श्रीरामशलाका प्रश्नावली
भविष्य या कर्मफल के प्रति
शङ्का और जिज्ञासा अधिकांश लोगों में होती है, यह न भी हो तो भी एक बार तो मन में यह
विचार आता ही है कि सम्पादित किया जा रहा कार्य सफल होगा कि नहीं. कभी – कभी कार्य
प्रारम्भ करने से पूर्व ही अगर – मगर या ऐसे ही प्रश्न उपस्थित हो जाते हैं कि ये कार्य
करना उचित है या नहीं, फलदायी होगा या नहीं और यदि कार्य प्रारंभ कर दिया गया तो उसमें
विघ्न – बाधा तो न आयेगी, यदि आयेगी तो उनका शमन हो सकेगा अथवा नही या उसे छोड़ देना
ही ठीक होगा.
कार्य के अलावा भी कुछ अप्रत्याशित घटनाएं हो जाती हैं जिनमें हानि/ अमङ्गल की आशङ्का या अनिश्चितता होती है, उनके बारे में चित्त विकल रहता है और कुछ जानने की उत्कट इच्छा होती है. इन सबके समाधान के लिए व्यक्ति शगुनिया / सगुनिया के पास जाता है या ज्योतिषियों के पास जाता है या करने – धरने वालों के पास जाता है. इनसे लाभ होना या उमड़ रहे प्रश्नों का उत्तर पूरी तरह विश्वास का मामला है.
इन्ही सबको ध्यान में रख
कर तुलसीदास जी ने ‘श्रीरामशलाका प्रश्नावली’ की रचना की. यह जो चित्र में आप
यंत्र ( यंत्र रूढ़ अर्थ में केवल कोई मशीन / उपकरण नहीं होता अपितु कागज पर गणना के
आधार पर अथवा ईष्ट देव की स्तुति, स्वस्ति आदि के कुछ अक्षर / शब्द / वाक्य अथवा अङ्क
लिखे होते हैं, उन्हें भी यंत्र कहते हैं. तंत्र शास्त्र में विविध प्रकार के यंत्रों
का बहुत महत्व है ) / वर्ग पहेली जैसा देख
रहे हैं, वह गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘श्रीरामशलाका प्रश्नावली’
है जिसकी सहायता से उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर मिलता है जो ऊपर वर्णित हैं. यह पूरी
तरह विश्वास/ श्रद्धा पर फलदायी होते हैं. ‘श्रीरामशलाका
प्रश्नावली’ श्रीरामचरित मानस में दी होती है.
इससे प्रश्न का समाधान पाने
का तरीका बहुत सरल है, बस मन में श्रद्धा और इस पर विश्वास हो. सबसे पहले मन में श्रीराम
जी का ध्यान करें, फिर मन में प्रश्न का विचार करें, फिर एक शलाका ( सींक या शलाख
) लेकर उसे किसी भी खाने में रख दें. ( शलाका के प्रयोग के कारण इसमे शलाका जुड़ा है.
उंगली भी रखी जा सकती है किन्तु उंगली खानों से बड़ी होगी और दो या अधिक वर्ग ढक जाएंगे
अतः शलाका का प्रयोग उपयुक्त होगा ) अब जिस अक्षर पर शलाका रखी है उसे कागज पर लिख
लें. फिर उससे नवें वर्ग में जो अक्षर पड़े, उसे लिख लें. इसी प्रकार नवें वर्ग का अक्षर
तब तक लिखें जब तक कि पूरी प्रश्नावली का चक्कर न लगा लें. उंगली प्रश्नावली के बीच
में पड़े ( जैसा कि उदाहरण में बताया है ) तो अंत पर पहुँच कर वहाँ से तब तक गिनें जब
तक कि उस अक्षर पर न पहुँच जायें जिस पर सबसे पहले उंगली रखी थी. जैसे प्रश्नावली की
अंतिम पंक्ति में पहूँचे और नवें अक्षर के बाद तीन वर्ग बचे हैं और पूरी प्रश्नावली
का चक्कर नही लगा तो वे तीन वर्ग और ऊपर से छठा वर्ग … इस प्रकार चक्कर पूरा करें.
चक्कर पूरा होने पर देखेंगे
कि लिखे हुए अक्षरों से एक चौपाई बन गयी है जो मानस में है. मानस की अनेक चौपाईयां
सूत्र रूप में भी हैं अर्थात वे कथा प्रसङ्ग को तो आगे बढ़ाती ही हैं, स्वतंत्र रूप
में नीति की कोई बात कहती हैं. उस चौपाई का गोस्वामी जी ने संदर्भ बताया है और उससे
आधार पर फलाफल की घोषणा की है.
इसमें जो उदाहरण दिया है
उसमें प्रश्नावली के जिस वर्ग पर शलाका पड़ी उसमें ‘म’ अक्षर अङ्कित है ( इसे * से चिन्हित
किया गया है ) अब इसे कागज पर लिखा और फिर नवां अक्षर लिखा तो यह रचना मिली –
म र चि रा खा को क
रि त र्क ब ढ़ा वै सा खा हो इ हि सो इ जो रा
अब मानस का पारायण करने वाले
जान ही लेंगे कि इन अक्षरों से यह चौपाई बनती है –
होइहि सोइ जो राम
रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
यह चौपाई बालकाण्ड में शिव
पार्वती संवाद के अंर्तगत है. आशय यह निकालना चाहिये कि कार्य पूर्ण होने में संदेह
है अतः उसे या तो न करे या फल की चिंता किये बिना भगवान पर छोड़ दे. जो होगा, देखा जायेगा.
नवें अक्षर को गणना में लिया गया है अतः कुल नौ चौपाईयां बनती हैं जिनका
अलग – अलग फल है. शलाका श्रीरामचरित मानस में ही मिलेगी, अलग से नहीं.
इस पोस्ट का आशय ज्योतिष
अथवा किसी अन्य प्रकार से फलादेश की गणना या शगुन विचारना या इस व इस जैसी पद्धति का
महिमामण्डन या प्रचार – प्रसार नहीं, यह श्रद्धा व विश्वास का मामला है और मेरा आशय
जानकारी देना / साहित्यिक है.
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यह बनाना निश्चित ही बहुत
कौशल का कार्य और श्रमसाध्य रहा होगा. ऐसे ही नहीं 15X15 के खाने बना कर उनमें कोई
भी अक्षर / संयुक्ताक्षर रख दिये गये बल्कि यह सुनिश्चित किया कि कहीं पर भी शलाका
रखी जाए, उसे और नवें अक्षर को गिनने पर आये अक्षरों से चौपाई बने और उन्हीं चौपाईयों
में से बने जो फलादेश हेतु सोच रखी हैं. इस आशय से किन्ही खानों में संयुक्ताक्षर और
किन्हीं में दो अक्षर और किसी में केवल मात्रा (T) लिखी गयी. यह तुलसीदास जी एवं तत्कालीन
कवियों की बहुमुखी प्रतिभा को बताता है. तुलसीदास जी केवल भक्त और कवि ही नही थे अपितु
ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान भी थे.
मैंने मानस के अलावा और कहीं
तुलसीदास जी की जीवनी नहीं पढ़ी अतः उनके भक्त कवि होने के अलावा अन्य आयामों के बारे
में नही पढ़ा किंतु अमृतलाल नागर जी ने “मानस का हंस” में उनके जीवन के विविध आयाम उजागर
किये हैं. इस उपन्यास को नितांत काल्पनिक नहीं कह सकते क्योंकि उन्होंने विभिन्न राजाओं
और संस्थाओं के अभिलेखागार में रखी अनेक जीवनियों के आधार पर उपन्यास लिखा. इस उपन्यास
में तुलसीदास के ज्योतिष और शगुन विचार में प्रवीण होने का उल्लेख और कई प्रसङ्ग हैं.
रत्नावली के मायके में तो यह आजीविका का साधन ही था. तुलसीदास जी के ससुर और साला इस
कार्य को करते रहे, रत्नावली भी इसमें प्रवीण थीं और स्वयं तुलसीदास जी ने भी शौक़िया
इसे किया ( इसमें धन लाभ भी हुआ जो उन्होंने दान कर दिया)
मानस का हंस में ‘श्रीरामशलाका प्रश्नावली’ बनाने का प्रसङ्ग है. तब तुलसी का विवाह हो
चुका था. तुलसीदास जी काशी में निवास कर रहे अपने मित्र, गङ्गाराम से भेंट करने गये.
वे भी ज्योतिषी थे. काशी नरेश के पुत्र कहीं चले गये थे और उनका कोई पता नहीं चल रहा
था. राजा चिंतित थे और उन्होंने युवराज का पता बताने वाले को एक लाख रुपये देने की
घोषणा की. पण्डित लोग विचारने में लगे किन्तु कोई ठीक न बता पाया. गङ्गाराम भी आधा
– अधूरा ही विचार पाये. मित्र की सहायता और मान रक्षा के लिए तुलसीदास जी ने रात भर
में यह शलाका बनायी और युवराज के सवा पहर दिन चढ़ने तक सकुशल लौट आने की घोषणा की, साथ
ही इस बारे में अपना नाम न आने का वचन लिया. गङ्गाराम जी राजा के पास गये, भविष्यकथन
बताया और युवराज के लौट आने पर लाख के बजाय सवा लाख रुपयों से पुरस्कृत होकर लौटे.
बहुत मनुहार के बाद तुलसीदास जी ने घोषित पुरस्कार से ऊपर का पच्चीस हज़ार ही लेना स्वीकार
किया और उसमें से भी तीन चौथाई दान कर दिया. यह ‘श्रीरामशलाका
प्रश्नावली’ वही है जो तुलसीदास जी ने रात भर में तैयार की.
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इस प्रकार की प्रश्नावली
और भी होंगी, एक तो मुझे स्मरण है. बहुत पहले, किशोरावस्था में, कृष्णलीला पर एक काव्य पढ़ा था “कृष्णायन” उसमें भी
ऐसी प्रश्नावली थी. उसमें हर बारहवें अक्षर को जोड़ कर चौपाई ( कृष्णायन की ) बनती थी.
उसमें बारह चौपाईयां बनती थीं और इसी प्रकार उनके फलादेश थे.
वह ग्रंथ अब मेरे
पास नहीं है, किसी मित्र के पास हो तो कृपया देखें और उसकी प्रश्नावली के बारे में
लिखें. इतना मालूम है कि यह द्वारिका प्रसाद मिश्र की रचना है जो उन्होंने 1942 में
जेल में रहते लिखी थी, वे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी थे. अन्य ग्रंथों में भी ऐसी
प्रश्नावली होगी. सुधी साथी कृपया उन्हें साझा करें.
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तुलसी ने श्रीरामचरित मानस
में राम विवाह और राम – रावण युद्ध के प्रसङ्ग में कुछ शगुन – अपशुगनों की चर्चा की
है. अन्य अनेक प्रकार से ( सुगंध के आधार पर,
फूल, फल, सब्जी आदि का नाम पूछ कर, प्रश्न विचार से पूर्व आहार, स्वप्न आदि के आधार
पर भी शगुन / भविष्यफल विचारा जाता है. शम्सुर्रहमान फ़ारुक़ी के वृहद उपन्यास, ‘कई चांद
थे सरे –आसमां’ में भी प्रश्न विचार का प्रसङ्ग है.
पोस्ट लंबी हो रही है अन्यथा
उनको भी देता. आपकी रुचि हो तो उनकी पृथक पोस्ट में चर्चा करूँ.
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