Followers

Monday 8 April 2024

इलाज की पैथियां और डॉक्टर-मरीज़


 इलाज की पैथियां और डॉक्टर-मरीज़

इलाज की जो पैथियां हैं, उनमें अक्सर झगड़ा सा रहता है. पैथियां तो क्या ही झगड़ा करेंगी, उनके मानने वाले/विरोधी, मरीज़, डॉक्टर और कई बार जो इनमें से कुछ भी नहीं हैं -झगड़ते हैं, अपनी की तारीफ और दूसरी को बुरा, बल्कि बेकार, बताते हैं. बहुत बार तो ज़ोर अपनी पैथी के गुण, रामबाणिता बताने से अधिक दूसरी पैथी को बेकार सिद्ध करने पर रहता है. इसके लिए उनकी भुक्तभोगिता आवश्यक नहीं, पूर्वाग्रह और श्रेष्ठताग्रन्थि होती है, कभी तो धर्म/अतीत के व्यामोह भी इस पक्षधरता के पीछे होते हैं.

 

पैथियां कई हैं किन्तु मुख्य तीन हैं - ऐलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेद ! यूनानी और नेचुरोपैथी का नम्बर इनके बाद आता है. इन दोनों से पहले उपचार की एक और पद्वति का नम्बर आता है जिस पर बहुतों को प्रगाढ़ आस्था है, वे इसे कभी तो सबसे ऊपर रखते हैं तो कभी उपचार की सब पैथियों से निराश हो जाने के बाद - वह 'पैथी' है झाड़-फूंक, दुआ-ताबीज, तन्त्र-मन्त्र, टोना-टोटका आदि. यह 'पैथी' बहुधा समानान्तर भी चलती रहती है, 'जिस पैथी से इलाज करा रहे हैं, वह तो चलने ही देते हैं, यह भी साथ ही करते हैं. कोई हर्ज़ तो है नहीं. सांप के काटे, बिच्छू के डंक मारने पर बहुत लोग झड़वाने को ही प्राथमिकता देते हैं. बहुत बार इस चक्कर में पीड़ित की जान पर बन आती है. पीलिया में भी बहुतेरे दवा और परहेज भी करते हैं, साथ ही झड़वाते भी हैं. लखनऊ में कुकरैल नामक नदी, अब नाला, है. कुत्ता काट ले तो सुई लगवाने के साथ उस नाले में नहाने का टोटका भी लोग करते रहे हैं. लकवा की अवस्था में जंगली (सिलेटी रंग वाले) कबूतर का खून प्रभावित हिस्से पर मलने का टोटका भी किया जाता था. दवा के साथ यह भी किया जाता था. इस प्रकार के और भी कई टोटके हैं जिनका आधार किवदन्तियां और आस्था है. ठीक हो जाने पर श्रेय लोग इन 'पैथियों' को ही देते थे.

 

आयुर्वेद होम्योपैथी की बुराई बहुतेरे ऐलोपैथिक डॉक्टर जोशोखरोश से करते हैं. कई तो इनसे चिढ़ते हैं. मरीज़ अगर इनका ज़िक्र भर कर दे तो बिदक जाते हैं. अगर मरीज़ पहले इन पैथियों की शरण में रहा हो और उसके बाद इनकी शरण में आया हो और इन्हें बता दे तो ये पैथी के साथ-साथ मरीज़ को जली-कटी सुनाते हैं.

 

एक दृष्टान्त पहले का है और एक अभी हाल का. साल -डेढ़ साल में मेरा यूरिक एसिड बढ़ जाता है. तब पैर के अँगूठे में बहुत दर्द होता है, पैर रखते नहीं बनता. ऐसे ही एक बार बढ़ा तो पहले होम्योपैथिक दवा ली, फिर ऐलोपैथिक डॉक्टर के पास गया. कभी होम्योपैथिक दवा से ठीक हो जाता है तो कभी समय लगता है तो तत्काल राहत के लिए पैथी बदलता हूँ. इन डॉक्टर को दिखाने के साथ यह भी बता दिया कि कल से होम्योपैथिक दवा ले रहा हूँ मगर फायदा नहीं हुआ. इतना बताना था कि डॉक्टर भड़क गये. बोले, 'होम्योपैथी का नाम मत लीजिए मेरे सामने ! अब मेरे पास क्यों आये हैं, उसी से इलाज कीजिए !'

अब दवा लेनी थी तो चुपचाप सुन लिया, दवा ली और दो दिन में दर्द कम हुआ, फिर चला गया.

दूसरे वाकये का ये है कि हम दोनों ही अलग-अलग व्याधियों से ग्रस्त हैं. शरीरं व्याधि मन्दिरं ! कुछ तो यह बात और कुछ वयजनित व्याधियां. मुझे अस्थमा और अक्सर खांसी- जुकाम का पुराना मर्ज़ है जो जाड़े और बदलते मौसम में उभर आता है. श्रीमती जी को उदर/पाचन विकार, घुटनों में दर्द और थकान, कमज़ोरी है. ब्लड प्रेशर की गोली दोनों लोग खाते हैं, उन्हें थायरायड भी है. हम लोग ऐलोपैथिक इलाज करते हैं, कभी-कभी होम्योपैथी पर शिफ्ट हो जाते हैं. वे अक्सर, मैं बहुत कम

 

इस बार सोचा लग कर आयुर्वेदिक इलाज किया जाए. कई परिचित बाबा रामदेव के पैकेज में रह कर आये तो बहुत लाभ बता रहे थे. वहाँ तो नहीं गये, लखनऊ में ही एक अस्पताल में गये. उन्होंने परीक्षण वगैरह किया और एक सप्ताह पंचकर्म कराने को कहा. उसे स्थगित करने तक एक माह दवा लेने को कहा. आहार तो बिल्कुल बदल दिया, कुछ चीज़ें बिल्कुल बन्द कर दीं, कुछ बढ़ा दीं तो कुछ नयी शामिल कीं. मांसाहार बिल्कुल बन्द, चाय-कॉफी बन्द, दूध दुग्ध निर्मित पदार्थ बन्द, गेहूँ की रोटी के बजाय मोटे अनाज की और हरी सब्ज़ी मिला कर, चाय के स्थान पर एक आयुर्वेदिक पेय, चावल बन्द या ब्राउन राईस, फल और सलाद बहुत बढ़ा दिये, तीन चौथाई क्षुधा इन्हीं से शान्त करनी थी. कई तरह के बीज और मेवा खाने थे और साथ में दवा भी.

 

हमने यह किया. मुझे तो बहुत फायदा हुआ, रोज सुबह इन्हेलर लेता था, कभी-कभी शाम को भी. अब उसकी ज़रूरत नहीं, सांस नहीं फूलती. खांसी-जुकाम भी ठीक हो गया, एसिडिटी भी. महीना पूरा हो रहा है उनके अनुसार आहार लेते

 

मुझे तो बहुत फायदा हुआ, श्रीमती जी को बिल्कुल नहीं. खाना अलग बेमज़ा हुआ और तकलीफ वैसी की वैसी. उन्होंने दवा बन्द कर दी, सामान्य आहार पर शिफ्ट हुईं और पहले वाली ऐलोपैथिक डॉक्टर को दिखाया, तकलीफ के साथ आयुर्वेदिक इलाज लेने के बारे में बताया. डॉक्टर साहिबा भड़की तो नहीं पर उपहास और उपेक्षा भाव से हँसते हुए खूब चुटकियां लीं. कहा, 'किसने बता दिया ! किसी ने राय दी होगी तो सोचा ट्राई कर लेते हैं पर आख़िर आना पड़ा यहीं !' दवा वगैरह लिखी और फिर चुटकी ली, 'अब कोई बता देगा फलां जगह स्पा वगैरह से ठीक कर देते हैं तो वहाँ भी जायेंगी.' उनकी चुटकियों को देखते हुए यह नहीं बताया कि इनको तो बहुत फायदा है. दो दिन हुए, अब श्रीमतीजी को ऐलोपैथिक दवा से ही आराम है.

 

तो कोई पैथी बुरी या निष्प्रभावी नहीं. आयुर्वेद में दवा से अधिक आहार और परहेज पर पर ज़ोर है. दवा भी ऐलोपैथी की तरह तुरन्त या एक-दो डोज में असर नहीं करती, समय लेती है. फिर सबके शरीर की प्रकृति रोग का फैलाव भिन्न भिन्न होता है. अब हमें ही लें - कई दवाएं आहार सम्बन्धी निर्देश हम दोनो के कॉमन थे पर मुझे आशातीत लाभ हुआ, उन्हें बिल्कुल नहीं. शायद इसका कारण शरीर की प्रकृति के अलावा यह भी रहा कि मैंने दवा और आहार सम्बन्धी निर्देशों का लगभग कड़ाई से पालन किया.

 

कुछ विषयान्तर और विस्तार हो गया. बात डॉक्टरों की दूसरी पैथियों से चिढ़ने और उन्हें बेकार मानने की हो रही थी. मैंने पाया कि इस मामले में ऐलोपैथिक डॉक्टर अपेक्षाकृत अधिक चिढ़ने होते हैं जबकि होम्योपैथ और आयुर्वेदिक नहीं या उतने तो कतई नहीं. वे ऐलोपैथी इलाज करने के बारे में तटस्थ होकर सुन लेते हैं पर उसकी बुराई नहीं करतेचिढ़ते नहीं, ताना नहीं मारते. शायद इसका कारण यह भी हो कि वे जानते हैं कि मरीज़ ऐलोपैथी से निराश होकर या ऊब कर या हमारे विज्ञापन/दावों से आकर्षित होकर, इस पैथी पर विश्वास करके या आजमाने के लिए आया है. वे चिढ़ कर या चिढ़ व्यक्त करके ग्राहक अनेक सम्भावित ग्राहक खोना नहीं चाहते. एक सन्तुष्ट मरीज़ दसियों लोगों में प्रत्यक्ष उदाहरण के साथ बिन पैसे प्रचार करता है जिनमें से कुछ नये लोग आते हैं.

 

वैसे कुछ वैद्य (आयुर्वेद वाले) हकीम (यूनानी वाले) भी चिढ़ने होते हैं पर ऐलोपैथिक डॉक्टरों की तुलना में बहुत कम. कुछ रामदेव जैसे बड़बोले भी हैं जो ऐलोपैथी को केवल सार्वजनिक तौर पर नकारते बल्कि उसके विरुद्ध प्रचार करते हैं. यह और बात है कि बावजूद इसके वे ऐलोपैथी की शरण में जाकर ठीक हुए. ऐसे ही इन्हें नकारने वाले सद्गुरु भी और भी कई संत कोटि के. ये डॉक्टर नहीं धन्धेबाज हैं. अपना धन्धा चलाने को ऐसे वक्तव्य देते हैं. रामदेव तो औषधि निर्माता और व्यापारी भी हैं. योग का भी धन्धा है और अस्पताल भी. खैर, वे बड़बोलेपन के कारण अदालत का सामना कर रहे, माफी मांग रहे, लताड़ खा रहे.

                       आप इन सबका बस मज़ा लें, वक्तव्यों चिढ़ से मनोरंजन करें,्डॉक्टर या और किसी से बहस करें और जिस पैथी से फायदा हो, उससे इलाज करें. इस मामले में एकनिष्ठ/प्रतिबद्ध रहें, बेधड़क और आराम होने पर निःसंकोच अविलम्ब अन्य पैथी पर शिफ्ट हों.

No comments:

Post a Comment