‘सुवर्चला
हनुमत कल्याण’
“विद्यावान गुणी अति चातुर
। रामकाज करिबे को आतुर ॥“
हनुमान जी विद्यावान हैं,
गुणी हैं अति चतुर हैं और राम के अनन्य भक्त हैं. वे राम जी का कोई भी कार्य सिद्ध
करने के लिये सदा तत्पर ही नही अपितु आतुर रहते हैं. राम जी की तरह ही हनुमान जी के भी अपार चरित्र हैं अनेक कवियों
ने जिनका गान विभिन्न ग्रन्थों में किया है. उत्तर भारत में राम कथा और हनुमत कथा का
मुख्य स्रोत तुलसीदास जी हैं जिनके रामचरित मानस एवं अन्य ग्रन्थों के माध्यम से राम
चरित के साथ ही हनुमत चरित का भी भान करते हैं. ‘हनुमान चालीसा’, ‘हनुमान बाहुक’ ,
‘हनुमान्नाटक’, ‘बजरंग बाण’ आदि के मध्यम से हनुमान जी के चरित और प्रभाव के दर्शन
होते हैं. इन सभी में वर्णित हनुमान जी के रूप, गुण आदि में हनुमान जी के ब्र्ह्मचारी
होने की बात कही गयी है, हम सब हनुमान जी को ब्र्ह्मचारी के रूप में जानते हैं किन्तु
हनुमत चरित का गान केवल उत्तर भारत में ही नही अपितु सम्पुर्ण देश और देश ही नही, अखिल
विश्व में किया गया है. राम और हनुमान अखिल विश्व की थाती हैं तो अनेक ग्रन्थों में
हनुमत चरित का गान किया गया है.
“पाराशर संहिता”, जो हनुमत
विवेचना का प्रामाणिक ग्रन्थ है, में हनुमान जी को विवाहित बताया गया है, देवी सुवर्चला,
जो सुर्य देव की पुत्री हैं, से हनुमान जी का विवाह हुआ अस्तु हनुमान जी गृहस्थ हैं
किन्तु ग्रहस्थ होते हुए भी वे और उनकी पत्नी, सुवर्चला, ब्रह्मचारी ही हैं. सुवर्चला
के जन्म के समय ही यह निर्धारित कर दिया गया था कि आञ्जनेय हनुमान जी ही सुवर्चला के
पति होंगे.
मित्रों, हनुमान जी के विवाहित
होने के प्रसंग का उल्लेख करने का आशय उनके ब्रह्मचारी होने का खण्डन कदापि नही है
अपितु हनुमत चरित का गान करना ही है. जैसे “हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता “ है वैसे ही
हरि के अभिन्न अङ्ग, हर अर्थात शिव जी के अंशावतार, हनुमान जी के चरित भी अपार हैं.
राम के चरित के साथ हनुमान जी का चरित अविच्छिन्न है. जितनी रामायण / रामकथा उतने ही
रामचरित और उतने ही हनुमत चरित. तुलसी भी रामचरित मानस में कहते हैं –
रामकथा कै मिति जग नाहीं । अस प्रतीति तिन्ह के
मन माही ॥
नाना भाँति
राम अवतारा । रामायन
सत कोटि अपारा ॥
-
बालकाण्द, दोहा संख्या 32 की चौपाई संख्या 3.
‘सतकोटि’ अर्थात सौ करोड़
तो महाकाव्यात्मक कथन है जिसका आशय यही है कि अनेक रामायण हैं जिनमें अनेक प्रकार रामचरित
( और उनके साथ हनुमत चरित ) का बखान किया गया है. विद्वानों ने 300 से अधिक रामायण
बतायी हैं, कुछ विद्वानों के अनुसार 1000 से अधिक रामायण हैं जो देश के विभिन्न भूभागों
में प्रचलित हैं. मुख्य पात्र और घटनाएं एक ही हैं किन्तु देशकाल और लोक मान्यता के
प्रभाव से घटनाओं के निर्वहन में भेद होना स्वाभाविक है, कुछ पात्र भी बढ़ जाते हैं
और कुछ को अधिक मान्यता मिल जाती है – इसी भाव को ग्रहण करते हुए हनुमान जी के विवाहित
रूप का स्मरण करें.
‘पाराशर संहिता’ में ऋषि
मैत्रेय ने अपने पिता महर्षि पाराशर से हनुमान जी के जन्म और बाद का उनका वृत्त पूछा.
पाराशर जी ने बताया कि शिव, अग्नि और वायु देव की कृपा और उद्यम से माता अञ्जना के
गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ. उसी ग्रन्थ में सुवर्चला की कथा भी है जो सूर्य की
प्रखर किरणों के समूह से उत्पन्न हुयी थी. उस कन्या के अपूर्व सौन्दर्य, दिव्य वस्तुओं
और अस्त्र-शस्त्र धारण करने तथा उन पर वर्चस्व के कारण उसका ‘सुवर्चला’ नामकरण किया
गया. देवताओं ने जिज्ञासा की कि इस अपूर्व सुन्दरी कन्या का पति कौन होगा तो ब्रह्मा
जी ने कहा कि सूर्यदेव को फल की भाँति निगल जाने वाले, स्वयं ईश्वर के अंश हनुमान जी
ही इस कन्या के पति होंगे. तो सुवर्चला के जन्म के साथ ही हनुमान जी का विवाह उनके
साथ निर्धारित हो गया था.
कालान्तर में हनुमान जी विद्या
ग्रहण करने सूर्यदेव के पास गये. वे सूर्यदेव के पास रह कर ही विद्या ग्रहण कर रहे
थे. सुवर्चला हनुमान जी के दिव्य रूप और निष्ठा को देख कर उनसे प्रभावित होती गयी और
मन ही मन हनुमान जी को पति रूप में पाने की इच्छा करने लगी. हनुमान जी को पति रूप में
वरण करने का संकल्प उसने सखियों के समक्ष प्रकट किया और सखियों ने सूर्यदेव को बताया.
सूर्यदेव ने एकान्त में सुवर्चला से इस विषय में उसका मनोभाव पूछा . सुवर्चला का संकल्प
जान कर सूर्यदेव ने विश्वकर्मा से परामर्श किया और उनकी सम्मति से “ सुवर्चला हनुमत
कल्याण” अर्थात सुवर्चला का विवाह हनुमान के साथ करने का निश्चय किया. हनुमान जी ने
विद्याध्ययन सन्पन्न होने पर घर जाने की अनुमति मांगी और गुरुदक्षिणा का आग्रह किया. सूर्यदेव ने गुरुदक्षिणा के रूप
में सुवर्चला से विवाह करने का अनुरोध किया. हनुमान जी ने ब्रह्म्चर्य व्रत लिया था,
उधर सुवर्चला ने भी ब्रह्म्चर्य व्रत धारण किया था अतः उन्होने व्रत भङ्ग होने की शङ्का
व्यक्त की तब सूर्यदेव ने उनकी शंङ्का निवारण करते हुए बताया कि सुवर्चला अयोनिजा
( जो किसी स्त्री के गर्भ से उत्पन्न न हो ) है अतः उससे विवाह पर ब्रह्म्चर्य भङ्ग
न होगा. इसके अतिरिक्त उन्होने वेदों में वर्णित चार प्रकार के ब्रह्मचारियों –
-
गायत्री ब्रह्मचारी,
-
प्रजापात्य ब्रह्मचारी,
-
वैदिक ब्रह्म्चारी, एवं
-
नैष्ठिक ब्रह्मचारी.
का उल्लेख किया. विवाह के
पश्चात धर्म और शास्त्रों के अनुसार निश्चित और उचित समय पर ही समागम करने वाले दम्पति
ब्रह्मचारी ( नैष्ठिक ब्रह्मचारी ) ही माने
जाते हैं अतः यह विवाह करने और विधि अनुसार दाम्पत्य का पालन करने पर वे ब्रह्मचारी ही रहेंगे. शङ्का का समाधान
होने पर हनुमान जी सहमत हुए और केसरी-अञ्जना की सम्मति और सब देवगणों की साक्षी में
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को विधि विधान सहित “ सुवर्चला हनुमत कल्याण” सम्पन्न हुआ. विवाह
के उपरान्त माता अञ्जना ने यथा रीति वधू प्रवेश आदि सम्पन्न किया.
कथा के अन्य रूप के अनुसार
एक विद्या ऐसी थी जिसका ज्ञान विवाहित को ही दिया जा सकता था. हनुमान जी विद्याव्यसनी
तो थे ही, सूर्यदेव ने भी निदान निकाला और अपनी पुत्री सुवर्चला से हनुमान जी का विवाह
सम्पन्न किया और विवाहित हनुमान जी को उस विद्या का भी ज्ञान कराया.
‘पाराशर संहिता’ के अतिरिक्त
‘वानर गीता’, ‘श्री हनुमत पूजा कल्प’, ‘श्री हनुमत सुप्रभातम् , ‘श्री नील मेखला
स्तुति’, ‘अमरकोश’ आदि में भी मन्त्र/ स्तुति हैं जिनमें हनुमान जी का आह्वान सुवर्चला
पति के रूप में / सुवर्चला सहित किया गया है.
ज्येष्ठ माह के चतुर्थ बड़े
मङ्गल के अवसर पर हनुमान जी के इस विवाहित मङ्गलमय रूप का ध्यान करते हुए उनके श्रीचरणों
में प्रणाम.
(हनुमत श्रीचरणों में इस
स्मरण का आधार स्मृति, लोककथाओं और इन्दिरानगर लखनऊ से प्रकाशित त्रैमासिक, “हनुमत
कृपा संदेश” के अप्रैल-जून 2007 के अङ्क में प्रकाशित इस पत्रिका के सम्पादक, श्री
सुनील गोम्बर, का आलेख “सुवर्चला हनुमत कल्याण’ लेख है. सम्पूर्ण आलेख उक्त पत्रिका
में पढ़ा जा सकता है )
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