना के उपरान्त श्रवण करें
यह (अ)पौराणिक कथा -
“रावण बहुत विकट और क्रूरकर्मा शिवभक्त था. पुराणों में वर्णित है कि उसने यज्ञकुण्ड
में अपने सर काट कर आहुति दी थी. ज्यों ही वह सर काटता, क्षणांश में ही नये सर उग आते.
गरदन पर कटे का कोई निशान भी न रहता जैसे कुछ हुआ ही न हो. शुरू में तो उसने भक्ति
मे वशीभूत होकर ऐसा किया फिर सर उगते पाकर उसे मज़ा आने लगा, फिर तो उसने इसे खेल बना
लिया और एक नहीं, इक्कीस बार आहुति दी. तब सर उगाते-उगाते तंग आकर ब्रह्म देव ने प्रकट
होकर रोका, 'बस कर भाई, मैं प्रसन्न हूँ.' तब उसने कोई अन्य वर न मांगा और यज्ञ का
समापन किया.
सरों की आहुति उसने एक बार और दी और भक्ति नहीं, एक अन्य
कारण से ऐसा किया. यह प्रसङ्ग पुराणों में नहीं है.
हुआ यह कि एक बार रावण को गले में इन्फेक्शन हुआ और खांसी आने लगी, भयङ्कर जुकाम हो
गया, मार भच्छ- भच्छ छींके आयें, नाक, बल्कि नाकें – दस नाक थीं न उसके – पर हेड एक
नाक ! बहे. आधे दिन उसने दवा की ओर ध्यान न
दिया, नमक और फिटकरी का गरारा वगैरह किया किन्तु खांसी में सुधार न हुआ. तब वह होम्योपैथिक
डॉक्टर से दवा लाया, एक दिन तो खांसी रुक गयी मगर दूसरे दिन और तेज़ हो गयी. इस बीच
हितचिन्तक उसे घरेलू इलाज बताने लगे, 'महराज ! दो-दो दाना काली मिर्च मुह में डाल कर
कुचलते हुए रस लेते रहें.' 'प्राणनाथ ! अदरख भून देती हूँ, उसे गले में रख कर रस लें.'
एक बार सुषेण जी अदरख, कालीमिर्च, अजवाईन, गुड़, काला नमक, हरी इलाईची को एक घण्टा पका
कर उसका अवलेह दे गये थे, उसे भी लिया. खांसी तो ठीक न हुई, इतनी गर्म चीज़े एक साथ
लेते रहने से लूज मोशन और शुरू हो गये. अब यह सब वह दसों सरों से ले रहा था तो और दुष्प्रभाव
हुआ. अब उसने खांसी छोड़ कर लूस मोशन की दवा ली क्योंकि खांसी, छींक व शंख वादन आदि
लूज मोशन को और उत्तेजित करता है. यूँ तो सहस्त्रों परिचारक थे मगर सेवा-सुश्रुषा मेघनाद और मंदोदरी
ही कर रहे थे. कुम्भकर्ण का निद्रा काल था और विभीषण वैसे भी किसी काम का न था. ऊपर
से रावण शैव और वह वैष्णव. वह वैसे भी लंका के बाहरी हिस्से में कुटिया बना कर रहता
था और भजन किया करता था. वह आ गया होता तो रावण उसी दिन पाद प्रहार करके भगा देता.
अब उसने सुषेण को बुलाया और ऐलोपैथिक दवा देने को कहा. वह खांसी- जुकाम से तंग आ चुका
था और दो दिन बाद एक सैन्य अभियान पर निकलना था. इस दशा में वह्सैन्य अभियान पर जाता
तो करता तो शत्रुओं में भगदड़ मचा देने वाली गर्जना, किन्तु निकलती खांसी और छींक और
उसी के मिले – जुले प्रभाव से धोतिका भी गीली / पीली हो जाती.
(श्रोतागण यह न सोचें कि उस युग में कहाँ थी होम्योपैथी
व ऐलोपैथी ? तो हे श्रोताओं ! वैकल्पिक चिकित्सा उस काल में भी थी, बस उसके नाम भिन्न
थे. आख़िर ग्रन्थों में सब बातें थोड़े न वर्णित होती हैं. चौदह वर्ष के वनवास काल में
राम-सीता-लक्ष्मण आदि अस्वस्थ भी हुए होंगे, उसका कहाँ वर्णन है.)
दूसरे, कथा सुनते समय उस पर शंका नहीं करते.
ऐसे श्रोता पाप के भागी होते हैं, उन्हें कथा श्रवण का फल भी नहीं मिलता और प्रसाद
भी ! सो वर्णन पर शंका न करें.)
सुषेण आये और उन्होंने औषधि दी, सेवन विधान बताया. रावण
ने दवा लेनी शुरू की मगर कोई विशेष लाभ न हुआ, दूसरे दिन सैन्य अभियान हेतु निकलना
था.
अकस्मात उसे एक उपाय कौंधा. उसने यज्ञवेदी तैयार करने का निर्देश दिया और सर काट कर
आहुति दी. तुरन्त नये सर उग आये. यह सर नये थे तो इनमें थ्रोट और नोजल इन्फेक्शन न
था. सब चकाचक, खांसी का नामोनिशान नहीं, नाक बहना और छींकें आना भी बन्द ! वैसे तो
एक बार की आहुति में काम हो गया किन्तु ऐहतियातन ग्यारह बार आहुति दी. खांसी तो सही
हो ही गयी, सैन्य अभियान भी सदा की भांति सफल रहा.
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इन तीन दिनों में खांसी और उसके उपचार के यही सब चरण
मेरे साथ भी हुए और सारे उपचार किये सिवाय लंकापति द्वारा किये अन्तिम उपाय के. तलवार
तो कहीं से अरेंज हो भी जाती किन्तु मुझे अमरता का वरदान तो है नहीं. एक ही सर है और
मुझे अच्छी तरह मालूम है कि वह उगेगा नहीं. घरवालों पर मुकदमा चलता और बाद में क्राईम
पट्रोल में स्टोरी आती सो अलग. सो अभी दवा चल रही है, बहुत हद तक राहत है, कल नहीं
तो परसों पूरा ठीक हो जाऊँगा. तब तक कोई और कथा सोच रखूँ.”
· ‘नाकोहस’ – देखें पुरुषोत्तम अग्रवाल का उपन्यास ‘नाकोहस’.
Super Raj ji. I was laughing reading the last paragraph until tears started coming from my eyes. Superb story. You have great writing skills and presentation was awesome. The language was very simple. You have built a mountain out of a mole hill i.e a small cold made me laugh so much. Enjoyed your humour to the maximum.
ReplyDeleteMy husband too got cough because of the hot weather. I too criticised him for having chilled water. He never cared about my accusations. If I repeat he will bounce back on me hence I dared accuse him only once and leave it to him to either enjoy the cough or find out some medication on his own.
Please post more such write ups. Thoroughly enjoyed.
धन्यवाद लता जी. आपने इसे पसंद किया और शुद्ध हास्य की तरह ही लिया. अब खांसी - जुकाम तो होता ही रहता है तो क्या इसके लिए पसंदीदा खाना -पीना छोड़ दिया जाय ! अति किसी चीज़ की न करे बाक़ी खाने - पीने दींजिए उन्हें. वैसे भी एक हफ्ता तो लेता ही है जुकाम - चाहे दवा लें या सिर्फ घरेलू इलाज करें या वह भी न करें.
Deleteहा हा... मजेदार कथा थी.. सचमुच गर्मी में झुखाम होने पर काफी सुनना पड़ता है। मेरे तो होंठ फट गए थे तो उसमें भी सुनना पड़ा कि सर्दियों में तो लोगों के होंठ फटते हैं गर्मियों में कैसे फटे। अन्य कथाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई. इसी ब्लॉग पर अन्य कथाएं भी हैं. नवीनतम कहानी 'क़ातिल हसीना' रहस्य-रोमाञ्च की है. कृपया उसे भी देखें और बेबाक़ राय दें.
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