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Friday 21 August 2020

पथरा चौथ !

 

पथरा चौथ !




पथरा चौथ !
ऊँ गं गणपतये नमः
सभी लोगों को नमस्कार. बातचीत की शुरुआत गणपति को नमस्कार करके की, काहे से कि आज गणेश चतुर्थी है अर्थात गणेश जी का प्राकट्य दिवस. आज ही के दिन गणेश जी का अवतरण हुआ था. आज ही का दिन अर्थात कौन सा दिन, कौन सी तिथि ! तो मित्रों ! भाद्रपद, जिसे बोलचाल की भाषा में भादों भी कहते हैं, उसी भादों के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी का अवतरण हुआ था. अवतरण या प्राकट्य इसलिये कि गणेश जी का जन्म सामान्य रूप से नही हुआ अपितु माता पार्वती ने पुतला बना कर उनमें प्राण प्रतिष्ठा की . तब वे गणेश थे, गजानन व अन्य नाम बाद में पड़े.
अब जैसे केला के पात में से पात निकलते हैं और बात में से बात निकलती है वैसे ही पौराणिक कथाओं में से अनेक उप कथाएं निकलती हैं. किसी अवतार के अनेक हेतु होते हैं और उनसे अनेक कथाएं जुड़ जाती हैं. कुछ तो पुराणों में होती हैं तो कुछ लोक मानस में प्रचलित हो जाती हैं और लोक मन इस कदर उनसे जुड़ जाता है कि कथाओं के साथ व्रत, पर्व, मनाने की विधि चल पड़ती है. अब पुराण की ही लें तो शिव पुराण में रुद्रसंहिता के चतुर्थ खण्ड, कुमार खण्ड, के अनुसार गणेश जी की उत्पत्ति भादों के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हुई थी तो गणेश पुराण के अनुसार भादों के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को.
जो भी हो, जिस तिथि को भी गणेश जी का प्राकट्य हुआ हो – गणेश जी विनायक हैं, विघ्न बाधाओं को दूर करते हैं और अवतरण के दिन पृथ्वी पर आते और भक्तों के घर विराजमान होते हैं. नौ दिन तक रुकते हैं, दसवें दिन, अनन्त चतुर्दशी के दिन अपने लोक को प्रस्थान करते हैं. इसी भाव से चतुर्थी को घरों और सार्वजनिक पण्डालों में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करते हैं और उनकी विदाई के दिन अर्थात अनन्त चतुर्दशी को विसर्जन करते हैं.
गणेश जी के प्राकट्योत्सव के साथ एक मान्यता यह भी है कि इस तिथि को चाँद देखने से कलङ्क लगता है अतः इस दिन चाँद न देखें. हम बात कर रहे थे गणेश चतुर्थी की. कहां गणेश जी के प्राकट्य का दिन और कहां इस दिन चाँद देखने से कलङ्क लगने की कथा. गणपति के दर्शन से तो विघ्न दूर होते हैं किन्तु उन्ही के जन्मदिन पर चन्द्र दर्शन से कलङ्क ( कोई झूठा आरोप ) लगना – विरोधाभासी सा लगता है ना, किन्तु लोक मे इस दिन को “पथरा चौथ” के रूप में भी मान्यता है. इस दिन, अर्थात भादों की चतुर्थी को चाँद देखने से कोई न कोई कलङ्क लगता है. अब जो अनिष्ट है, उसके निवारण की भी व्यवस्था होती है और लोक मान्यताओं में इतनी सरल व्यवस्था होती है कि हर कोई कर ले. यह पर्व छत्तीसगढ़, उसमें भी विलासपुर में विशेष प्रचलित है, हिमाचल में भी है और उत्तर भारत के ग्रामीण अञ्चलों में भी. ग्रामीण तो छोड़ दें, लखनऊ के शहरी क्षेत्रों में भी यह प्रचलित रहा, अब इसका प्रभाव कम हो गया है, अब नही सुनने में आता. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी मानस के एक प्रसङ्ग में प्रकारान्तर से चौथ के चाँद को न देखने की सलाह दी है. सुन्दरकाण्ड में विभीषण रावण को समझाते हुए कहते हैं कि जैसे लोग चौथ का चाँद नही देखते वैसे ही तुम परनारी का मुख न देखो –
सो परनारि लिलार गोसाईं। तजौ चउथि के चंद कि नाई॥
भादों के शुक्ल पक्ष की चौथ का चाँद कृष्ण जी ने देख लिया था, फलस्वरूप उन स्यमन्तक मणि की चोरी का आरोप लगा. अब इस कथा को सुनने से पहले वह कथा सुनें जिसमें चौथ का चाँद देखने से अनिष्ट होने की बात है ( देखें, निकली ना कथा में कथा ) -
तो कथा यह है कि एक बार गणेश जी अपने वाहन मूषक पर सवार होकर तेज़ी से कहीं जा रहे थे कि चन्द्रदेव की नज़र उन पर पड़ी. एक तो गणेश जी का महाकाय शरीर, दूसरे वाहन चूहा और तीसरे तेज़ी से जाना – कुछ ऐसा दृश्य उपस्थित हुआ कि चन्द्रदेव को हँसी आ गयी. हँसी ही नही, उन्होने उनका मज़ाक भी उड़ाया. चन्द्रदेव को अपनी सुन्दरता का अभिमान भी था. गणेश जी को क्रोध आया और उन्होने शाप दिया कि अब से जो भी तुम्हे देखेगा, उसे कलङ्क लगेगा. अब बताईये भला, ग़लती चन्द्रदेव की, उपहास का अपराध उन्होने किया और शाप फलित होगा उन निरपराध लोगों पर जो चाँद देखेंगे – क्रोध में ऐसा भी होता है. अब तो चन्द्रदेव डरे कि इतने सुन्दर और शीतल होते हुए भी लोग उन्हे नही देखेंगे. सुन्दर व्यक्ति के लिये यह दण्ड ही है कि कोई उसे न देखे. क्या लाभ सुन्दरता का कि लोग देख कर सराहें नही. चन्द्रदेव ने बहुत अनुनय-विनय की तो गणेश जी पिघले और दण्ड को बहुत कम करके केवल उस तिथि तक सीमित कर दिया. वह तिथि भादों के शुक्ल पक्ष की चौथ थी. तभी से इस तिथि को चाँद देखने पर कलङ्क लगने की मान्यता है अतः लोग इस तिथि को चाँद देखने से बचते हैं.

दोष निवारण का उपाय - पथरा चौथ पर छत पर पत्थर फेंकना
अब लाख बराव करने पर भी कोई चाँद देख ही ले तो क्या हो ? कलङ्क लगने की आशङ्का तो है ही. आपने अनुभव किया होगा कि जिसका निषेध हो, अदबदा कर वह होता है. चोट छूने / खुजाने, इस कोरोना काल में नाक-आँख – चेहरा छूना मना है तो अदबदा कर उंगली वहीं जाती है, इसी तरह यदि सोच लिया कि आज चाँद नही देखना है तो घर में कमरे के अन्दर बैठे रहें तो भले बचाव हो जाय अन्यथा बाहर निकलने पर निगाह ऊपर उठ जाती है और चाँद दिख जाता है. लो अब आ गयी मन में शङ्का ! अब दोष है तो दोष निवारण का उपाय भी है और उपाय भी बहुत सरल है. जिस घर की छत टीन की हो उस पर पत्थर फेंके. टीन पर पत्थर पड़ने से ज़ोर की आवाज़ होती है तो घर से कोई न कोई निकलेगा ही देखने कि किसने पत्थर फेंका. अब कोई दिखेगा नहीं काहे से पत्थर फेंकने वाला खड़ा तो रहेगा नही बताने को कि मैने पत्थर फेंका. देखने को निकला व्यक्ति, बहुधा गृहस्वामिनी, जब तक देखे कि किसने पत्थर फेंका और कोई नुकसान तो नही हुआ कि एक और पत्थर जाने किसने फेंका और टन्न की आवाज़ हुई. अब वो शुरू गालियां देने का दौर ! यह भी टोटका है इसका कि पत्थर फेंकने पर गृहस्वामिनी गालियां दे तो चन्द्र दर्शन का दोष मिट जाता है, कलङ्क नही लगता. गृहस्वामिनी भी यह जानती है कि आज पत्थर क्यों फेंके जा रहे हैं तो वह गालियां देती है कि लोगों का कलङ्क मिट जाय.
अमीनाबाद में जब रहते थे तो ऑफिस से लौटते में या घर पर रहें तो खिड़की से चाँद दिख जाता था. एक घर था मोहल्ले में जिसके आँगन में टीन छायी थी, वो गालियां देने में पटु भी थीं सो खूब पत्थर पड़ते थे टीन पर. अब टीन वाले घर भी न रहे और यह प्रथा भी लुप्त हो गयी. अब शायद लोग चन्द्र दर्शन से कलङ्क मानते भी नही. वैज्ञानिक आधार न होने पर भी ये भोले विश्वास बड़े मज़े के थे. एक चकल्लस हो जाती थी.

दोष निवारण का दूसरा उपाय – स्यमंतक मणि वाली कथा सुनना/ सुनाना
कृष्ण जी को भी चन्द्र दर्शन से कलङ्क लगा, स्यमंतक मणि की चोरी का ! हुआ ये कि भादों, शुक्ल पक्ष की चौथ को, दूध दुहते समय उन्होनें चाँद देख लिया. जहाँ दुह रहे थे वहीं गोमूत्र इकठ्ठा हो गया था, उसी में चाँद का प्रतिबिम्ब दिख गया. उसके बाद उन पर मणि की चोरी का आरोप लगा. कैसे यह आरोप लगा और कैसे वे इससे मुक्त हुए – ये कथा कहने / सुनने से भी दोष निवारण होता है. आप भी सुनें वह कथा –

मथुरा में एक धनी व्यक्ति थे सत्राजित. उनके पास स्यमन्तक नाम की एक मणि थी जो उन्होने सूर्यदेव की उपासना करके प्राप्त की थी. वह मणि सूर्य के समान प्रकाशमान थी कि उस पर दृष्टि नही ठहरती थी. उसमें यह भी विशेषता थी कि प्रतिदिन उपासना के बाद वह मणि स्वर्ण देती थी. इस प्रकार नित्य स्वर्ण प्राप्त करते हुए सत्राजित बहुत धनी हो गये थे और उनका प्रभाव और तेज बहुत बढ़ गया था. एक दिन वे मणि धारण करके कृष्ण की सभा में आये तो मणि के तेज के कारण लोगों ने समझा कि सूर्यदेव उनसे मिलने आये हैं. कृष्ण जी ने उनका सत्कार करके मणि मथुरा के राजकोष में देने का निवेदन किया जिसे उन्होनें नही माना और वाद-विवाद के पश्चात सभा से रुष्ट होकर चले गये. दोनों में मनोमालिन्य हो गया.
कुछ दिन बाद सत्राजित का छोटा भाई, प्रसेनजित, वह मणि धारण करके वन को गया जहाँ एक सिंह ने उस पर आक्रमण करके उसको मार डाला और मणि ले गया. सिंह आगे गया तो उसके पास मणि को देख कर एक बलवान रीछ ने उस पर आक्रमण किया और मणि छीन ली व ले जाकर गुफा में अपनी पुत्री को दे दी.
अब प्रसेनजित के न लौटने पर लोग उसे ढूंढने गये तो जंगल में उसका रक्तरञ्जित शव मिला. अन्य आभूषण तो उसके शरीर पर थे किन्तु मणि न थी. यह देख कर सत्राजित व उनके पक्ष के लोगों ने कृष्ण पर आरोप लगाया कि उन्होने उसकी हत्या करके मणि ले ली है. कुछ दिन पहले ही कृष्ण ने मणि मांगी थी और वाद-विवाद भी हुआ था सो सहज ही यह मान लिया गया कि कृष्ण ने ही हत्या और मणि की चोरी की है. इस कलङ्क के निवारण के लिए कृष्ण गहन वन में गये और अपने पक्ष के लोगों से एक पखवारे प्रतीक्षा करने के बाद उन्हे मृत मान कर लौट जाने का निर्देश दिया. वन में उन्हे आगे सिंह मृत मिला और पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए वे रीछ की गुफा में गये जहाँ एक कन्या मणि से खेल रही थी. वे रीछ जामवन्त ( वही त्रेता में राम की सेना के ऋक्षराज योद्धा ) थे और कन्या उनकी पुत्री जामवन्ती. मणि छीनने में कृष्ण और जामवन्त का भयङ्कर युद्ध हुआ जो सत्ताईस दिन तक चला. परास्त होने पर जामवन्त नें कृष्ण जी को विष्णु के अवतार रूप में पहचाना और क्षमा मांगते हुए मणि और अपनी कन्या, जामवन्ती, उन्हे सौंप दी. कृष्ण ने उससे विवाह किया और मथुरा आकर मणि सत्राजित को सौंप दी व सारा वृत्तान्त सुनाया. वे बड़े लज्जित हुए और मणि के प्रति उनका लोभ जाता रहा. उन्होनें वह मणि भी कृष्ण को सौंप दी और अपनी पुत्री, सत्यभामा, का विवाह भी कृष्ण जी से कर दिया. कृष्ण जी ने सबको इस कलङ्क का कारण बताया और यह भी बताया कि यदि कोई भादों, शुक्ल पक्ष की चौथ का चाँद देख ले तो इस प्रसङ्ग का श्रवण करे तो उसका दोष निवारण हो जायेगा.
तो हे मित्रों ! हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता ! शास्त्र तो हैं ही, शास्त्र से बढ़कर और प्रचलित लोक है. लोक में अभिजात्यता का बन्धन नही, सहज उछाह है और प्रकृति का समावेश. भादों, शुक्ल पक्ष की चौथ का चाँद देखने से होने वाले दोष निवारण हेतु पथरा चौथ है और निवारण का उपाय अति सरल और विनोदपूर्ण. आप चन्द्र दर्शन से होने वाले दोष को न मानें तो कोई बात नही, मानने का आग्रह भी नही है, बस कथा का आनन्द लें – एक लोकसम्मत कथा है तो एक पुराणसम्मत ! गणपति का प्राकट्योत्सव है सो उसका उत्सव मनायें, उन्हे मोदक अर्पित करें, खायें और खिलायें. कथा में यदि कुछ प्रश्न उपस्थित हुए हों उनका स्वागत है, कुछ त्रुटि हुई हो तो बतायें और सुधार करें.

 

 

 

2 comments:

  1. गणेश चतुर्थी में चांद को देखने से कलंक लगता है, यह बात बचपन से सुनी थी। पर इसके पीछे की कहानी कभी न सुनी थी। कलंक से छुटकारे का तरीका भी कभी न सुना, न किसी को करते देखा।
    आपकी किवदंतियों भारी पोस्ट्स हमेशा नई जानकारियों से भरपूर होती हैं। लंबी तो होती हैं पर पढ़ने का बाद वह सारा समय और श्रम सार्थक हुआ लगता है। मुझे आपका ये ब्लॉग और आपके आलेख बहुत पसंद हैं।

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    1. धन्यवाद पूजा ! हर कथा और पर्व के पीछे कथा होती है और यदि किसी पर्व में किसी कारण कोई दोष लगता है तो उसके निवारण का भी उपाय उसी कथा में बताया जाता है. सत्यनारायण कथा को ही लो. हर अध्याय में प्रसाद का निरादर या व्रत का वादा करके उसे टालने पर हानि होती है तो उसका सरल निवारण भी है - कथा सुनना और प्रसद ग्रहण करना. किसी व्रत आदि में सबसे फलदायक प्रसाद ही है, बहुधा प्रसाद के कारण बच्चे पूरी कथा / व्रत विधि में बैठे रहते हैं.

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