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Tuesday, 17 June 2025

हनुमान जी का विक्रम नाम !




हनुमान जी का विक्रम नाम !

हनुमान जी के अनेक नाम हैं. महावीर, पवनसुत/पवनपुत्र/मारुतनन्दन, बजरंग बली, मारुति, अञ्जनिसुत/ अञ्जनिपुत्र/आञ्जनेय/अञ्जनिनन्दन आदि सर्वाधिक प्रचलित नाम हैं. महावीर जी कोई कहे तो भी जैन  धर्म के महावीर स्वामी नहीं, हनुमान जी ही ध्यान में आते हैं. अन्य कई देवी-देवताओं की तरह ‘हनुमत सहस्त्र नाम’ भी है जाप के लिए जिसमें हनुमान जी के एक हज़ार नाम हैं. कल ‘रामायण यक क़ाफ़िया’ पढ़ रहा था तो उसमें अशोक वटिका प्रसङ्ग में हनुमान जी का विक्रम नाम पढ़ा. इस रामायण में कई जगह हनुमान जी का उल्लेख विक्रम नाम से है.

                                      हनुमान जी का विक्रम नाम मैंने नहीं सुना था ( बाद में याद आया कि सुना है ), यह प्रचलित भी नहीं. कोई उन्हें विक्रम नाम से स्मरण नहीं करता. जानकारी के लिए कुछ और ग्रंथ देखे, ‘हनुमत सहस्त्र नाम’ भी देखा, उसमें भी विक्रम नाम नहीं मिला. नहीं मिला तो न सही, इसी बहाने ‘हनुमत सहस्त्र नाम’ का जप हो गया.

विक्रम नाम के मिस ‘रामायण यक क़ाफ़िया’ का अशोक वाटिका प्रसङ्ग देखें जिसमें हनुमान जी का विक्रम नाम है –

“ … इतने  में  विक्रम ने  फेंकी राम की अंगुश्तरी ।

        जानकी जी की जुदाई का किया क़िस्सा बयां ॥

        जानकी  हैरां  हुई  अंगुश्तरी  को  देख कर ।

        दिल को अन्देशा हुआ, पैदा हुए वहमो गुमां ॥

        ध्यान था अंगुश्तरी ए राम लाया कौन शख़्स ।

        किस में   ऐसा ज़ोर है,  है कौन ऐसा पहलवां ॥

        विक्रम आये सामने सीता को पाया फ़िक्रमन्द ।

        की  बयां  सहरानवर्दाने  अलम  की    दास्तां ॥ … “

वाटिका उजाड़ने की ख़बर पाकर रावण ने अक्षय कुमार को भेजा और पकड़ कर लाने की ताकीद की. हनुमान जी का विक्रम नाम ही बताया –

“… था अछै, रावन का फ़रज़न्द अहले ताकत अहले ज़ोर ।

       उस  से   रावन  ने   कहा  जा  तू   मियाने  बोस्तां ॥

       हिकमतो तदबीर  से  विक्रम बली को  कैद कर ।

       चश्मे  गुलशन  को दिखा  आइनये  अम्नो अमां ॥ …”

अशोक वाटिका उजाड़ी, अक्षय कुमार को मार गिराया. तब रावण ने मेघनाद को भेजा –

“ … कोह की सूरत पवनसुत ने उखाड़ा एक दरख़्त ।

        फ़ौज को मारा, कुचल डाली अछै की अस्तुख़्वां ॥

        वह  राजा ब्रह्मा की शक्ति  था  बराये  अहले ज़ोर ।

         था   परसधर  का  फरसा,  राम  का  तीरे  रवां ॥

         शंभु का त्रिशूल था, वज्र इन्द्र का, अर्जुन का बान ।

         विष्णु जी  का चक्र, काली जी  की  तेग़े ख़ूंफ़िशां ॥

         था श्री नरसिंह का नाखुन, श्री विक्रम का गुर्ज़ ।

         आतिशे    सोज़ां,   बलाये   आस्मां,   बर्क़े   तपां ॥

         यंशे अक़्रब या दमे अज़दर था या दन्दाने मार ।

         ग़ैरते    ख़र्तूमे    फ़ीलो,    पंजए   शेरे    ज़ियां ॥

         मेघनाथ अपने पिशर को फिर दिया रावन ने हुक्म ।

         जा   के   विक्रम  को   करे   पाबन्द  ज़ंजीरे  गिरां ॥ … “

ऐसे ही कई जगह हनुमान जी के अन्य नामों के साथ विक्रम भी कहा गया है. विक्रम नाम स्मरण करते हुए याद आया कि तुलसीदास जी ने भी हनुमान जी को विक्रम कहा है –

“ महावीर   विक्रम   बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥

                                                            तो हनुमान जी का एक नाम विक्रम भी था.

                                                  *************

कुछ ‘रामायण यक क़ाफ़िया’ मन्ज़ूमए ‘उफ़ुक़’ के बारे में !

‘रामायण यक क़ाफ़िया’ मन्ज़ूमए ‘उफ़ुक़’ के रचनाकार मलिकुश्शुअरा द्वारका प्रसाद ‘उफ़ुक़’ लखनवी हैं और मूल रूप से यह रचना उर्दू में है. यह वाल्मीकि रामायण व रामचरित मानस पर आधारित है पर अनुवाद न होकर स्वतन्त्र रचना है. यह पहली बार 1885 में प्रकाशित हुई और बाद मे प्रतिष्ठित मुंशी नवल किशोर प्रेस , लखनऊ से 1914 में पुनः प्रकशित हुई. रचनाकार का जन्म लखनऊ के नौबस्ता में 13 जुलाई, 1864 को एक साहित्य सेवी परिवार में हुआ. इनके परदादा, दादा, पिता एवं माता उर्दू के शायर, गद्यकार एवं सम्पादक थे. इन्होंने 1888 से 1894 तक उर्दू पद्य में 12 पृष्ठों का पाक्षिक ‘ नज़्म अख़बार’ प्रकाशित किया व 30 से अधिक पुस्तकों की रचना की. 1913 में आपका निधन हुआ.

मुंशी नवल किशोर प्रेस , लखनऊ से प्रकाशन के बाद अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश ने इसके प्रकाशन का बीड़ा उठाया और यह 2021 में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुई. यह द्विभाषी है, एक ओर उर्दू में तथा एक ओर हिन्दी में दिया हुआ है. अन्त में कुछ पेण्टिंग्स भी हैं. हर पृष्ठ पर कठिन शब्दों के अर्थ व अंत में रामायण व रामकथा के पात्र व प्रसङ्गों के बारे में परिशिष्ट भी है.  

2 comments:

  1. हमारे यहां बेटे के नामकरण में विक्रम रखने की मान्यता है। हनुमान चालीसा में भी इस नाम का वर्णन है जैसा कि आपने भी बताया। कहीं कहीं शब्द कठिन लगा। कितना पुराना इतिहास। वाणी प्रकाशन की रचना पढ़नी पड़ेगी।

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    1. पोस्ट पढ़ने व टिप्पणी के लिए धन्यवाद ! अवश्य पढ़ें, मुद्रित प्रति का आनन्द ही और है. एक निवेदन और है, टिप्पणी के साथ अपना नाम भी लिख दिया करें. Anonymous से पता नहीं चल पाता कि किस सुधी पाठक ने टिप्पणी की है.

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