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Saturday, 21 June 2025

अनुवाद किसका हो – किताब का या शीर्षक का भी !

 


अनुवाद किसका हो – सामग्री का या शीर्षक का भी !


मंगा लेने के कई दिन बाद आख़िरकार ’Heart Lamp’ पढ़ना शुरू किया और दो कहानियां पढ़ भी डालीं. मंगा लेने के कई दिन बाद इसे पढ़ना शुरू करने का एक कारण तो यह कि हाथ में जो किताबें थीं उनमें से एक के पूरा हो जाने के बाद ही नयी किताब शुरू करता हूँ, ( अगर वह नयी किताब पाठक जी की न हो ) दूसरा कारण यह कि किताब अंग्रेजी में है. साहित्यिक रुचि के लोग तो जानते ही हैं फिर भी बता दूँ कि मूल रूप से अंग्रेजी में भी नहीं, कन्नड़ में है और इसका कन्नड़ से अंग्रेजी अनुवाद किया गया है. यह बानू मुश्ताक़ का कहानी संग्रह है ’Heart Lamp’ इसे अनुवाद के लिए 2025 का अंर्तराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिया गया है. अनुवादित श्रेणी के लिए यह विश्व का प्रतिष्ठित पुरस्कार है जो लेखक व अनुवादक दोनों का साझा होता है, इसकी पुरस्कार राशि, 50,000.00 ब्रिटिश पाउण्ड, भी लेखक और अनुवादक में बराबर – बराबर बांटी जाती है. इसकी अनुवादक हैं दीपा भास्ती जो लेखक और अनुवादक हैं. क्षेत्रीय भाषाओं, उनमें कन्नड़, के लिए यह गौरव की बात है.

अंग्रेजी अमूमन मैं पढ़ता नहीं, अंग्रेजी बोलने में शर्म आने वाले बयान से पहले से नहीं ! अंग्रेजी में मेरा हाथ बचपन से ही तंग है. अंग्रेजी ( पढ़ना-लिखना-बोलना ) मेरे लिए सहज नहीं, साहित्य तो कतई नहीं. अंग्रेजी का कुछ पढ़ने में मुझे दोहरकम लगता है, एक साथ ही पढ़ो और उसका मन ही मन हिन्दी अनुवाद करते चलो. फिर भी भीष्म प्रतिज्ञा नहीं है. कुछ किताबें जिन्हें पढ़ने की उत्कट इच्छा होती है पर उनका हिन्दी अनुवाद नहीं हुआ होता/ उपलब्ध नहीं होता तो अंग्रेजी में ही पढ़ लेता हूँ. भोजन के मामले में जो ज़हरमार करना/ पेट को धोखा देना होता है, वैसा ही है अंग्रेजी में पढ़ना मेरे लिए !

तो इसे भी ऐसे ही पढ़ना शुरू किया. सरल अंग्रेजी है, जब मैं पढ़ ले रहा हूँ तो कोई भी पढ़ सकता है. इसके पढ़ने के पीछे भी वही कारण था – पुरस्कृत कृति के प्रति उत्सुकता और कुछ उसके बारे में पढ़ा होना. ‘रेत समाधि’ तो हिन्दी में भी उपलब्ध है किन्तु यह नहीं, बाद में शायद हो किन्तु’कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक’ सो अभी ले लिया और पढ़ा.

कहानियों पर अभी कुछ नहीं कह रहा हूँ, अनुवाद के बारे में कुछ विचार आये. नहीं, नहीं – अनुवाद की गुणवत्ता आदि के बारे में नहीं. उस पर तो तब कह सकता था जब मैंने मूल पढ़ा होता या फिर अनुवाद बेकार होता, ‘मक्षिकास्थाने मक्षिका’ जैसा, यान्त्रिक सा होता, कथा में रस न मिलता. अभी तो यह कि क्या अनुवाद में किताब के शीर्षक या कहानी संग्रह है तो हर कहानी के शीर्षक का भी अनुवाद किया जाना अनावश्यक नहीं ! लेखक ने जो शीर्षक दिया, उसे वैसा का वैसा न देने से क्या उसकी आत्मा खण्डित नहीं हो जाती ! मूल भाव तिरोहित सा नहीं हो जाता ! आख़िर अनुवादक नाम का अनुवाद तो करता नहीं, उसे वैसा का वैसा ही लिखता है. कोई लेखक चन्द्र प्रकाश हो तो अंग्रेजी अनुवाद करते समय उसे Moon Light तो नहीं लिखता ! उपन्यास या कहानी का शीर्षक भी तो नाम ही है, उसे क्यों नहीं वैसा का वैसा रहने देते. हाँ अंग्रेजीदां लोगों के लिए ब्रैकेट में मूल नाम का भावार्थ दे सकते हैं. शीर्षक में ही लेखक बहुत कुछ कह देता है, कभी – कभी तो शीर्षक ही विषय वस्तु का संकेत दे देता है तो उसे वैसा का वैसा ही रखना उचित है. Stone Slabs for Shaista Mahal या Fire Rain … सभी कहानियों का शीर्षक भी अंग्रेजी में अनूदित कर दिया गया है. बानू जी ने किताब का व कहानियों का यह शीर्षक तो न रखा होगा. मूल शीर्षक होता तो बात, कम से कम मेरे विचार से, और होती.

अन्य भाषा से अंग्रेजी अनुवाद करते समय यह अपेक्षित है. हिन्दी व अन्य भारतीय भाषा भाषियों के लिए यह उससे तादात्म्य स्थापित करेगा, बिना अधिक प्रयास के मालूम हो जाएगा कि हम कौन सी रचना पढ़ने वाले हैं. भारतीय साहित्य प्रेमी बहुधा अन्य भारतीय भाषओं के बहुतेरे शब्द आसानी से समझ लेते हैं तो मूल भी समझ लेंगे. ‘गीतांजलि’ का अंग्रेजी अनुवाद भी गीतांजलि नाम से ही है न कि शीर्षक का अंग्रेजी अनुवाद कर दिया गया/ इसका अर्थ यह हुआ कि पहले अनुवादकों के ध्यान में यह बिन्दु रहता था, उसे मानते थे. तब मानते थे तो अब भी मानें ना !

बहुत सी अंग्रेजी व अन्य भाषाओं की किताबों का अनुवाद हिन्दी में हुआ है. उसमें भी शीर्षकों तक को अनूदित कर दिया गया है. ‘आख़िरी शब के हमसफ़र’ को ‘निशान्त के सहयात्री’ कर दिया गया, अच्छा अनुवाद है किंतु शीर्षक अगर ‘आख़िरी शब के हमसफ़र’ ही रहता तो किताब उठाते ही पता चल जाता कि किस किताब का अनुवाद है. ऐसे ही ‘ए सुटेबल ब्वाय’ को ‘एक अच्छा सा लड़का’, ‘वार एण्ड पीस’ को ‘युद्ध और शान्ति’, ‘फेयरवेल टू आर्म्स’ को ‘शस्त्र विदाई’, … कर दिया गया. सुधी पाठक तो पहचान लेगा किंतु जो बिना जाने किताब उठा रहा है वह मूल नाम से अधिक तादात्म्य स्थापित करेगा.

आपका क्या विचार है !
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किताब - ’Heart Lamp’
लेखक – बानू मुश्ताक़, अनुवादक दीपा भास्ती
मूल भाषा - कन्नड़
विधा - कहानी
प्रकाशक – पेंगुइन बुक्स
पेपरबैक संस्करण, दाम 399/-, 12 कहानियां

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